कोविड महामारी ने लगभग हर देश की अर्थव्यवस्था को भारी झटका दिया. सरकारों को खर्च बढ़ाना पड़ा, कर्ज़ लेना पड़ा और कई देशों में बजट लड़खड़ा गया, लेकिन इन्हीं उथल-पुथल भरे वर्षों के दौरान ब्रुनेई नाम का छोटा सा देश बिल्कुल निश्चिंत दिखा. दुनिया जहां बढ़ते कर्ज़ से जूझ रही थी, वहीं ब्रुनेई का सरकारी ऋण GDP के मुकाबले लगभग 1.9% ही रहा, जो दुनिया में सबसे कम माना जाता है.

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दक्षिण-पूर्व एशिया में बसे इस देश की आबादी करीब 5लाख है, लेकिन सुविधाएं किसी विकसित राष्ट्र से कम नहीं. यहां के नागरिकों से कोई इनकम टैक्स नहीं लिया जाता. पढ़ाई से लेकर इलाज तक सबकुछ मुफ्त मिलता है. जरूरतमंद परिवारों को सरकार जमीन और घर भी उपलब्ध कराती है. यही कारण है कि ब्रुनेई के सुल्तान को दुनिया के सबसे अमीर शासकों की सूची में गिना जाता है. राजधानी बंदर सेरी बगावन अपनी साफ-सुथरी और शांत जीवनशैली के कारण विश्व के सुरक्षित शहरों में शामिल है.

तेल और गैस ब्रुनेई की आर्थिक रीढ़लंदन स्कूल ऑफ़ ओरिएंटल ऐंड अफ़्रीकन स्टडीज़ के प्रोफ़ेसर उलरिख़ वॉल्ज़ के मुताबिक ब्रुनेई एक “पेट्रो-स्टेट” है, जिसकी लगभग 90% अर्थव्यवस्था तेल और प्राकृतिक गैस से चलती है. 2017 तक यहां के तेल भंडार एक अरब बैरल से ऊपर थे, जबकि गैस का भंडार 2.6 ट्रिलियन क्यूबिक मीटर से ज्यादा आंका गया था. इतनी बड़ी मात्रा में ऊर्जा संसाधन एक छोटे देश को आर्थिक सुरक्षा प्रदान करते हैं.

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सरकार को कर्ज़ की जरूरत क्यों नहीं पड़ती?तेल और गैस की कमाई इतनी अधिक है कि ब्रुनेई को बाहरी उधार लेने की आवश्यकता ही नहीं पड़ती. देश का चालू खाता अक्सर अधिशेष में रहता है और विदेशी मुद्रा भंडार मजबूत बना रहता है. यदि कभी घाटा आता भी है तो सरकार उसे अपनी नकद पूंजी से पूरा कर देती है, इसीलिए ब्रुनेई को अक्सर कर्ज़ लेने वाला नहीं, बल्कि कर्ज़ देने वाला देश कहा जाता है.

वैश्विक मंदी का असर भी न्यूनतममहामारी के दौरान अधिकांश देशों की अर्थव्यवस्था धीमी पड़ी. बजट में बड़े छेद बने और विदेशी कर्ज़ बढ़ता गया. इसके विपरीत ब्रुनेई लगभग अप्रभावित रहा. वजह साफ है उसका पूरा तंत्र ऊर्जा से होने वाली आय पर आधारित है, जो लगातार उसकी वित्तीय स्थिति को संभाले रखता है. मूडीज़ के विश्लेषकों का भी कहना है कि ब्रुनेई की वित्तीय नीतियां और सरकारी प्रबंधन इसका बोझ कम कर देते हैं.

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