नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को एक एनजीओ से पूछा कि वह खत्म ना होने वाली जांच (रोविंग इन्क्वायरी) क्यों करवाना चाहती है और उसने अभी तक इलाहाबाद हाई कोर्ट की शरण क्यों नहीं ली? इस एनजीओ ने अनुरोध किया है कि उत्तर प्रदेश में हाल में हुई मुठभेड़ों में लोगों को मारे जाने की कोर्ट की निगरानी में सीबीआई और एसआईटी से जांच कराई जाए.

इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने गैर सरकारी संगठन (एनजीओ) पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टी (पीयूसीएल) के अनुरोध पर उत्तर प्रदेश सरकार को औपचारिक नोटिस जारी नहीं किया था. इसकी जगह कोर्ट ने उत्तर प्रदेश प्रशासन से उसका जवाब दाखिल करने को कहा है.

सुप्रीम कोर्ट: एनजीओ से पूछा, 'रोविंग इन्क्वायरी क्यों?' उसके बजाय इलाहाबाद हाई कोर्ट में जनहित याचिका दायर नहीं करने पर सवाल उठाते हुए चीफ जस्टिस रंजन गोगोई ने कहा, "32 क्यों? (सुप्रीम कोर्ट में संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत) आपने (एनजीओ) हाई कोर्ट से सम्पर्क क्यों नहीं किया? आप इस बारे में (मुठभेड़) रोविंग इन्क्वायरी क्यों चाहते हैं?"

इस पीठ में जज एस के कौल और जज के एम जोसेफ भी शामिल थे. बहरहाल, पीठ ने राज्य सरकार की प्रतिक्रिया पर एनजीओ को जवाब देने के लिए समय देने के मकसद से जनहित याचिका की सुनवाई टाल दी. कोर्ट ने यह भी कहा कि वह वकील प्रशांत भूषण के इस अनुरोध पर बाद में विचार करेगा कि राज्य में मुठभेड़ में हुई. मौतों के बारे में लंबित जनहित याचिका की सुनवाई में उन्हें भी एक पक्ष बनाया जाए.

उत्तर प्रदेश सरकार ने अपने जवाब में इन आरोपों का कड़ाई से खंडन किया कि अल्पसंख्यक समुदाय के अपराधियों को ही निशान बनाया जा रहा है. उसने कहा कि पुलिस कार्रवाई में मारे गए 48 अपराधियों में से 30 बहुसंख्यक समुदाय से संबंधित हैं.

यूपी सरकार: सभी 14 मामले खास समुदाय से संबंधित राज्य सरकार ने कहा कि एनजीओ ने चुनिंदा रूप से कुछ अपराधियों को चुना और उनका उल्लेख किया ताकि यह संकेत जा सके कि वे किसी खास धर्म से संबंधित हैं. उन्होंने कहा, "14 मामलों को मनमाने ढंग से उठाया गया जिसमें से 13 से अल्पसंख्यक समुदाय से संबंधित हैं."

वकील सुरेश सिंह बघेल के जरिए दाखिल की रिपोर्ट में कहा गया कि उत्तर प्रदेश पुलिस ने 20 मार्च 2017 से 31 मार्च 2018 के बीच तीन लाख आरोपियों को गिरफ्तार किया. कई पुलिस कार्रवाई में आरोपियों ने गिरफ्तारी का विरोध किया और पुलिस कर्मियों पर गोलीबारी की. फलस्वरूप पुलिस को आत्मरक्षा में कार्रवाई करनी पड़ी.

रिपोर्ट के मुताबिक, "20 मार्च 2017 से 31 मार्च 2018 के बीच कुल 3,19,141 आरोपी लोगों को गिरफ्तार किया गया जो पुलिस कार्रवाई में 48 लोगों के मारे जाने के ठीक विपरीत है. यह अपने आप में इस तथ्य की पुष्टि है कि पुलिस कर्मियों की मंशा केवल आरोपियों की गिरफ्तारी है." सरकार ने यह भी कहा कि पुलिस ने याचिका में उल्लेखित सभी मामलों में सभी आवश्यक कदम उठाए हैं. इसमें प्राथमिकी दर्ज करने से लेकर मानवाधिकार आयोग को सूचित करना तक शामिल है.