मई 2023 में केंद्र सरकार के डिपार्टमेंट ऑफ टेलीकम्युनिकेशन (DoT) ने संचार साथी का वेब पोर्टल लॉन्च किया था. यह पहल टेलीकॉम एक्ट 2023 के तहत शुरू हुई थी. फिर 17 जनवरी 2025 को ऐप लॉन्च की, जिसे अब तक 5 करोड़ से ज्यादा बार डाउनलोड किया जा चुका है. हाल ही में सरकार ने सभी मोबाइल कंपनियों को निर्देश दिया है कि वह 2026 से बनने वाले हर फोन में इस ऐप को प्री इंस्टाल करें. लेकिन विपक्ष ने इस ऐप के खिलाफ मोर्चा खोल दिया. इसे 'बिग ब्रदर' स्टाइल सरकारी निगरानी का नया रूप बताया, जिसके बाद सरकार ने अपने फैसले में बड़ा बदलाव कर दिया. ABP एक्सप्लेनर में समझते हैं कि संचार साथी ऐप क्या है, हर भारतीय के फोन में इसकी कितनी जरूरत है और इसे लेकर हंगामा क्या हो रहा...

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सवाल 1- केंद्र सरकार की नई संचार साथी ऐप क्या है?जवाब- संचार साथी ऐप DoT का एक नागरिक-केंद्रित साइबर सिक्योरिटी टूल है, जो मोबाइल यूजर्स को फ्रॉड, चोरी और टेलीकॉम संसाधनों के फ्रॉड से बचाने के लिए बनाया गया है. यह ऐप और वेब पोर्टल (www.sancharsaathi.gov.in) दोनों रूपों में उपलब्ध है. DoT के अनुसार, यह ऐप इंटरनेशनल मोबाइल इक्विपमेंट आइडेंटिटी (IMEI) नंबर की वैधता जांचने, संदिग्ध फ्रॉड रिपोर्ट करने, खोए या चोरी फोन को ब्लॉक करने, अपने नाम पर रजिस्टर्ड मोबाइल कनेक्शनों की जांच करने और बैंकों के विश्वसनीय संपर्क विवरण सत्यापित करने जैसे काम करता है.

जुलाई 2025 तक, इसकी मदद से 42.16 लाख मोबाइल फोन ब्लॉक किए गए हैं, 26.14 लाख चोरी या खोए फोन ट्रेस और रिकवर हुए हैं और 2.89 करोड़ से ज्यादा कनेक्शन जांच के शिकायतें मिली हैं. DoT का कहना है कि यह ऐप साइबर क्राइम को रोकने का एक मजबूत हथियार है, खासकर जब भारत में 1.2 अरब से ज्यादा मोबाइल सब्सक्राइबर्स हैं.

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सवाल 2- आपके फोन में यह ऐप कैसे काम करेगी?जवाब- संचार साथी ऐप यूजर-फ्रेंडली तरीके से काम करती है, जिसमें कई फीचर्स एक साथ इंटीग्रेटेड हैं...

  • आपको ऐप इंस्टॉल करने के बाद रजिस्ट्रेशन करना होगा, जिसमें मोबाइल नंबर, OTP वेरिफिकेशन और वैकल्पिक रूप से नाम या दस्तावेज अपलोड करने होंगे.
  • IMEI जांच के लिए, आपके फोन का 15-डिजिट का IMEI नंबर मैन्युअली भरना होगा.
  • ऐप इसे DoT की सेंट्रल इक्विपमेंट आइडेंटिटी रजिस्टर (CEIR) सिस्टम से मैच करेगा और बताएगा कि फोन असली है या ब्लैकलिस्टेड या चोरी का है.
  • अगर आपका फोन चोरी हो गया है, तो उसे ब्लॉक करने के लिए, आपको पुलिस रिपोर्ट, डुप्लिकेट SIM और फॉर्म सब्मिट करना होगा.
  • DoT 24 घंटे के अंदर IMEI को सभी ऑपरेटर्स पर ब्लॉक कर देगा और अगर फोन कहीं इस्तेमाल होता है तो ट्रेसिबिलिटी अलर्ट पुलिस को जाएगा.
  • फ्रॉड रिपोर्टिंग के लिए 'चकषु' फीचर है, जहां यूजर संदिग्ध कॉल, SMS, व्हाट्सऐप मैसेज या मैलिशियस वेब लिंक की डिटेल्स, स्क्रीनशॉट और OTP के साथ रिपोर्ट करता है.
  • DoT इसे वेरिफाई करता है, अगर रिपोर्ट वैलिड है तो संबंधित टेलीकॉम सर्विस प्रोवाइडर (TSP) को भेजी जाती है, जो री-वेरिफिकेशन शुरू करता है. फेल होने पर कनेक्शन सस्पेंड हो जाता है.
  • अनसॉलिसिटेड कमर्शियल कम्युनिकेशन (UCC) या स्पैम के लिए TRAI के नियम लागू होते हैं.
  • ऐप कॉल/SMS लॉग्स, कैमरा और फाइल एक्सेस जैसी परमिशन्स मांगता है, ताकि रिपोर्टिंग ऑटोमेटेड हो. जैसे SMS सेंडिंग से री-वेरिफिकेशन शुरू हो सके.
  • रिकवरी पर अनब्लॉक के लिए पुलिस रिपोर्ट सबमिट करनी पड़ती है.

कुल मिलाकर, यह ऐप DoT की डिजिटल इंटेलिजेंस प्लेटफॉर्म से जुड़ा है, जो रिपोर्ट्स को लॉ एनफोर्समेंट और बैंकों के साथ शेयर करता है, लेकिन रिपोर्टर की प्राइवेसी बनाए रखता है.

सवाल 3- संचार साथी ऐप के लेकर क्या नियम होंगे?जवाब- DoT ने 28 नवंबर 2025 को 'टेलीकॉम साइबर सिक्योरिटी रूल्स, 2024' (संशोधित) के तहत एक सख्त निर्देश जारी किया, जो सभी मोबाइल हैंडसेट मैन्युफैक्चरर्स और इंपोर्टर्स पर लागू होता है. इसके मुताबिक, 90 दिनों के अंदर भारत में इस्तेमाल के लिए बनाए या इम्पोर्ट किए जाने वाले सभी फोन में संचार साथी ऐप प्री-इंस्टॉल होना अनिवार्य है.

ऐप को फोन सेटअप के दौरान यूजर को साफ दिखना चाहिए, आसानी से एक्सेसिबल होना चाहिए और इसकी कोई फंक्शनैलिटी डिसेबल या रिस्ट्रिक्टेड नहीं की जा सकती. पहले से मार्केट में मौजूद फोन्स के लिए मैन्युफैक्चरर्स को सॉफ्टवेयर अपडेट के जरिए ऐप पुश करना होगा. कंप्लायंस रिपोर्ट 120 दिनों के अंदर DoT को सबमिट करनी होगी, वरना गैर-अनुपालन पर टेलीकॉम एक्ट 2023, TCS रूल्स 2024 और अन्य कानूनों के तहत सजा हो सकती है.

IMEI टैंपरिंग जैसी गतिविधियां नॉन-बेलेबल अपराध हैं, जिसमें 3 साल तक की जेल, 50 लाख तक जुर्माना या दोनों हो सकते हैं. TRAI के TCCCPR 2018 नियम UCC रिपोर्टिंग को कवर करते हैं, जहां 7 दिनों के अंदर की शिकायतें एक्शन लेने लायक होती हैं. DoT ने साफ कहा है कि यह नियम फीचर फोन्स सहित सभी IMEI वाले डिवाइसेस पर लागू हैं, ताकि साइबर सिक्योरिटी मजबूत हो.

सवाल 4- यह ऐप कैसे हर फोन पर निगरानी करेगी?जवाब- संचार साथी ऐप सीधे तौर पर 'निगरानी' का टूल नहीं है, बल्कि रिपोर्ट-बेस्ड सिस्टम है जो यूजर की रिपोर्ट पर एक्शन लेता है. लेकिन विपक्ष और प्राइवेसी एडवोकेट्स इसे सरकारी निगरानी का दरवाजा मानते हैं, क्योंकि ऐप IMEI, कॉल, SMS लॉग्स, कैमरा, फाइल्स और फोन मैनेजमेंट जैसी डीप परमिशन्स मांगता है.

DoT के मुताबिक, यह परमिशन्स सिर्फ रिपोर्टिंग को आसान बनाने के लिए हैं. 'चकषु' फीचर से रिपोर्टेड फ्रॉड को DoT वेरिफाई करता है और TSPs को भेजता है, जो कनेक्शन सस्पेंड/डिस्कनेक्ट करते हैं. CEIR से ब्लॉक IMEI पर ट्रेसिबिलिटी अलर्ट पुलिस को जाता है. ऐप डेटा को DoT की डिजिटल इंटेलिजेंस प्लेटफॉर्म पर स्टोर करता है, जो लॉ एनफोर्समेंट और बैंकों के साथ शेयर होता है. लेकिन DoT प्राइवेस का दावा करता है. यानी रिपोर्टर की पहचान छिपी रहती है और ऐप बैकग्राउंड में लगातार मॉनिटरिंग नहीं करता.

सवाल 5- ऐप्पल फोन में सारथी ऐप इंस्टॉलेशन का मसला क्या है?जवाब- ऐप्पल फोन के साथ मुख्य समस्या iOS की सख्त प्राइवेसी पॉलिसी और क्लोज्ड इकोसिस्टम है. DoT का ऑर्डर एप्पल, सैमसंग, शाओमी और वीवो समेत सभी ब्रांड्स पर लागू है. लेकिन ऐप्पल ने पहले प्री-इंस्टॉल्ड ऐप्स के खिलाफ विरोध जताया है, क्योंकि iOS यूजर चॉइस और प्राइवेसी पर जोर देता है. ऐप पहले से ऐप्पल स्टोर पर उपलब्ध है, लेकिन प्री-इंस्टॉलेशन के लिए एप्पल को iOS में सिस्टम-लेवल चेंजेस करने पड़ेंगे, जो कंपनी की ग्लोबल पॉलिसी से टकरा सकता है.

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, ऐप्पल जैसी कंपनियां 90 दिनों की डेडलाइन को चुनौती दे सकती हैं, क्योंकि यह उनके बिजनेस मॉडल से मेल नहीं खाता. भारत में iOS का शेयर 4.5% है, लेकिन यह प्रीमियम सेगमेंट पर असर डाल सकता है.

सवाल 6- विपक्ष इस ऐप के खिलाफ क्यों है और विरोध का नतीजा क्या निकला?जवाब- 1 दिसंबर से विपक्ष लगातार ऐप को अनिवार्य बनाने के फैसले का विरोध कर रहा है. उनका कहना है कि यह 'बिग ब्रदर' स्टाइल सरकारी निगरानी का नया रूप है, जहां हर फोन पर स्थायी ऐप थोपना संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन है. कांग्रेस नेता केसी वेणुगोपाल ने इसे 'असंवैधानिक' बताया, क्योंकि अनइंस्टॉलेबल ऐप आर्टिकल 21 (प्राइवेसी का अधिकार) का हनन करता है. वह इसे पेगासस स्पाइवेयर और VPN बैन से जोड़ते हैं.

शिवसेना की सांसद प्रियंका चतुर्वेदी ने संचार साथी ऐप को 'बिग बॉस सर्विलांस मोमेंट' कहा, जबकि आदित्य ठाकरे ने 'डिजिटल तानाशाही' करार दिया. विपक्ष का तर्क है कि ऐप की डीप परमिशन से यूजर डेटा का गलत इस्तेमाल हो सकता है और यह लोकतंत्र के लिए खतरा है.

विपक्ष के जोरदार विरोध की वजह से केंद्र सरकार ने ऐप को लेकर बड़े बदलाव करने का ऐलान किया. 2 दिसंबर को केंद्रीय दूरसंचार मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया ने कहा, 'अगर यूजर्स अपने मोबाइल में संचार साथी ऐप नहीं चाहते,तो उसे हटा सकते हैं. यह वैकल्पिक है. हर किसी को इस ऐप से परिचित कराना हमारा कर्तव्य है. इसे अपने डिवाइस में रखना है या नहीं. यह यूजर पर निर्भर करता है.'

जबकि इससे पहले इस ऐप को अपने फोन में रखना अनिवार्य था. यानी यह ऐप न डिलीट हो सकती थी और न ही अनइंस्टॉल.

सवाल 7- क्या वाकई भारतीयों को संचार साथी ऐप की जरूरत है?जवाब- हां, जरूरत है, क्योंकि भारत में टेलीकॉम फ्रॉड एक बड़ी समस्या है. DoT के आंकड़ों से साफ है कि साइबर क्राइम से सालाना अरबों का नुकसान हो रहा है. जैसे फेक कॉल्स से वित्तीय धोखाधड़ी, चोरी फोन से अपराध में इस्तेमाल और स्पैम इंटरनेशनल कॉल्स से 1.35 करोड़ गैर-कानूनी रूटिंग बढ़ी है. ऐप ने पहले ही 7 लाख से ज्यादा खोए फोन रिकवर किए हैं, 3 करोड़ फ्रॉडुलेंट कनेक्शन बंद किए हैं और 6.49 लाख फ्रॉड इनपुट्स पर 40.96 लाख एक्शंस लिए हैं.

सेकंड-हैंड मार्केट में ब्लैकलिस्टेड फोन बिकना आम है, जो खरीदार को अपराधी बना देता है. TRAI के TCCCPR नियमों के तहत स्पैम रोकना जरूरी है और ऐप यूजर्स को आसान रिपोर्टिंग देता है. DoT का तर्क है कि यह सिटिजन-एम्पावरिंग है. यानी यूजर खुद IMEI चेक कर सकता है.

सवाल 8- क्या संचार साथी ऐप के नुकसान भी हो सकते हैं?जवाब- इस ऐप के कुछ नुकसान भी हो सकते हैं...

  • प्राइवेसी का बड़ा खतरा: संचार साथी ऐप को काम करने के लिए फोन के डीप एक्सेस की जरूरत पड़ती है, जिससे पर्सनल एक्टिविटी पर लगातार निगरानी की जा सकती है. यह ऐप डिजिटल इंटेलिजेंस प्लेटफॉर्म से जुड़ा है, जो आपकी जानकारी पुलिस और बैंकों के साथ शेयर करता है. इसकी रूस के मैक्स ऐप से तुलना की जा रही है, जहां प्री-इंस्टॉल्ड स्टेट ऐप्स ने मास सर्विलांस बढ़ा दिया है.
  • वल्नरेबिलिटी और थर्ड-पार्टी मिसयूज: ऐप साइबर सिक्योरिटी के नाम पर है, लेकिन खुद में रिस्क पैदा कर सकता है. अगर ऐप में कोई बग या वल्नरेबिलिटी हो, तो यह फोन का अटैक सरफेस बढ़ा देगा. हैकर्स सरकार ऐप को टारगेट कर सकते हैं. डेटा लीक का खतरा भी बढ़ सकता है.
  • मैन्युफैक्चरर्स पर दबाव: स्मार्टफोन कंपनियों को 90 दिनों में कंप्लायेंस करना पड़ेगा, जो ऑपरेशनल चुनौतियां पैदा करेगा, खासकर iOS जैसे क्लोज्ड सिस्टम्स में. मैन्युफैक्चरर्स ने चेतावनी दी कि यह सॉफ्टवेयर चेंजेस और टेस्टिंग जैसे बड़े हर्डल्स लाएगा. सेकंड-हैंड मार्केट में ब्लैकलिस्टेड फोन चेक करने का फायदा तो है, लेकिन अनिवार्य ऐप से कॉस्ट बढ़ेगी, जो कंज्यूमर्स को महंगे फोन के रूप में भुगतना पड़ेगा.