गोरखपुरः कहावत है कि दिल्‍ली की सत्‍ता का रास्‍ता यूपी से होकर जाता है. यही वजह है कि सपा और बसपा ने गठबंधन कर भाजपा को हराने का मन बना लिया. लेकिन, गठबंधन में सीटों के बंटवारे की गुणा-गणित में शीर्ष नेतृत्‍व फेल होता नजर आ रहा है. सपा-बसपा गंठबंधन के दोनों मुखिया को पूरा विश्‍वास है कि वे भाजपा के विजय रथ को गठबंधन के चक्रव्‍यूह में फंसाकर पटखनी दे देंगे. लेकिन, गोरखपुर-बस्‍ती मंडल की बसपा के खाते में गई छह सीटों पर वहीं सपा-बसपा के जमीनी नेता सीटों के उलटफेर में ऐसा फंस गए हैं कि मंच पर उनकी आंख से आंसू तक निकल आ रहे हैं. कुछ ने तो पार्टी छोड़कर दूसरे का दामन थामने का मन भी बना लिया है.

सपा-बसपा ने गठबंधन के बाद सीटों का बंटवारा किया है. गोरखपुर-बस्‍ती मंडल में सपा के खाते में महज तीन सीटें ही आईं है. सपा के पास गोरखपुर के अलावा कुशीनगर और महराजगंज की सीटें हैं. इसमें भी महराजगंज की सीट पर गोरखपुर से सपा सांसद प्रवीण निषाद के पिता और निषाद पार्टी के राष्‍ट्रीय अध्‍यक्ष डा. संजय निषाद ने दावा ठोंक दिया है. ऐसे में महराजगंज के टिकट पाने के दावेदारों के बीच खासी नाराजगी है. सपा के जमीनी नेता पूर्व सांसद अखिलेश सिंह, पूर्व में एमएलसी का चुनाव लड़ने वाले विजय कश्‍यप, विजय बहादुर चौधरी, रवि गुप्‍ता के अलावा बसपा से विधान परिषद के पूर्व सभापति गणेश शंकर पाण्‍डेय और पूर्व लोकसभा प्रत्‍याशी काशीनाथ शुक्‍ला प्रबल दावेदार रहे हैं. लेकिन, सपा की सीट पर निषाद पार्टी के राष्‍ट्रीय अध्‍यक्ष के दावा ठोंकने के बाद से दोनों ही पार्टी के दावेदार नाराज हैं.

वहीं बस्‍ती की सीट बसपा के खाते में जाने के कारण सपा सरकार में पूर्व कैबिनेट मंत्री राजकिशोर सिंह भी खासे नाराज हैं. उन्‍हें भी इस बार बस्‍ती सीट पर टिकट मिलने की उम्‍मीद थी. लेकिन, वो सीट बसपा के खाते में जाने के कारण वे भी दूसरे दल के साथ जाने के जुगत लगाए हुए हैं. सूत्रों की मानें तो वे भाजपा या फिर कांग्रेस का दामन थाम सकते हैं. संतकबीरनगर सीट पर सपा से आस लगाए भालचंद्र यादव के तो जनता को संबोधित करते हुए मंच से ही आंसू निकल आए. संतकबीरनगर सीट से दो बार सपा के टिकट पर चुनाव जीतकर सांसद बनने वाले भालचंद्र यादव जब जनता के आगे रोने लगे, तो उनके समर्थक जिंदाबाद के नारे लगाने लगे. भालचंद्र भी सपा का दामन छोड़कर बगावत पर उतर सकते हैं. इससे सपा के साथ बसपा का भी खासा नुकसान भी हो सकता है.

बांसगांव लोकसभा सीट पर हालांकि लगातार दो बार से भाजपा के कमलेश पासवान जीतकर संसद पहुंच रहे हैं. लेकिन, ये सीट गठबंधन में बसपा के खाते में चले जाने से पूर्व विधायक और मंत्री रहे सदल प्रसाद को टिकट मिलने की उम्‍मीद जग गई थी. लेकिन, उनकी जगह बसपा से बस्‍ती के रहने वाले दूधनाथ को टिकट दे दिया. देवरिया में सपा से पूर्व कैबिनेट मंत्री रहे ब्रह्माशंकर त्रिपाठी सपा से दावेदार रहे हैं. उनके होर्डिंग्‍स और बैनर भी लग गए थे. लेकिन, ऐन टाइम पर सीट बसपा के खाते में जाने से सपाईयों में रोष है.

पूर्व सांसद स्‍व. मोहन सिंह की बेटी कनकलता सिंह की बेटी भी राज्‍यसभा सांसद रहीं. वे भी इस सीट पर प्रबल दावेदार रहीं हैं. इसके अलावा पूर्व विधायक और मंत्री रहे शाकिर अली नाराजगी है. यही हाल सलेमपुर लोकसभा सीट का भी है. सलेमपुर की सीट भी बसपा के खाते में चली गई है. यहां से हरबंश सहाय और ओपी यादव भी दावेदारी कर रहे थे. लेकिन, सीट बसपा के खाते में जाने से अंदरूनी नाराजगी दिखाई दे रही है. हालांकि किसी ने खुलकर इस पर विरोध नहीं किया है. गोरखपुर सीट पर उप चुनाव में प्रवीण निषाद ने अपनी सीट पहले ही पक्‍की कर ली है.

लेकिन, पूर्व मंत्री जमुना निषाद के पुत्र और सपा नेता अमरेन्‍द्र निषाद और उनकी मां पिपराइच से सपा के टिकट पर पूर्व विधायक रहीं राजमती निषाद भी बगावत के मूड में दिख रहे हैं. माना जा रहा है कि भाजपा उन्‍हें निषाद वोटबैंक को समेटने और सपा सांसद प्रवीण निषाद के खिलाफ हथियार के रूप में इस्‍तेमाल कर सकती है. डुमरियागंज लोकसभा सीट भी बसपा के खाते में गई है. ऐसे में सपा में टिकट के दावेदार पूर्व विधानसभा अध्‍यक्ष माता प्रसाद पाण्‍डेय और डुमरियागंज से विधानसभा से सपा प्रत्‍याशी रामकुमार उर्फ चिंटू यादव दावेदार रहे हैं. लेकिन, इन लोगों ने गठबंधन के प्रत्‍याशी को शहर से स्‍वीकार किया है. यहां पर कोई विरोध नहीं है.

लोकसभा चुनाव में सपा-बसपा गठबंधन ने काफी मंथन के बाद सीटों का बंटवारा किया है. ऐसे में टिकट पाने की आस लगाए दावेदारों की नाराजगी जग जाहिर है. लेकिन, हो सकता है कि शीर्ष नेतृत्व ने भी उनकी पहले की परफॉर्मेंस को देखकर ही ये फैसला किया होगा.