मेरठ: रणभूमि में जौहर दिखाने वाले इंडियन एयरफोर्स के विंग कमान्डर अभिनन्दन की आज वतन वापिसी होगी. मगर क्या देश की खातिर लड़ते हुए दुश्मन के कब्जे में आने वाले सैनिक इतने ही खुशकिस्मत होते है..शायद नहीं. यह कहानी है भारतीय सेना के लांसनायक रहे मेरठ निवासी मुहम्मद आरिफ की.

कारगिल युद्ध के दौरान आरिफ पाकिस्तानी सेना के हाथों गिरफ्तार हुए और उन्हें पाकिस्तानी जेल में डाल दिया गया. पाकिस्तान की जेल में कई साल गुजारने के बाद आरिफ को रिहाई तो मिली लेकिन घर लौटने पर उनकी जिंदगी का एक ओर संघर्ष उनका इंतजार कर रहा था.

कारगिल युद्ध शुरू होने से पहले मुहम्मद आरिफ की शादी बुलंदशहर की गुड़िया से हुई थी. निकाह के महज 10 दिन ही बीते थे कि आर्मी कंट्रोलरूम ने आरिफ की छुट्टियां रद्द कर दी और उन्हे तत्काल वापिस बुला लिया गया. बताया गया कि सरहद पर युद्ध शुरू हो चुका है. देश की रक्षा की खातिर आरिफ ने नई नवेली दुल्हन को उसके हाल पर छोड़ा और रणभूमि के लिए कारगिल रवाना हो गये.

युद्ध के दौरान दुश्मनों से लड़ते हुए मुहम्मद आरिफ द्रास की पहाड़ियों में लापता हो गये. युद्ध चलता रहा और भारत ने पाकिस्तान के दांत खट्टे कर उन्हें रणभूमि में धूल चटाई. मगर युद्ध खत्म होने के बाद भी आरिफ का पता नही चल सका. आरिफ की दुल्हन गुड़िया और आरिफ के घरवाले उनकी वापिसी के इंतजार में पलकें बिछाये बैठे थे. आखिरकार, भारतीय सेना ने आरिफ को भगोड़ा घोषित कर दिया. परिवार की उम्मीदें टूट गई. आरिफ की मां उसके गम में चल बसी.

जब आरिफ की गुड़िया बनी तौफीक की बेगम आरिफ के भगोड़ा घोषित होने के बाद उसके लौटने की उम्मीदें खत्म हो चुकी थी. आरिफ के इंतजार में गुड़िया की आंखें पथरा चुकी थी. दोनों परिवारों ने अब गुड़िया की बेरंग जिंदगी की रौनक वापिस करने की सोची. उन्होंने गुड़िया की शादी गुरूग्राम के पटौदी निवासी तौफीक से कर दी. तौफीक गुड़िया के परिवार का पहले से रिश्तेदार था.

पाकिस्तान से आई चिठ्ठी ने फिर मचाई जिंदगी में खलबली गुड़िया ने सोचा कि यही उसकी जिंदगी की नियति है. मगर अभी भी इस कहानी में बहुत कुछ बाकी थी. 2004 में आरिफ के भाई हामिद को पाकिस्तान के रावलपिंडी जेल से लिखी एक चिठ्ठी मिली. यह चिठ्ठी खुद आरिफ ने लिखी थी. आरिफ ने चिठ्ठी में लिखा कि वह जिंदा है और दुश्मन पाकिस्तान के हाथों कैद करके रावलपिंडी जेल में रखा गया है. आरिफ ने लिखा कि हिन्दुस्तान की हुकुमत उसकी रिहाई का इंतजाम करे.

मेरठ के जिलाधिकारी के जरिये आरिफ की बात भारत सरकार तक पहुंची और फिर पाकिस्तान के हुक्मरानों तक. जेनेवा संधि के तहत कुछ ही महीनों बाद आरिफ की रिहाई हो गई. बाधा बार्डर पर आरिफ का पूरा परिवार उसे लेने पहुंचा, लेकिन परिवार के बीच गुड़िया नहीं थी. आरिफ को बताया गया कि उसकी वापिसी की उम्मीदें खत्म हो चुकी थी. इसलिए गुड़िया की जिंदगी तौफीक के साथ तय कर दी गई.

जब आरिफ बोले- गुड़िया मेरी दुल्हन, हर हाल में लाऊंगा वापस घर लौटने पर आरिफ ने गुड़िया को वापस लाने का फैसला कर लिया. आरिफ घर लौट आये हैं. यह खबर जब गुड़िया को लगी तो वह अपने परिवार के साथ आरिफ से मिलने मेरठ के मुंडाली गांव चली आई. आरिफ अब गुड़िया को हासिल करना चाहते थे मगर गुड़िया तौफीक के बच्चे की मां बनने वाली थी. उसकी कोख में 7 महीने का बच्चा था.

पंचायतों का दौर चला. सभी के घरवाले जुटे. कई दिनों तक बातचीत और गुड़िया की वापिसी के विकल्प खोजे जाते रहे. आरिफ गुड़िया को घर लाना चाहते थे. वह चाहते थे कि बच्चे के जन्म के बाद बच्चा तौफीक को चला जाये. लेकिन गुड़िया बिना बच्चे के घर वापिस लौटने को तैयार नहीं थी.

जब आरिफ की जिंदगी से हमेशा के लिए चली गई गुड़िया आरिफ ने गुड़िया को खुद अपनी जिंदगी से अलग नहीं किया था इसलिए शरीयत के मुताबिक गुड़िया अब भी आरिफ की बीबी थी. इस्लामिक गुरूओं के दखल के बाद गुड़िया ने आरिफ की जिंदगी में वापस लौटने का फैसला कर लिया. शर्त यह थी कि बच्चे के जन्म के दस दिन बाद बच्चे को तौफीक के हाथों सौंप दिया जायेगा. मगर वह दिन कभी न आ सका. बच्चे के जन्म के बाद गुड़िया को एनीमिया हो गया और 2006 में उसकी मौत हो गई.

आरिफ की दुसरी शादी छलौली गांव की शाइस्ता से हुई मगर दो साल बाद ब्लड कैंसर होने की वजह से शाइस्ता की मौत हो गई. आरिफ की तीसरी शादी शाइस्ता की बहिन नाजरीन से हुई है. फिलहाल, आरिफ नाजरीन और बच्चों के साथ अपनी जिंदगी बसर कर रहे है और सेना में प्रमोशन पाकर सूबेदार हो गये हैं.