पुरानी पेंशन को देश में कुछ राज्य सरकार ने लागू कर दिया है. हाल ही में हिमाचल प्रदेश में बनी कांग्रेस ने भी इस वादे को पूरा किया. लेकिन रिजर्व बैंक ने पुरानी पेंशन योजना को लागू करने पर चेतावनी जारी की है.


आरबीआई ने कहा है कि राज्य सरकारों के इस कदम से वित्तीय प्रबंधन का एक बड़ा खतरा पैदा हो सकता है. आरबीआई ने राज्यों के वित्त व्यवस्था पर वार्षिक रिपोर्ट जारी की है. इसमें रिजर्व बैंक ने कोरोना के बाद राज्यों के वित्तीय हालात को काफी बेहतर माना है लेकिन साथ ही पुरानी पेंशन स्कीम को लेकर चिंता भी जाहिर की है.


आरबीआई ने साफ शब्दों में कहा है कि अगर राज्य पुरानी पेंशन स्कीम को लागू करते हैं तो उनके सामने भारी वित्तीय संकट खड़ा हो सकता है. आरबीआई के शब्दों में कहें तो राजकोषीय संसाधनों में वार्षिक बचत अल्पकालिक है.  वर्तमान के खर्चों को भविष्य के लिए टालकर राज्य आने वाले सालों में बिना फंड वाली पेंशन देनदारियों का रिस्क उठा रहे हैं


आरबीआई ने राज्यों को हेल्थ, एजुकेशन, इंफ्रास्ट्रक्चर और ग्रीन एनर्जी पर खर्च करने की सलाह दी है. अब सवाल इस बात का उठता है कि सरकारी कर्मचारियों के कल्याण की इस योजना पर खर्च करने से आरबीआई मना क्यों कर रहा है. इसको जानने से पहले ये समझना जरूरी है कि पुरानी पेंशन योजना और नई पेंशन योजना में फर्क क्या है?


पुरानी पेंशन योजना (OPS)
पुरानी पेंशन योजना के तहत जब कोई सरकारी कर्मचारी रिटायर होता है तो उसे सरकार द्वारा कर्मचारी की तत्कालिक सैलरी का आधा हिस्सा यानी 50 फीसदी भाग पेंशन के तौर पर देने जाने का नियम है. इसमें कर्मचारी के सेवाकाल का कोई असर नहीं पड़ता है. 


साथ ही हर साल महंगाई भत्ता बढ़ने के पर नए वेतनमान  लागू होने के साथ ही सैलरी में इजाफा हो जाता था. इतना ही नहीं पेंशन पाने वाले की मृत्यु के बाद उसकी पत्नी या अन्य आश्रित को पेंशन मिलती है. 


नई पेंशन स्कीम (NPS)
1 अप्रैल, 2004 को या उसके बाद सरकारी सर्विस में शामिल होने वाले केंद्र सरकार के कर्मचारियों के लिए एनपीएस अनिवार्य है और लगभग सभी राज्य सरकारों ने इसे अपने कर्मचारियों के लिए अपनाया है. आंकड़ों की मानें तो दिसंबर 2022 तक, 59.78 लाख राज्य सरकार के कर्मचारी एनपीएस का हिस्सा हैं, जिनकी कुल संपत्ति 4.27 लाख करोड़ रुपये है.


इस स्कीम के तहत सरकारी कर्मचारियों द्वारा अपनी सैलरी का 10 फीसदी पेंशन के लिए दिया जाता है और सरकार की तरफ से इसमें 14 फीसदी का योगदान दिया जाता है. ओपीएस कर्मचारियों के लिए ज्यादा फायदेमंद नजर आती है.


इसको इस तरह समझते हैं कि मान लिया किसी कर्मचारी की बैसिक सैलरी 30500 रुपये है. एनपीएस के तहत उसको मासिक पेंशन 2417 रुपये मिलेगी. वहीं पुरानी पेंशन स्कीम में उसको 15250 रुपये मिलेगी.


RBI की बड़ी चिंता
बजट 2022-23 के अनुमान के मुताबिक पुरानी पेंशन लागू करने वाले राज्यों को 16 फीसदी ज्यादा खर्च करना होगा. बीते साल जहां ये खर्च 399,813 करोड़ था वहीं ये इस साल  463,436 तक पहुंच जाएगा. जिन राज्यों में पुरानी पेंशन लागू की है उनमें कई आर्थिक हालत पहले से ही खराब हैं.


इन राज्यों ने लागू कर दिया है ओपीएस
छत्तीसगढ़, राजस्थान, झारखंड, पंजाब और हिमाचल प्रदेश सरकारें अपने राज्यों में पुरानी पेंशन स्कीम लागू कर दिया है.
 
ओपीएस और राजनीति
 एसबीआई की रिसर्च रिपोर्ट के मुताबिक पेंशन योजना हमेशा से राजनीतिक दलों के लिए एक मुद्दा रहा है, इसके पीछे कारण साफ है कि इससे वर्तमान आयु वर्ग के लोग भी फायदा उठा सकते हैं, भले ही उन्होंने पेंशन में थोड़ा भी योगदान नहीं दिया हो. वोट बैंक की राजनीति के तहत सरकारें इसे लागू कर चुनाव जीतना चाहती हैं. 


अर्थशास्त्री भी राज्यों के कदम से नहीं रखते सरोकार
ऊपरी तौर पर देखने पर ओपीएस यानी पुरानी पेंशन स्कीम कर्मचारियों के लिए बेहतर नजर आती है लेकिन अर्थशास्त्री हमेशा से राज्यों के इस कदम की आलोचना करते रहे हैं. मनमोहन सरकार में सहयोगी रहे मोंटेक सिंह आलूवालिया ने भी राज्यों के इस कदम को गलत बताया है.
 
दरअसल ओपीएस को हमेशा से आर्थिक रूप से अस्थिर माना जाता है और माना जाता है कि राज्य सरकारों के पास इसे फंड करने के लिए पैसा नहीं है. इस बारे में जब हमने आर्थिक मामलों के जानकार आकाश जिंदल से बात की तो उन्होने साफ शब्दों में कहा कि सरकारी कर्मचारियों का ध्यान रखना उनके कल्याण के लिए काम करना सरकार की और हम सबकी ड्यूटी है. लेकिन ऐसा करने के और भी कई तरीके हैं. 


उनका कहना है कि पुरानी पेंशन स्कीम को लागू करने के लिए सरकारों के पास काफी वित्तीय व्यवस्था होनी चाहिए. इस स्कीम को लागू करने के लिए सरकार के पास बहुत ज्यादा पैसा होना चाहिए. इतनी बड़ी रकम की व्यवस्था करना एक चुनौती है. सरकार के पास एक सीमित मात्रा में फंड होता है. सरकार को विकास और कल्याण संबधी कार्यों पर इंफ्रास्ट्रक्चर और अस्पताल बनवाने के लिए भी पैसा चाहिए. इसीलिए सरकार को अपने कर्मचारियों के कल्याण के लिए ओपीएस की बजाए कुछ अन्य तरीके ढूंढने चाहिए.