पीएम मोदी की कैबिनेट ने उत्तर प्रदेश, हिमाचल प्रदेश, कर्नाटक और तमिलनाडु के आदिवासी समुदायों को एसटी वर्ग में लाने का फैसला किया है.
उत्तर प्रदेश में गोंड जनजाति को कई सालों को एसटी वर्ग में शामिल करने की मांग रही थी. हालांकि गोंड और इससे जुड़ी उपजातियों को 13 जिलों में एसटी वर्ग का दर्जा मिला हुआ था.
लेकिन अब चंदौली, भदोही, संत कबीनगर और कुशीनगर में इस जनजाति को आरक्षण का लाभ मिलेगा. बता दें कि ये चार जिले उन 13 जिलों से ही काटकर बनाए गए थे जिनमें इस जनजाति को एसटी के तहत आरक्षण मिल रहा था.
गोंड की कितनी उपजातियां और जनसंख्यासाल 2011 की जनगणना के मुताबिक गोंड और उनसे जुड़ी पांच उपजातियों धुरिया, नायक, ओझा, पठारी और राजगोंड 6 लाख से आसपास है. अब इन जातियों को 17 जिले में आरक्षण का लाभ मिलेगा. यूपी के इन जिलों में मिलेगा आरक्षणगोंड और उनकी उपजातियों को महाराजगंज, सिद्धार्थनगर, बस्ती, गोरखपुर, देवरिया, मऊ, आजमगढ़, जौनपुर, बलिया, गाजीपुर, वाराणसी, मिर्जापुर, सोनभद्र, चंदौली, भदोही, संत कबीनगर और कुशीनगर शामिल हैं.
हिमाचल प्रदेश का हाटी समुदायहिमाचल प्रदेश में इसी साल चुनाव होना है. इस प्रदेश में हाटी समुदाय की संख्या 3 लाख के आसपास हैं. इस समुदाय को लोग कई सालों से आरक्षण के लिए संघर्ष कर रहे हैं.
छत्तीसगढ़ का बिंझिया समुदायछत्तीसगढ़ में साल 2023 में विधानसभा चुनाव होने हैं. केंद्र सरकार ने बिंझिया समुदाय को केंद्र सरकार ने एसटी वर्ग में शामिल करने का फैसला किया है. इस समुदाय को झारखंड और ओडिशा में एसटी वर्ग के तहत लाभ मिलता है. दरअसल बीते विधानसभा चुनाव में बीजेपी की करारी हार की वजह आदिवासियों का वोट न मिलना भी था जो कभी आरएसएस के वनवासी कल्याण कार्यक्रम की वजह से पार्टी का कोर वोटबैंक बन गए थे. बिंझिया समुदाय को एसटी वर्ग में शामिल करने के पीछे आदिवासी समुदाय को फिर से पाले में करने की कोशिश है.
तमिलनाडु की नरिकुर्वर-कुरुविकरण तमिलनाडु में बीजेपी कई सालों से पैठ बनाने की कोशिश कर रही है लेकिन अभी तक इस राज्य में पार्टी का कोई कोर वोट बैंक नहीं बन पाया है. नरिकुर्वर-कुरुविकरण समुदाय की पहाड़ी इलाकों अच्छी-खासी जनसंख्या है.
कर्नाटक की बेट्टा-कुरबा जातिकर्नाटक में साल 2023 में विधानसभा चुनाव होना है. लिंगायत, वोक्कालिगा और मुसलमान बड़ी आबादी हैं. इनके बाद बेट्टा-कुरबा समुदाय आता है. ये वर्ग की आबादी राज्य में 10 प्रतिशत के आसपास है जो कई सीटों में असरकारक हैं.
कैबिनेट की बैठक के बाद केंद्रीय जनजातीय मामलों के मंत्री अर्जुन मुंडा ने मीडियाकर्मियों को बताया कि ये प्रस्ताव कई वर्षों से लंबित हैं. उन्होंने कहा कि मूल रूप से वर्तनी की त्रुटियों और कई समुदायों के समान लगने वाले नामों के कारण, इन्हें बहुत लंबे समय तक एसटी श्रेणी में नहीं लाया जा सका.
साल 2014 में जब मोदी सरकार सत्ता में आई तब इनके मांगों को लेकर केंद्र के स्तर पर एक कमेटी बनाई गई. इस कमेटी का काम तथ्यों और शोध के आधार पर इन जातियों के आदिवासी जुड़ाव से संबंधित जानकारी लेना था.