सितंबर 2016 में पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर (POK) में भारतीय सेना की ओर से अंजाम दी गई सर्जिकल स्ट्राइक को लेकर फिल्म भी आ चुकी है, लेकिन असल मिशन फिल्म से कहीं ज्यादा रोमांचक था.


इस सर्जिकल स्ट्राइक का नेतृत्व करने वाले भारतीय सेना के रिटार्यड लेफ्टिनेंट जनरल (रिटायर्ड) राजेंद्र रामराव निंभोरकर ने मिशन की रोंगटे खड़ी कर देने वाली कहानी साझा की है.  


भारतीय सेना के इसी मिशन के बाद से ही 'सर्जिकल स्ट्राइक' शब्द कापी पॉपुलर हुआ था. लगभग हर देशवासी इसे जान गया था.


यह सर्जिकल स्ट्राइक कश्मीर में सेना के उड़ी बेस में पाकिस्तानी आतंकवादियोंं की ओर से किए गए हमले के जवाब में की गई थी. 16 सिंतबर 2016 को पाक आतंकियों के हमले में भारतीय सेना के 19 जवान शहीह हो गए थे और कई घायल हुए थे.  


भारतीय सेना ने फरवरी 2019 में पुलवामा में हुए आतंकी हमले के जवाब में भी पाकिस्तानी आतंकियों पर स्ट्राइक की थी, जो कि एयरस्ट्राइक थी. उसे पाकिस्तान के बालाकोट में अंजाम दिया गया था.


सर्जिकल स्ट्राइक की कहानी पूर्व सैन्य अधिकारी की जुबानी


28-29 सितंबर की दरमियानी रात पीओके में अंजाम दी गई सर्जिकल स्ट्राइक को लेकर पूर्व सैन्य अधिकारी आरआर निंभोरकर ने हिंदी अखबार अमर उजाला के एक कार्यक्रम में बताया, ''लश्कर-ए-तैयबा के चार पाकिस्तानी आतंकियों ने उड़ी बेस पर (16 सिंतबर 2016 को) हमला कर दिया था, जिसमें 19 भारतीय जवान शहीद हो गए थे और 38 जवान घायल हुए थे.''


उन्होंने कहा, ''मैं कोर कमांडर था. मेरे नीचे तकरीबन दो लाख के आसपास ट्रूप्स थे और 270 किलोमीटर का लाइन ऑफ कंट्रोल मेरे पास था. जब मैं गया था 2015 में तब मेरे पास तकरीबन 12 कमांडो दस्ते थे और हर एक को बोला था कि अगर हमको मौका मिले तो हमारी तैयारी पूरी रहनी चाहिए. ट्रेनिंग, सिलेक्शन, वेपंस इसके साथ तैयार रहना है. तो तकरीबन हम तैयार थे.'' 


उन्होंने कहा, ''हमें 17 तारीख को बताया गया कि कुछ प्लान करो अंदर. मेरे दिमाग में आया कि प्लान तो हम दे देंगे लेकिन इसका रिजल्ट क्या होगा.'' 


उन्होंने कहा, ''हमारा प्रधानमंत्री ने बोला था कि हम जवाब हम जरूर देंगे, पहले क्या था कि पाकिस्तान को इसकी आदत पड़ चुकी थी. मैं हंसी-मजाक में बोलता हूं कि ज्यादा से ज्यादा क्या बोलते थे हम आपके साथ क्रिकेट खेलना बंद कर देंगे. इससे कोई बात नहीं बनती. इसको जरूर कुछ न कुछ जवाब देना होगा. दिल में लग रहा था कि चांस मिलना चाहिए क्योंकि दो साल बाद मैं रिटायर हो जाऊंगा.''


पूर्व सैन्य अधिकारी ने कहा, ''आपको जानकर खुशी होगी कि 21 तारीख को हमको बोला, मुझे फोन आया था. मनोहर पर्रिकर डिफेंस मिनिस्टर थे. हम तीनों सीनियर ऑफिसर्स थे, तीनों से बात की. उन्होंने कहा- आप शुरू करो. हम आश्चर्यचकित रह गए कि शुरू क्या करें, हमने जो प्लान किया क्या वो करना है? उन्होंने कहा- हां करो. हमने पूछा कि कब करना है? उन्होंने कहा- जल्दी से करो.''


उन्होंने कहा, ''ऐसे कामों के लिए क्या होता है कि तीन चीजें बहुत जरूरी होती है, एक तो सरप्राइज- दुश्मन को आश्चर्यचकित करना, दूसरा- कंडक्ट कैसे करना है और तीसरा- किस समय में करना है. तो 28-29 को हमने प्लान कर दिया. उस दिन आधी रात चंद्रमा की थी और आधी डार्क नाइट थी. हमारे लिए जो प्रशिक्षित सैनिक होते हैं, उनके लिए बोला जाता है कि अमावस की रात अच्छी लगती है. अपने हिंदू धर्म में बोलते हैं कि कोई काम अमावस की रात को नहीं करना चाहिए, अपशकुन होता है. हम बोलते हैं कि हमारी तो वो दोस्त है. हमारे साथ रहेगी तो हमारा फायदा हो जाएगा. इसलिए हमने वो रात चुनी.''


ऐसे चुना समय?


पूर्व सैन्य अधिकारी ने कहा, ''आप सब जानते हैं कि आदमी सबसे ज्यादा गहरी नींद में कब होता है, सबसे ज्यादा गहरी नींद में 3-4 के बीच में होता है. हमने सोचा कि इसी टाइम स्ट्राइक करना चाहिए. आपकी जानकारी के लिए मैं बताना चाहता हूं कि सेना में हम एक्चुअल सेक्युलरिज्म का पालन करते हैं, हर धर्म को इज्जत देते हैं तो हमें पता था कि ये जो आतंकवादी थे, जिनके ऊपर हम हमला करने वाले थे पीओके के अंदर में, वो सब मुसलमान थे. उस दिन 29 तारीख को उनकी जो पहली नमाज थी, फजर की नमाज वो चार बजने के बाद पांच मिनट में थी. हमने कहा जो कुछ कार्रवाई है उसके पहले होना चाहिए. तो हमने ये प्लान किया था.''


उन्होंने कहा, ''एक अहम बात थी सरप्राइज, इसके बारे में पूरे भारत में किसी को पता नहीं था. मेरे खयाल से प्राइम मिनिस्टर से लेकर हमारे तक, हमारे जो जवान थे उनको भी पता नहीं था. उनको पता था कि जाना है. कब जाना है, किधर जाना है, पता नहीं था. ये सब हमने सिलेक्ट करके रखा था.''


फिल्म और असल मिशन में कितना अंतर?


पूर्व सैन्य अधिकारी ने कहा, ''मुझे सब लोग बोलते हैं कि फिल्म उड़ी में दिखाया, कैसा है? उड़ी में दिखाया, उसमें थोड़ा मसाला एड किया है, अगर वो जैसे हमने किया वैसे दिखाया गया होता तो डॉक्युमेंट्री बन जाती. जैसे फिल्म में अभिनेत्री होती है, वो बताती है, आर्मी में अभिनेत्रियां वगैरग नहीं होतीं, हम अपना काम खुद करते हैं. उसमें दिखाया कि गरुढ़ एक पक्षी होता है... हीरो किसी असगर को ढूंढता है ढाई घंटे, हमारे पास इतना टाइम नहीं होता है.'' 


कितने लोगों को पता था?


पूर्व सैन्य अधिकारी ने कहा, ''भारत में मेरे खयाल से सिर्फ 17 आदमियों को पता था, प्राइम मिनिस्टर से लेकर मेरे तक. मेरा जो नंबर 2 मेजर जनरल था, उसको भी पता नहीं था. जब मैं ऑफिस में बैठा था, टीवी देख रहा था, कॉपी पी रहा था, वो दौड़कर आया, सर ये टीवी में दिखा रहा है कि ऐसे हुआ है अपने एरिया में, ये हुआ है क्या? मैंने कहा कि अगर टीवी में दिखाई दे रहा है तो हो ही गया होगा. इतना सरप्राइज का फैक्टर था.''


'भारत के इतिहास में सबसे अच्छा डिफेंस मिनिस्टर'


रिटार्यड लेफ्टिनेंट जनरल (रिटायर्ड) राजेंद्र रामराव निंभोरकर ने कहा, ''कंडक्ट के लिए जो वेंपंस इक्विपमेंट्स सब चाहिए थे, ये हमें सब मिल गए थे छह दिन के अंदर. बेस्ट ऑफ द राइफल्स, प्रोटेक्शन गियर, हेलमेट्स, नाइट विजंस, गुड रेडियो सेट्स, ये सब दिए और मैं मानता हूं कि भारत के इतिहास में अगर कोई सबसे अच्छा डिफेंस मिनिस्टर मिला होगा तो वो मनोहर पर्रिकर थे. उनका यही था कि 'विजयी भव:', जीतकर आ जाओ बस, यह एक चीज थी जो वह चाहते थे लेकिन इसके लिए एक बहुत ही ज्यादा जरूरत की चीज थी, वो है राजनीतिक इच्छाशक्ति.''


सर्जिकल स्ट्राइक में कितने सैनिक थे शामिल?


पूर्व सैन्य अधिकारी ने कहा, ''हम 35 आदमी ले गए थे. दोनों (भारत-पाकिस्तान) के सामने चौकियां होती है. उसमें माइन लगी रहती हैं. अगर उसके ऊपर पैर पड़ जाए तो धमाका होता है. आवाज होने पर मिशन खत्म. उसके बाद कुछ कर ही नहीं सकते. हमने क्या किया था कि वो 100 मीटर क्रॉस करने के लिए हर एक पार्टी ने तकरीबन ढाई से तीन घंटा लगाया.''


ऐसे निकाला माइन का हल 


आरआर निंभोरकर ने बताया कि माइन से निपटने की तैयारी बंदरों और गधों को देखते हुए की गई थी. उन्होंने कहा, ''लाइन ऑफ कंट्रोल से बीच में ये बंदर आते हैं, डंकी आते हैं तो देखा हमने, बैरिंग वगैरह लिया था, उसमें प्रिप्रेशन के टाइम पर वायर दबाकर रखा था और वो 100 मीटर के लिए हमारी एक-एक पार्टी ने कम से कम डेढ़ से दो घंटे लिए और वैसे गए. तकरीबन 3 बजे हर पार्टी पहुंच गई, टारगेट के पास में.


कैसे मारा आतंकियों को?


पूर्व सैन्य अधिकारी ने बताया, ''वहां कैसे मारा जाए, एक तो हमारे पास साइलेंसर वेपन होते हैं कि मारो, लेकिन कितना भी साइलेंसर वेपन अगर मारोगे तो आवाज तो जरूर करता है. तो हम वह नहीं करना चाहते थे. हमने बोला नहीं करना है ऐसे. दूसरा जो हमें सिखाया जाता है, धीरे से जाकर उसकी गर्दन काटना, तो आवाज ही नहीं होगी. तो हमारे जो जितने भी नौ ग्रुप थे उन्होंने जाकर गले काट दिए सबके और ओके ऑर्डर दे दिया और हमने सिर्फ 10 मिनट में पूरा के पूरा एम्युनिशन उनके ऊपर गिरा दिया. रात में शूटिंग भी किया उसका थर्मल कैमरा के साथ में. 12 मिनट में हम निकले. जैसे कि कहीं भी जाते हो तो वापस आने में जल्दी आ जाते हो, वापस आए तकरीबन 5 बजे. अपनी तरफ आ गए. कुछ जगह पर हमसे मुकाबला हुआ, सौभाग्यवश हमारा कोई जवान जख्मी नहीं हुआ.''


उन्होंने कहा, ''फिल्म में जैसे दिखाते हैं कि हेलिकॉप्टर से जाते हैं, हम हेलिकॉप्टर से नहीं गए थे, पैदल ही गए थे लेकिन आने के बाद मैंने उनको उठाया और सुबह मेरे पास आकर उन्होंने ब्रीफिंग की. हमने जो वीडियोग्राफी की था, उसमें गिने तो मेरे एरिया में तकरीबन 28 से 30 उनके मुर्दा शरीर देखे और बाकी सबकुछ मिलाकर हमने 82 टेररिस्ट मार दिए थे और सबसे बड़ी बात ये है कि हमारे एक भी जवान को कुछ नहीं हुआ.'' 


उन्होंने कहा, ''मैं समझता हूं कि हमारे लिए यह बहुत बड़ी बात थी और मैं समझता हूं कि मेरी जो प्रोफेशनल लाइफ है, उसका जो समापन हुआ, बड़े अच्छे तरीके से हुआ.''


अग्निवीर योजना पर क्या बोले?


आरआर निंभोरकर ने कहा, ''अग्निवीर योजना पर काफी हंगामा हुआ, अग्निवीर की दो चीजें हैं. अगर ये 25 फीसदी लोगों को रिटेन करते हैं और 75 परसेंट लोगों को छोड़ते हैं, ये तो थोड़ा सा गड़बड़ हो जाएगा, लेकिन ये स्कीम बहुत अच्छी स्कीम है. इसमें काफी सारे लोगों को आर्मी के बारे मे पता चल जाएगा, डिसीप्लिन आएगी और हर एक आदमी चार साल के बाद निकलेगा तो उसको 21-22 लाख उसके हाथ में होंगे तो कुछ न कुछ कर सकता है... उसका फायदा तो होगा. बहुत ही निकम्मा होगा तो उसको कुछ नहीं मिलेगा... मेरा सुझाव है कि 25 परसेंट की बजाय उसको 50 परसेंट (रिटेन) करना चाहिए.''