Kumbh Mela 2019: ‘हर हर महादेव’ और ‘गंगा मैया की जय’ के उद्घोष के साथ लाखों श्रद्धालुओं ने माघी पूर्णिमा के शुभ अवसर पर गंगा, यमुना और पौराणिक गाथाओं में वर्णित सरस्वती नदियों के संगम पर डुबकी लगाई. कल्पवासी तीर्थयात्रियों के लिए माघी पूर्णिमा को महीने भर चलने वाली तपस्या का समापन माना जाता है. तो आइए जानते हैं क्या होता है कल्पवास और किया है इसका महत्व... माघी पूर्णिमा कहा जाता है कि यह दिन देवताओं के गुरू बृहस्पति की पूजा से जुड़ा हुआ है. ऐसा माना जाता है कि इसी दिन हिन्दू देवता गंधर्व स्वर्ग से पधारे थे. इस दिन पवित्र घाटों पर तीर्थयात्रियों की बाढ़ इस विश्वास के साथ आ जाती है कि वे सशरीर स्वर्ग की यात्रा कर सकेगें. कल्पवास का कुंभ में बड़ा महत्व होता है. कल्पवास का अर्थ होता है संगम के तट पर ध्यान करना. माना जाता है कि कल्पवास का समय पौष मास के शुक्लपक्ष से माघ मास के एकादसी तक होता है. पुराणों की माने तो कल्पवास करने वालों को 21 नियमों का पालन करना जरूरी होता है. इस 21 नियमों में सत्यवचन, अहिंसा, इन्द्रियों का शमन, सभी प्राणियों पर दयाभाव, ब्रह्मचर्य का पालन, व्यसनों का त्याग, सूर्योदय से पूर्व शैय्या-त्याग, नित्य तीन बार सुरसरि-स्न्नान, त्रिकालसंध्या, पितरों का पिण्डदान, यथा-शक्ति दान, अन्तर्मुखी जप, सत्संग, क्षेत्र संन्यास अर्थात संकल्पित क्षेत्र के बाहर न जाना, परनिन्दा त्याग, साधु सन्यासियों की सेवा, जप एवं संकीर्तन, एक समय भोजन, भूमि शयन, अग्नि सेवन न कराना शामिल है. कब से शुरू हुआ कल्पवास कल्पवास की शुरुआत की बात करें तो यह वेदकालीन अरण्य संस्कृति की देन है. यानी यह हजारों साल से चला आ रहा है. ऐसी मान्यता है कि जब तीर्थ प्रयाग में कोई शहर नहीं था तब यह भूमि ऋषियों की तपोस्थली थी. प्रयाग में गंगा-जमुना के आसपास घना जंगल था. इस जंगल में ऋषि-मुनि ध्यान और तप करते थे. ऋषियों ने गृहस्थों के लिए कल्पवास का विधान रखा. क्या है मान्यता ऐसी मान्यता है कि जो कल्पवास करता है उसका अगला जन्म राजा के रूप में होता है. साथ ही कहा जाता है कि मोक्ष भी उसे ही मिलता है जो कल्पवास करता है.