आरएसएस प्रचारकों, बजरंग दल के कार्यकर्ताओं, सनातन संस्था के वकीलों और अभिवन भारत के अग्रणी सदस्यों से बातचीत करने के बाद धीरेंद्र झा ने उनके काम करने के माध्यमों, तरीकों और हिंदुत्व विचारधारा के साथ उनके गहरे संबंधों को पेश किया है.
हिंदू ऐक्य वेदी
धीरेंद्र के. झा
केरल में सारी हिंदुत्व की राजनीति – चाहे वह हिंदू ऐक्य वेदी की हो या फिर आरएसएस के किसी अन्य संगठन की – राज्य के कोचि स्थित संघ मुख्यालय से ही निकलती है. हिंदू ऐक्य वेदी के महासचिव कुम्मानम राजशेखरन ने आरएसएस के मुख्यालय में विस्तार से हुए एक इंटरव्यू में यही मुझसे कहा था.
राजशेखरन, जिनका सुकुमार चेहरा और समान रूप से मधुर आवाज़ उस संगठन की धुरी रही है जो शशिकला को अपने शुभंकर के रूप में पेश कर रहा था. हिंदू ऐक्य वेदी के इन दो नेताओं में बहुत कम समानता थी परंतु यह कभी भी दोनों के मधुर रिश्तों के बीच नहीं आई. निश्चित ही उनमें अल्पसंख्यकों के प्रति पूर्वाग्रह और संघ परिवार के प्रति प्रतिबद्धता समान थी.
राजशेखरन हालांकि उत्तेजित करने वाले भाषण नहीं दे सकते थे परंतु शशिकला से इतर वह कुशाग्र बुद्धि वाले नेता थे जो हर तरह के सवालों का सामना कर सकते थे. शायद यही वजह थी कि आरएसएस ने केरल में बीजेपी की राजनीति के लिए ज़मीन तैयार करने के इरादे से उन्हें वहां एक ‘गैर राजनीतिक’ संगठन स्थापित करने और इसका संचालन करने का दायित्व सौंपा. यह 1992 में तिरुअनंतपुरम के निकट पूनथुरा में हुए दंगों के तुरंत बाद की बात है.
कोट्टयम निवासी राजशेखर ने एक पत्रकार के रूप में अपना जीवन शुरू किया था. 1976 में उन्हें सार्वजनिक उपक्रम भारतीय खाद्य निगम में नौकरी मिली गयी थी. वह बताते हैं, ‘ मैंने 1987 में यह नौकरी छोड़ दी और आरएसएस का प्रचारक बन गया. तभी से मैं एक प्रचारक ही हूं.’
जुलाई 1992 में पूनथुरा में हुए दंगों का सीधा संबंध रामजन्म भूमि-बाबरी मस्जिद विवाद से था. इन दंगों ने पांच व्यक्तियों की जान ले ली थी. बताते हैं कि पूनथुरा दंगों में मुस्लिम कट्टरपंथी संगठन इस्लामिक सेवक संघ (आईएसएस) ने मुख्य भूमिका निभाई थी. आशंकाओं के माहौल में इस दंगे की सबसे महत्वपूर्ण परिणति इस्लामिक सेवक संघ और कुछ अन्य मुस्लिम संगठनों द्वारा मुस्लिम ऐक्य वेदी औार आरएसएस द्वारा हिंदू ऐक्य वेदी संगठन के गठन रूप में हुई. इन दोनों ही संगठनों को जनता का लोकप्रिय समर्थन नहीं मिला. हालांकि मुस्लिम ऐक्य वेदी अपने गठन के कुछ समय बाद ही विलुप्त हो गई जबकि आरएसएस के मुख्य प्रतिनिधि के रूप में राजशेखरन के साथ हिंदू ऐक्य वेदी अस्तित्व में बनी रही, भले ही बैनरों में ही रही हो.
राजशेखरन बताते हैं, ‘पूनथुरा के दंगों के तुरंत बाद आरएसएस ने तिरुअनंतपुरम में हिंदू संगठनों और संन्यासियों की एक बैठक आयोजित की और इसमें ही हिंदू ऐक्य वेदी का गठन करने का निर्णय लिया गया.’ श्री राम दासम मठम के स्वामी सत्यानंद इस नए संगठन के चेयरमैन बने जबकि आरएसएस के वरिष्ठ प्रचारक जय शिशुपालन को इसका महासंयोजक और कुम्मानम राजशेखरन को इसका संयुक्त संयोजक बनाया गया.
राजशेखरन बताते हैं, ‘1990 के पूरे दशक और 21वीं सदी के शुरुआती सालों में हिंदू ऐक्य वेदी का मुख्य रणनीतिक मकसद विभिन्न हिंदू संगठनों और व्यक्तियों के बीच तालमेल बिठाना था. परंतु मई, 2003 के पहले सप्ताह में मराड में हुए सांप्रदायिक दंगे ने हमारे संगठन को एक नई गति प्रदान कर दी.’
कोज़ीकोझ ज़िले के एक तटवर्ती गांव मराड में नौ व्यक्तियों को मार डाला गया था. न्यायमूर्ति पी. जोसेफ आयोग की रिपोर्ट के अनुसार ये दंगे जनवरी, 2002 में गांव में राजनीतिक वजह से हुई पांच व्यक्तियों की हत्या की घटना और इस अपराध के आरोपी व्यक्तियों पर मुकदमा चलाने में कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट सरकार का ‘अनावश्यक विलंब’ का नतीजा थे.(6) यह रिपोर्ट 2006 में पेश की गई. इस रिपोर्ट में कहा गया था कि जनवरी, 2002 की घटना के संबंध में 115 मामलों में 393 व्यक्तियों के खिलाफ आरोप पत्र दाखिल किए गए थे, इनमें 213 आरएसएस और बीजेपी के कार्यकर्ता थे जबकि बाकी मुस्लिम लीग, मार्क्सवादी पार्टी, इंडियन नेशनल लीग और नेशनल डेमोक्रेटिक फ्रंट के लोग थे. इसमें कहा गया कि आरोपियों पर मुकदमा चलाने में हुई देरी का लाभ उठाते हुए मुस्लिम कट्टरपंथियों, आतंकियों और दूसरी ताकतों ने मुस्लिम पीड़ितों के रिश्तेदारों की शिकायतों को सुना और मराड के हिंदुओं से प्रतिशोध लेने की मुख्य वजह के रूप में इस्तेमाल किया.(7)
जहां केरल अपने हाल के इतिहास में हुए सबसे खराब सांप्रदायिक घटनाओं से उत्पन्न स्थिति से निबटने का प्रयास कर रहा था, हिंदू ऐक्य वेदी ने इस तनावपूर्ण वातावरण का इस्तेमाल राज्य में अपने संगठनात्मक ढांचे की बुनियाद रखने के लिए किया. राजशेखरन बताते हैं, ‘मराड के 2003 के दंगों के बाद हिंदू ऐक्य वेदी एक जन संगठन बन गया. अब हमारे पास पूरे राज्य में ज़िला स्तर की समितियां हैं, समय के साथ ही हम अपने संगठन को ज़मीनी स्तर तक ले गए और गांव और ताल्लुका स्तर तक समितियां गठित की गईं.’
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(धीरेंद्र के. झा की किताब हिंदुत्व के मोहरे का यह अंश प्रकाशक जगरनॉट बुक्स की अनुमति से प्रकाशित)