आज यानी 4 दिसंबर की शाम 7 बजे रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन भारत पहुचेंगे. वह नई दिल्ली में 23वें भारत-रूस वार्षिक सम्मेलन में हिस्सा लेंगे. पुतिन दिल्ली में सीक्रेट जगह रुकेंगे, जिसका ब्योरा सार्वजनिक नहीं किया गया है. 4-5 दिसंबर को दिल्ली मल्टी लेयर सिक्योरिटी के घेरे में रहेगी. पुतिन और PM मोदी की मुलाकात ऐतिहासिक होने वाली है, क्योंकि पूरी दुनिया की नजरें इसपर टिकीं हैं. सबसे ताजा उदाहरण जर्मनी, फ्रांस और ब्रिटेन आर्टिकल है. ABP एक्सप्लेनर में समझेंगे कि पुतिन की भारत यात्रा ऐतिहासिक क्यों और अमेरिका-यूरोप को इससे क्या दिक्कतें समेत 10 जरूरी सवालों के जवाब...

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सवाल 1- पुतिन की भारत यात्रा का एजेंडा क्या है?जवाब- रूस-यूक्रेन युद्ध के बाद व्लादिमीर पुतिन पहली बार भारत आ रहे हैं. यह दौरा दोनों देशों के बीच विशेष और विशेषाधिकार की रणनीति को मजबूत करने का एक बड़ा मौका है, जहां, राजनीतिक, आर्थिक, रक्षा, ऊर्जा, विज्ञान-तकनीक, संस्कृति और मानवीय क्षेत्रों की समीक्षा होगी. क्रेमलिन ने इसे द्विपक्षीय संबंधों के पूरे स्पेक्ट्रम की समीक्षा का महत्वपूर्ण मंच बताया है, जो दोनों देशों के नेताओं को भविष्य की दिशा तय करने का मौका देगा.

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पुतिन शाम 7 बजे नई दिल्ली पहुंचेंगे. उनकी यात्रा की शुरुआत प्रधानमंत्री मोदी के निवास पर प्राइवेट डिनर के साथ होगी. यह अनौपचारिक बैठक दोनों नेताओं को महत्वपूर्ण मुद्दों पर खुलकर बात करने का मौका देगी, जहां वह व्यक्तिगत स्तर पर रिश्तों को मजबूत करेंगे. अगले दिन यानी 5 दिसंबर को सुबह पुतिन राजघाट पर महात्मा गांधी की समाधि पर पुष्पांजलि अर्पित करेंगे. इसके बाद हैदराबाद हाउस में पीएम मोदी के साथ द्विपक्षीय वार्ता होगी, जिसमें दोनों पक्षों के वरिष्ठ अधिकारी शामिल होंगे.

राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू पुतिन के लिए राज्य भोज का आयोजन करेंगी. भारत-रूस व्यापार फोरम का उद्धाटन सत्र होगा, जहां दोनों नेता उद्योगपतियों को संबोधित करेंगे. पुतिन के साथ रूस के पुतिन के साथ सात मंत्री आ रहे हैं, जिनमें रक्षा मंत्री आंद्रेई बेलौसोव, वित्त मंत्री एंटोन सिलुआनोव, कृषि मंत्री ओक्साना लुट, आर्थिक विकास मंत्री माक्सिम रेशेतनिकोव और स्वास्थ्य मंत्री मिखाइल मुराश्को शामिल होंगे. साथ ही, सेबरबैंक, रोसोबोरोन एक्सपोर्ट, रोसनेफ्ट और गैजप्रोमनेफ्ट जैसी प्रमुख कंपनियों के सीईओ भी डेलिगेशन का हिस्सा हैं, जो व्यापारिक समझौतों को गति देगी.

सवाल 2- पुतिन के भारत आने पर सिक्योरिटी कैसी होगी?जवाब- पुतिन जब भारत पहुंचेंगे तो उनके कॉन्वॉय फिक्स होगा. भारत में वह PM मोदी और राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू से कब मिलेंगे, कैसे मिलेंगे, दरवाजा कौन खोलेगा, कौन फूल देकर स्वागत करेगा और किसने कौन से कलर के कपड़े पहने होंगे, यह सब पहले से तय होगा. अगर किसी शख्स ने दूसरे रंग के कपड़े पहने, तो सिक्योरिटी अलर्ट हो जाएगी और पुतिन को सुरक्षित किया जाएगा.

पुतिन के साथ FSO की स्पेट्सनाज यूनिट यानी अल्फा ग्रुप और विमपेल जैसी स्पेशल फोर्स यूनिट तैयार रहेंगी. ये यूनिट्स रूसी सैन्य खुफिया एजेंसी GRU के साथ लगातार संपर्क में रहती हैं. कोई खतरा होने पर यह यूनिट्स पुतिन को किसी सुरक्षित जगह या उनके विमान IL-96 जेटलाइनर विमान तक एस्कॉर्ट करके ले जाती हैं.

IL-96 जेटलाइनर विमान एक उड़ता हुआ कमांड सेंटर है, जिसमें रडार से लेकर सभी जरूरी सिक्योरिटी फीचर्स मौजूद होते हैं. पुतिन के क्रेमलिन से बाहर रहने के दौरान रूसी खुफिया एजेंसी, साइबर टीम एक्टिव रहती हैं.

सवाल 3- पुतिन के भारत आने से क्या फायदा होगा?जवाब- रूस ने पहले ही रूसी संसद (डूमा) से रेसिप्रोकल एक्सचेंज ऑफ लॉजिस्टिक्स सपोर्ट (RELOS) समझौते को मंजूरी दिला दी है, जो 18 फरवरी 2025 को हस्ताक्षरित हुआ था. यह समझौता दोनों देशों की सेनाओं को एक-दूसरे के बंदरगाहों, हवाई अड्डों और सैन्य सुविधाओं का इस्तेमाल करने की अनुमति देगा, जिससे अभ्यास, रखरखाव और संकट के समय त्वरित समर्थन संभव हो सकेगा.

  • भारत की सेना का 46% हथियार रूस से आते हैं. पुतिन की यात्रा में S-400 एयर डिफेंस सिस्टम के 5 और स्क्वाड्रन (लगभग 5,000 करोड़ रुपए की डील) खरीदने पर चर्चा होगी. यह सिस्टम मई 2025 में 'ऑपरेशन सिंदूर' में पाकिस्तान के खिलाफ बहुत काम आया था.
  • पांचवीं पीढ़ी के सुखोई-57 फाइटर जेट के 2-3 स्क्वाड्रन पर फैसला हो सकता है. यह अमेरिकी F-35 का सस्ता विकल्प बनेगा.
  • पुराने T-72 टैंकों के लिए 1,000 हॉर्सपावर इंजन की डील टेक्नोलॉजी ट्रांसफर के साथ हो सकती है, जो मार्च 2025 में साइन हुई थी. इसके जरिए भारत में ही प्रोडक्शन बढ़ेगा. इससे नौकरियां और 'मेक इन इंडिया' को बूस्ट मिलेगा.
  • रूस भारत का सबसे बड़ा तेल सप्लायर है. 2025 की पहली छमाही में भारत ने रोज 1.6 मिलियन बैरल रूसी क्रूड तेल खरीदा, जो 2020 में सिर्फ 50,000 था. इससे तेल की कीमतें कम रहीं और भारत को सालाना अरबों डॉलर की बचत हुई थी.
  • पुतिन की यात्रा में आर्कटिक शेल्फ और फार ईस्ट में जॉइंट प्रोजेक्ट्स जैसी नई एनर्जी डील्स होंगी. छोटे मॉड्यूलर न्यूक्लियर रिएक्टर (SMRs) महाराष्ट्र में बनाने का MoU आगे बढ़ेगा.
  • ट्रंप ने रूसी तेल खरीदने पर 50% टैरिफ लगाया था, जिसका जवाब देने के लिए 'स्पेशल मैकेनिज्म' बनेगा, ताकि तेल सप्लाई बिना रुकावट चले.
  • भारत की 40% तेल जरूरत रूस से पूरी होती रहेगी, जो महंगाई कंट्रोल करेगी. यह 2030 तक 100 बिलियन डॉलर ट्रेड टारगेट में एनर्जी बड़ा रोल निभाएगा.
  • 2024-25 में भारत-रूस ट्रेड 68.7 बिलियन डॉलर रहा, जो 2022 से 6 गुना ज्यादा है. लेकिन भारत का डेफिसिट 59 बिलियन डॉलर है. पुतिन की यात्रा में इसे बैलेंस करने के लिए भारतीय निर्यात पर फोकस करके रूस में मार्केट एक्सेस बढ़ेगा.
  • यूरेशियन इकोनॉमिक यूनियन (EAEU) के साथ फ्री ट्रेड एग्रीमेंट (FTA) तेज होगा. अगस्त 2025 का 18-महीने प्लान MSMEs और किसानों के लिए रूस-बेलारूस मार्केट खोलेगा.
  • नेशनल करेंसी (रुपया-रुबल) में ट्रेड बढ़ेगा, डॉलर पर निर्भरता कम होगी. रूस से IT, एग्रीकल्चर और हेल्थकेयर में निवेश के लिए फोरम होगा.
  • इसके अलावा पुतिन की यात्रा से भारत की 'स्ट्रैटेजिक ऑटोनॉमी' मजबूत होगी. अमेरिकी टैरिफ के बावजूद रूस से डील्स जारी रख सकेंगे. यह अमेरिका को मैसेज देगा कि भारत अपना फैसला खुद लेगा. SCO और BRICS जैसे मंचों पर सहयोग बढ़ेगा. यूक्रेन, मिडिल ईस्ट जैसे मुद्दों पर बात होगी, जहां भारत शांति का मैसेज देगा. साइंस, टेक्नोलॉजी और कल्चर में MoUs साइन होंगे.

सवाल 4- अभी भारत और रूस के रिश्ते कैसे हैं?जवाब- भारत-रूस के रिश्ते मजबूत, बहुआयामी और रणनीतिक साझेदारी के हैं, जो दशकों पुरानी ऐतिहासिक नींव पर टिके हुए हैं और वैश्विक भू-राजनीतिक बदलावों के बावजूद स्थिर है. यह साझेदारी 2000 में 'रणनीतिक साझेदारी' के रूप में शुरू हुई थी, जिसे 2010 में 'विशेष और विशेषाधिकार प्राप्त रणनीतिक साझेदारी' का दर्जा दिया गया. आज यह दोनों देशों के बीच राजनीतिक, रक्षा, आर्थिक, ऊर्जा, विज्ञान-तकनीक, संस्कृति और अंतरराष्ट्रीय सहयोग के सभी क्षेत्रों में गहरी पैठ रखती है.

2025 में, जब रूस-यूक्रेन युद्ध के बाद वैश्विक दबाव बढ़ा है, भारत ने अपनी 'मल्टी-अलाइनमेंट' नीति के तहत रूस के साथ संबंधों को बनाए रखा है, जो अमेरिका और यूरोप के साथ बढ़ती नजदीकियों के बावजूद अपनी मजबूत है. पुतिन की भारत यात्रा इस साझेदारी को नई रफ्तार देगी, जहां 23वें भारत-रूस वार्षिक शिखर सम्मेलन के दौरान व्यापक चर्चा होगी. यह यात्रा कोविड के बाद पुतिन की पहली भारत यात्रा है और इसमें रक्षा, व्यापार तथा ऊर्जा जैसे मुद्दों पर नए समझौते साइन होने की संभावना है. राजनीतिक स्तर पर, दोनों देशों के नेता नियमित संपर्क में रहते हैं, जो संबंधों की गहराई को दर्शाता है.

  • 2025 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राष्ट्रपति पुतिन के बीच कई फोन कॉल्स हुईं, जिसमें 5 मई को पहलगाम आतंकी हमले के बाद चर्चा शामिल थी.
  • 1 सितंबर 2025 को चीन के तियानजिन में शंघाई सहयोग संगठन (SCO) शिखर सम्मेलन के दौरान दोनों की मुलाकात हुई, जहां उन्होंने द्विपक्षीय संबंधों को मजबूत करने पर जोर दिया
  • भारतीय विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने अगस्त 2025 में मॉस्को में रूसी विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव से मुलाकात की, जहां यूक्रेन संकट के शांतिपूर्ण समाधान और बहुपक्षीय मंचों पर सहयोग पर बात हुई.

भारत ने हमेशा संवाद और कूटनीति का पक्ष लिया है, और रूस ने भारत की तटस्थता की सराहना की है. अंतरराष्ट्रीय मंचों जैसे BRICS, SCO और G20 पर दोनों देश एक-दूसरे का समर्थन करते हैं, जहां भारत-रूस संबंध वैश्विक स्थिरता के लिए एक स्थिरक कारक के रूप में देखे जाते हैं. हाल ही में, रूसी राष्ट्रपति के सहायक यूरी उशाकोव ने कहा कि यह साझेदारी राजनीति, सुरक्षा, अर्थव्यवस्था, वित्त, परिवहन, विज्ञान-तकनीक और संस्कृति के क्षेत्रों में सक्रिय रूप से बढ़ा रही है.

सवाल 5- पीएम मोदी और पुतिन की मुलाकात पर दुनियाभर की नजरें क्यों टिकी हैं?जवाब- एक्सपर्ट्स के मुताबिक, यूक्रेन युद्ध के बाद पुतिन की यह पहली भारत यात्रा है और यह ऐसे समय हो रही है जब अमेरिका और यूरोप भारत पर रूस के साथ सैन्य और आर्थिक साझेदारी कम करने का दबाव डाल रहे हैं. लेकिन भारत अपनी दोस्ती को बनाए रखते हुए मल्टी-अलाइनमेंट नीति अपनाए हुए है. यह मुलाकात अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के शासन के तहत यूक्रेन शांति योजना के प्रस्तावों के बीचरही है, जहां ट्रंप ने भारत से रूसी तेल खरीद रोकने की अपील की है और 50% टैरिफ की धमकी दी है. इससे सवाल उठता है कि क्या यह शिखर सम्मेलन भारत को पश्चिम से दूर धकेलेगा या अपनी स्थिति को मजबूत करने का लीवर बनेगा.

क्रेमलिन के सहायक यूरी उशाकोव ने कहा कि इस मुलाकात से 10 अंतर-सरकारी समझौते और 15 से अधिक व्यावसायिक सौदे साइन होने की उम्मीद है. जो न सिर्फ भारत-रूस संबंधों को नई दिशा देंगे, बल्कि वैश्विक ऊर्जा बाजार, रक्षा निर्यात और बहुपक्षीय मंचों जैसे BRICS और SCO पर भी असर डालेंगे.

अमेरिकी CAATSA प्रतिबंधों के बावजूद भारत ने रूस के साथ सैन्य साझेदारी जारी रखी है और यह सौदा भारत की वायुसेना को मजबूत करेगा. पश्चिमी देश इसे एक चुनौती के रूप में देख रहे हैं. हाल ही में RELOS समझौता भी हुआ है, जो आर्कटिक और इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में सहयोग बढ़ाएगा. एक्सपर्ट्स का मानना है कि यह रक्षा सौदे न सिर्फ भारत की सुरक्षा को मजबूत करेंगे, बल्कि रूस के लिए वैकल्पिक बाजार बनेंगे.

भारत-रूस के बीच द्विपक्षीय व्यापार 2024-25 में 68.72 अरब डॉलर तक पहुंच गया है, जो महामारी के पहले 10 अरब डॉलर से सात गुना ज्यादा है. लेकिन यह मुख्य रूप से रूसी कच्चे तेल आयात पर निर्भर है, जो भारत के कुल आयात का 30-35% है. दोनों देश 2030 तक 100 अरब डॉलर के लक्ष्य को हासिल करने के लिए रुपया-रूबल पेमेंट मोड को मजबूत करेंगे. अमेरिका ने हाल ही में रूसी तेल खरीद पर जांच तेज की है और कुछ भारतीय रिफाइनरियां अस्थायी रूप से आयात कम कर रही हैं.

सवाल 6- इस मुलाकात से ब्रिटेन, फ्रांस और जर्मनी को मिर्ची क्यों लग रही है?जवाब- एक्सपर्ट्स के मुताबिक, पुतिन-मोदी की इस मीटिंग से ब्रिटेन, फ्रांस और जर्मनी को मिर्ची लग रही है, क्योंकि ये लोग रूस के खिलाफ पूरी ताकत लगा रहे हैं और भारत का रूस से गले मिलना उनके पूरे प्लान को हिला दे रहा है. 1 दिसंबर को टाइम्स ऑफ इंडिया में इन तीनों देशों के राजदूतों ने मिलकर एक आर्टिकल लिखा, जिसमें उन्होंने पुतिन को खरी-खोटी सुनाई. आर्टिकल में लिखा कि रूस ने यूक्रेन पर हमला करके मानवता का गला काटा है, जंग को लंबा खींच रहा है और पुतिन ही वो इंसान है जो चाहे तो कल ही युद्ध रोक सकते हैं, लेकिन नहीं रोक रहे. उन्होंने ये भी कहा कि रूस यूरोप के हवाई क्षेत्र में घुसपैठ कर रहा है.

ये आर्टिकल पुतिन की यात्रा से ठीक पहले आया, जैसे कोई सीधा तीर मारने का इरादा हो. भारत को चेतावनी दी कि रूस से मत मिलो, वरना गलत सिग्नल जाएगा. भारत के विदेश मंत्रालय (MEA) ने इसे 'अनुचित' और 'असम्मानजनक' बताते हुए कहा कि राजदूतों का काम तीसरे देश के बारे में ऐसी पब्लिक बयानबाजी करना नहीं है. ये तो डिप्लोमैटिक नियमों का उल्लंघन है.

एक्सपर्ट्स के मुताबिक, तीनों देशों को मिर्ची लगने की 3 बड़ी वजहें हैं...

  • भारत का रूस से सस्ता तेल खरीदना: भारत हर महीने करोड़ों बैरल, जो हमारे पेट्रोल-डीजल के दाम कंट्रोल में रख रहा है. यूरोप वाले कहते हैं कि ये तेल रूस को पैसा दे रहा है, जिससे वो यूक्रेन में बम बरसाता रहेगा. लेकिन भारत कहता है, 'हमारी 140 करोड़ जनता की जरूरत है, हम क्यों बंद करें?' ये मीटिंग में तेल का सौदा और मजबूत हो सकता है, जो इनके 'रूस को अलग-थलग करो' वाले प्लान को फेल कर देगा.
  • दोनों देशों में रक्षा सौदा: इस मीटिंग में S-400 मिसाइल सिस्टम की बाकी डिलीवरी, Su-57 फाइटर जेट्स की डील और नई मिसाइलों पर बात होगी. रूस अभी भी भारत का सबसे बड़ा हथियार सप्लायर है. यूरोप वाले (जो खुद हथियार बेचना चाहते हैं) सोच रहे हैं कि अगर भारत रूस से खरीदता रहा, तो उनका बाजार खराब हो जाएगा. यह डील रूस को ताकत देगी, जो यूक्रेन में और आगे बढ़ सकता है. वह चाहते हैं कि भारत उनके साथ हो जाए, रूस को सजा दे, लेकिन भारत अपनी आजादी चुन रहा है.
  • ग्लोबल पावर गेम: यह मीटिंग वैश्विक पावर गेम बदल सकती है. ट्रंप ने भी भारत से कहा है कि रूस से दूरी बनाओ, वरना टैरिफ बढ़ाएंगे. लेकिन भारत ना अमेरिका का, ना यूरोप का, बल्कि अपना रास्ता चलेगा. BRICS, SCO जैसे ग्रुप्स में भारत-रूस साथ हैं, जो यूरोप को लगता है कि रूस को वैकल्पिक दोस्त मिल जाएंगे. अगर मोदी पुतिन को यूक्रेन पर थोड़ा झुकने के लिए कह भी दें, तो वो भी इनके फेवर में होगा, लेकिन अभी तो लग रहा है कि मीटिंग रूस को बूस्ट देगी.

सवाल 7- रूस क्यों चाहता है कि भारत उसके और करीब आए?जवाब- एक्सपर्ट्स के मुताबिक, इन 5 वजहों से रूस को भारत की जरूरत पड़ रही है...

  • पैसे की जरूरत: यूक्रेन वॉर के बाद अमेरिका-यूरोप ने रूस के बैंक, तेल कंपनियां, जहाज सब पर सैंक्शन लगा दिए. पश्चिम ने रूस को दुनिया के पैसा ट्रांसफर सिस्टम स्विफ्ट से बाहर कर दिया. अब भारत ही इकलौता बड़ा देश है जो रूस से ढेर सारा तेल रुपए-रूबल में खरीद रहा है. यह पैसा रूस की अर्थव्यवस्था को अभी भी जिंदा रखे हुए है.
  • हथियारों का सबसे बड़ा खरीदार: पहले रूस के हथियार चीन, भारत, अल्जीरिया, वियतनाम सब खरीदते थे. अब चीन अपना खुद का हथियारों का बाजार बनाने लगा, बाकी देश अमेरिका के डर के मारे रूस से कुछ नहीं ले रहे. सिर्फ भारत ही बड़े-बड़े ऑर्डर दे रहा है. S-400, Su-57, ब्रह्मोस-2, AK-203 राइफल फैक्ट्री, छोटे न्यूक्लियर रिएक्टर, सब कुछ. यह ऑर्डर रूस की डिफेंस इंडस्ट्री को चलाते हैं और लाखों लोगों की नौकरी बचाते हैं.
  • रूस का अकेलापन: यूरोप ने मुंह फेर लिया, अमेरिका दुश्मन है और ज्यादातर देश डर के मारे चुप हैं. सिर्फ भारत ही है जो दुनिया के सामने खुलकर पुतिन से गले मिलता है, फोटो खिंचवाता है और कहता है 'ये हमारा पुराना और सच्चा दोस्त है'. रूस की छवि मजबूत करता है कि वो पूरी तरह अकेला नहीं है.
  • चीन पर निर्भर नहीं रहना चाहता: रूस को डर है कि अगर वो सिर्फ चीन के साथ रहा तो चीन उस पर हावी हो जाएगा. भारत को पास रखकर रूस बैलेंस बनाता है. चीन को भी मैसेज जाता है कि 'हमारे पास दूसरा बड़ा दोस्त भी है'.
  • BRICS और SCO में ताकत: इन ग्रुप्स में अगर भारत रूस का साथ छोड़ दे तो ये ग्रुप कमजोर पड़ जाएंगे. भारत के साथ रहने से रूस दिखा पाता है कि 'देखो, दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र भी हमारे साथ है, हम गलत नहीं हैं'.

रूस को पता है कि अगले 20-30 साल में भारत दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनेगा. अभी से अच्छे रिश्ते बनाकर रखो तो बाद में तेल, गैस, हथियार, न्यूक्लियर प्लांट, डायमंड और स्पेस टेक्नोलॉजी सब में बड़ा बिजनेस मिलेगा.