भारतीय ज्योतिष शास्त्र में चंद्रमा को विशेष स्थान हासिल है. हालांकि इसके पीछे क्या कारण यह अधिकांश लोगों को नहीं पता. जानते हैं चंद्रमा के ज्योतिष में महत्व के बारे में-

-ज्योतिष शास्त्र में चंद्रमा को मन का कारक माना गया है. चंद्रमा व्यक्ति की भावनाओं पर भी नियंत्रण करता है.

-व्यक्ति के जीवन, विवाह और फिर मृत्यु समेत बहुत से क्षेत्रों के बारे में जानकारी हासिल करने के लिए कुंडली में चंद्रमा की स्थिति क्या है बहुत ध्यान से पढ़ा जाता है.

-भारतीय ज्योतिष पर आधारित दैनिक, साप्ताहिक तथा मासिक भविष्य फल भी व्यक्ति के जन्म के समय की चंद्र राशि के आधार पर बताए जाते हैं. चंद्रमा की गति से हमेशा परिवर्तन होता रहता है.

-ज्योतिष की गणनाओं के लिए चंद्रमा को स्त्री ग्रह माना जाता है. चन्द्रमा सभी व्यक्तियों की कुंडली में मुख्य रूप से माता तथा मन का कारक माना जाता है. माता और मन दोनों ही किसी भी व्यक्ति के जीवन में विशेष महत्त्व रखते हैं, इसलिए कुंडली में चन्द्रमा की स्थिति बहुत महत्वपूर्ण होती है.

-चंद्रमा के प्रभाव क्षेत्र में सभी सभी तरल पदार्थ आते हैं.

-चंद्रमा के मित्र ग्रह सूर्य और बुध है. चंद्रमा किसी भी ग्रह को अपना शत्रु नहीं मानता है.

-चंद्रमा कर्क राशि का स्वामी है और वृषभ राशि में उच्च स्थान प्राप्त करता है. चंद्रमा वृश्चिक राशि में होने पर नीच राशि में होते हैं.

-चंद्र का भाग्य रत्न मोती है. चंद्रमा मंगल, गुरु, शुक्र व शनि से सम संबंध रखते हैं.

-मन के अलावा यह माता, मस्तिष्क, बुद्धिमता, स्वभाव, जननेद्रियों, प्रजनन संबंधी रोगों का भी कारक है.

-चंद्रमा अगर जन्म कुण्डली में मजबूत है तो व्यक्ति सभी कामों में सफल रहता है. उसका मन प्रसन्न रहता है, इसके अलावा पद प्राप्ति व पदोन्नति और श्वेत पदार्थों के कारोबार से लाभ मिलता है.

-चंद्र राशि लग्न भाव में हो या चंद्र जन्म राशि में हो या फिर चंद्र लग्न भाव में बली अवस्था में हो तो व्यक्ति को कफ रोग शीघ्र प्रभावित करता है.

-अगर चंद्रमा कृष्ण पक्ष का नीच या शत्रु राशि में हो तथा अशुभ ग्रहों से दृष्ट हो तो चंद्रमा निर्बल हो जाता है. ऐसी अवस्था में निद्रा व आलस्य घेरे रहता है. व्यक्ति मानसिक तौर पर बेचैन, मन चंचलता से भरा रहता है मन में भय बना रहता है

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