मिठाई
कमल उपाध्याय
सुबह-सुबह मालिक बाबू आकर अपनी कुर्सी पर बैठे ही थे कि शालिक हरवाह ने आकर उनके पांव पकड़ लिए. ‘मालिक दीवाली है!’ 'ये तो हमें भी पता है कि दीवाली है, इसमें नई बात क्या है?'
‘मालिक दो साल हो गए, घर पर सभी को मिठाई खाए, आपके दादा जी की बरखी के बाद बूंदी का एक दाना देखने को नहीं मिला है. आजकल हमार ननका मिठाई खाने की जिद पर अड़ा है, बिना मिठाई खाए खाना ना खाएगा.’
मालिक बाबू ने शालिक को दोनों आंखों से घूरते हुए देखा. ‘तुम्हार ननका कहीं का लाट साहब है क्या? मिठाई नहीं मिलेगी तो खाना नहीं खाएगा! अरे ऊ कौन सा इस देश का युवराज है कि बिना खाए मर गया तो देश के ऊपर विपदा आ जाएगी कि अगला नेतृत्व किसे दे?'
मालिक बाबू की फटकार के बावजूद शालिक वहां से हटने को तैयार नहीं था. मालिक बाबू ने बड़ी जोर से उसे लात मारकर एक किनारे धकेल दिया और उठकर बाहर की तरफ चल दिए. शालिक वहां से उठा और अपना अंगोछा सर पर बांधते हुए, खेत में हल चलाने चला गया.
दोपहर को अचानक हवेली में चारों तरफ कोहराम मच गया. मालिक बाबू चक्कर खाकर गिर पड़े थे. डॉक्टर साहब को तुरंत बुलाया गया. डॉक्टर साहब ने विलायती सुई लगाई और मालिक का दर्द दस मिनट में छू मंतर हो गया. अधिक स्वस्थ तो नहीं हुए लेकिन कम से कम नौकरों को गरियाने भर की ताकत उनमें फिर आ गई. डॉक्टर साहब ने जाते-जाते कहा, "डरने की कोई बात नहीं है. आज दिन भर आराम करना. कम से कम बोलने की कोशिश करना. अधिक बोलने और गुस्सा होने से ब्लड प्रेशर बढ़ सकता है."
डॉक्टर साहब की बात सुनकर मालिक बाबू से नहीं रहा गया, "अरे डॉक्टर बाबू, ई सब मजदूर लोग तो हमार जान लेकर ही मानेंगे. एक काम ढंग से नहीं करता और हमें चिल्लाने और गरियाने के लिए मजबूर कर देता है."
मालिक बाबू की बात पर डॉक्टर साहब थोड़ा सा मुस्कराते हुए बोले, "अच्छा आराम करिए. मैं कल शाम को फिर देखने आ जाऊंगा." डॉक्टर ने कुछ समय तक मालिक बाबू को बिना कुछ बोले, आराम करने के लिए कहा था. इसलिए वो चाहकर भी किसी नौकर पर चिल्ला नहीं पाए.
शाम के वक्त मालिक बाबू अपनी राजशाही कुर्सी पर बैठकर हुक्का फूंक रहे थे कि उन्हें ध्यान आया कि आज सुबह-सुबह शालिक आकर कलह कर रहा था. जिस तरह गीदड़ की मौत आने पर वो शहर की तरफ भागता है वैसा ही कुछ शालिक के साथ हुआ. मालिक बाबू जब मन ही मन अपना दिन खराब होने का आरोप शालिक पर लगा रहे थे, शालिक फिर मालिक बाबू के पैरों पर आकर गिर गया. शालिक शायद आज घर से ठान के आया था कि बिना मिठाई के पैसे लिए वापस नहीं जाएगा.
"मालिक दीवाली है, रहम कर दो ननका को मिठाई खिलाना है."
मालिक बाबू ने पहले तो शालिक को फिर से लात मारने की सोची लेकिन अचानक उनका मन कुछ सोचकर, बदल गया. मालिक बाबू ने बड़े प्यार से शालिक को उठाया, "अरे इस बार ननका को हम जरूर मिठाई खिलाएंगे, तू यहां बैठ हम अभी मिठाई लेकर आते हैं."
शालिक ने मालिक बाबू को टोकते हुए कहा, "अरे मालिक हम आप की मिठाई खाएंगे तो हमें पाप लगेगा. हम तो चोटा की मिठाई में खुश हो जाएंगे. कुछ रुपए दे दीजिए बस."
मालिक बाबू ने शालिक की बात पर ध्यान नहीं दिया और कमरे के भीतर चले गए. मालिक बाबू कुछ ही पल में कमरे में से मिठाई का एक डिब्बा लेकर बाहर आए. शालिक हरवाह ने मालिक बाबू के पैर छुए और मिठाई का डिब्बा लेकर घर की तरफ चल दिया.
शालिक का घर नाम का घर था. एक तरफ मिट्टी की दीवार थी और बाकी के तीन तरफ लकड़ी लगाकर, उसपर धूप और बरसात से बचने के लिए एक छान रख दिया गया था. शालिक को घर ज्यों ही नजर आया, "उसने ख़ुशी के मारे, चिल्लाना शुरू कर दिया. ननका हम तोहार खातिर कुछ लाए हैं, सोना नहीं अभी.” ननका सो चुका था, ननका की बड़ी बहन ने उसे जगाते हुए कहा, "ननका उठ, जल्दी उठ. बाबा तेरे लिए मिठाई लाए हैं." ननका उठकर अपनी आंखें मींजने लगा.
बड़की ने ननका की आंखों को पानी से धोते हुए कहा, "बाबा, आज ननका मिठाई की जिद करते - करते सो गया और कुछ खाया भी नहीं." ननका की मां की मृत्यु उसे जन्म देते समय ही हो गई थी. उसके बाद उसकी चारों बहनों ने उसे बहुत लाड़ प्यार से पाला था और शालिक उसपर जान छिड़कता था. शालिक ने बड़की की बात सुनते ही ननका को मिठाई का डिब्बा थमा दिया.
"आज ननका खाना नहीं खाएगा, बड़के मालिक ने शक्कर वाली मिठाई भेजी है उसके लिए."
ननका ने मिठाई के डिब्बे में से, अपनी बहनों को और अपने बाबा को एक-एक मिठाई दी.
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(कमल उपाध्याय की कहानी का यह अंश प्रकाशक जगरनॉट बुक्स की अनुमति से प्रकाशित)