डॉ. सोलोमन ने अपनी किताब फ्यूचर ह्यूमन्स में लिखा कि मंगल ग्रह की बेहद कठोर परिस्थितियों के कारण वहां इंसानों का जीवित रहना, या फलना-फूलना, बेहद मुश्किल हो सकता है. उन्होंने बताया कि मंगल पर जन्म लेने वाले बच्चों में कमजोर मांसपेशियां, हरी त्वचा, कमजोर नजर और भंगुर हड्डियां जैसी समस्याएं पैदा हो सकती हैं.
हरे रंग के क्यों बन सकते हैं इंसान?
डॉ. सोलोमन के अनुसार, इन म्यूटेशन का कारण वहां की कम गुरुत्वाकर्षण शक्ति और हाई रेडिएशन होगा, जो इंसानों को हरे रंग का बना सकता है. मंगल ग्रह पृथ्वी से छोटा ग्रह है, और वहां का गुरुत्वाकर्षण पृथ्वी के मुकाबले 30% कम है. इसके अलावा, मंगल ग्रह पर चुंबकीय क्षेत्र और ओजोन परत नहीं है, जिससे ग्रह सूरज की अल्ट्रा वॉयलेट किरणों और अंतरिक्षीय रेडिएशन के सीधे संपर्क में है.
डॉ. सोलोमन ने बताया कि हाई रेडिएशन के कारण इंसानों की त्वचा में नया प्रकार का पिगमेंट विकसित हो सकता है, ताकि रेडिएशन से बच सकें. अपनी किताब में डॉ सोलोमन ने लिखा, "शायद रेडिएशन का सामना करने के लिए हमारी त्वचा में एक नया पिगमेंट विकसित हो सकता है, जिससे हम 'हरे इंसान' बन सकते हैं."
मंगल ग्रह पर दूर तक नहीं देख सकेंगे इंसान
डॉ. सोलोमन ने यह भी बताया कि निम्न गुरुत्वाकर्षण के कारण हड्डियां भंगुर हो सकती हैं, जिससे महिलाओं को प्रसव के दौरान गंभीर समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है. वहीं, इंसानों की नजर कमजोर होने की वजह से मंगल ग्रह पर लोग छोटे समूहों में रहेंगे और दूर तक देखने की जरूरत कम हो जाएगी. गौरतलब है कि अब तक केवल मानव रहित अंतरिक्षयान ही मंगल ग्रह पर पहुंचे हैं, लेकिन जल्द ही वहां इंसान भी जा सकेंगे.
अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा 2030 के दशक तक इंसानों को मंगल ग्रह पर भेजने की योजना बना रही है और स्पेस X के प्रमुख एलन मस्क ने हाल ही में कहा कि अगले 30 सालों में इंसान मंगल ग्रह पर एक शहर बसा सकते हैं. इन योजनाओं को आगे बढ़ाने के लिए कई नई मिशन भी जल्द शुरू होने वाले हैं.
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