चीन के साथ सीमा विवाद और पाकिस्तान के साथ तनावपूर्ण संबंधों के चलते रक्षा मंत्रालय ने सेना की मारक क्षमता को बढ़ावा देने के लिए एक बड़ा फैसला किया है.
मंत्रालय ने भारतीय सेना के लिए लगभग 120 'प्रलय' बैलिस्टिक मिसाइलों की खरीद को मंजूरी दे दी है. इन मिसाइलों को चीन से लगी वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) और पाकिस्तान से लगी नियंत्रण रेखा (एलओसी) पर तैनात किया जाएगा.
खास बात ये है कि इन मिसाइलों को इंटरसेप्टर मिसाइलों के माध्यम से दुश्मनों के लिए पता लगा पाना बहुत मुश्किल काम होगा.
क्या है प्रलय मिसाइल की खासियत?'प्रलय' सतह से सतह पर मारने वाली बैलिस्टिक मिसाइल है. जो इंटरसेप्टर मिसाइलों को मात देने में भी सक्षम है. इसके लिए इसे एडवांस मिसाइल के तरह बनाया गया है. साथ ही इन मिसाइलों में हवा में एक निश्चित सीमा तय करने के बाद अपना रास्ता बदलने की क्षमता है.
'प्रलय' एक सॉलिड प्रोपेलेंट रॉकेट मोटर और अन्य नई तरह की प्रणाली से चलता है. इस मिसाइल में मार्गदर्शन प्रणाली में अत्याधुनिक नेविगेशन और एकीकृत एवियोनिक्स शामिल हैं.
कैसे मिली प्रलय मिसाइलों को मंजूरीआला रक्षा सूत्रों ने न्यूज एजेंसी एएनआई को बताया कि रक्षा मंत्रालय की एक उच्च स्तरीय बैठक में भारतीय सेना के सशस्त्र बलों के लिए लगभग 120 प्रलय बैलिस्टिक मिसाइलों के एक रेजिमेंट की खरीद को मंजूरी दे दी है.
इसी बैठक में इन मिसाइलों के चीन और पाकिस्तानी सीमा पर तैनात करने की मंजूरी भी मिल गई है. अब देश के पास ऐसी नीति है जो सामाजिक भूमिकाओं में बैलिस्टिक मिसाइलों के उपयोग की अनुमति प्रदान करती है. इन मिसाइलों को पहले भारतीय वायु सेना में शामिल किया जाएगा जिसके बाद ये भारतीय थल सेना का हिस्सा बनेंगी.
दो बार हो चुका है मिसाइल का सफल परीक्षणसूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार, रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन की तरफ से डेवलप की गई मिसाइल को और बेहतर बनाने का काम किया जा रहा है. ऐसे में अगर सेना चाहे तो इसकी रेंज को और भी बढ़ा सकती है.
इस मिसाइल प्रणाली को 2015 में बनाना शुरू किया गया था. दिवंगत जनरल बिपिन रावत ने इस तरह की क्षमताओं को बढ़ावा दिया था.
इन मिसाइलों का परीक्षण पिछले साल यानी 2022 में 21 और 22 दिसंबर को किया जा चुका है. जो सफल रहा था.
पाइंट में समझिए क्यों खास है 'प्रलय''प्रलय' बैलिस्टिक मिसाइलों की मारक क्षमता 150 से 500 किलोमीटर तक है. यह लगभग 350 से 700 किलोग्राम तक के हथियार ले जाने में सक्षम है जो इसे और घातक बनाता है.
यह एक उच्च विस्फोटक पेनेट्रेशन-कम-ब्लास्ट (पीसीबी) और रनवे डिनायल पेनेट्रेशन सबमुनिशन (आरडीपीएस) भी ले जा सकता है. प्रलय एक कम दूरी की बैलिस्टिक मिसाइल है. यह जमीन से जमीन पर वार करने के लिए विकसित की गई है.
डीआरडीओ ने इसे देश की विश्वसनीय पृथ्वी मिसाइल सिस्टम पर डेवलप किया है. प्रलय को पाकिस्तान की कम दूरी की परमाणु मिसाइलों से मुकाबला करने के लिए तैयार किया गया है.
DRDO ने अग्नि-प्राइम को अग्नि-1 और अग्नि-2 सीरीज की मिसाइल से ज्यादा एडवांस बनाया है.इस मिसाइल को मोबाइल लांचर से भी छोड़ा जा सकता है. प्रलय मिसाइल गाइडेंस प्रणाली में मॉर्डन नेविगेशन और इंटीग्रेडेड एवियोनिक्स सिस्टम शामिल हैं.
प्रलय मिसाइल की तुलना चीन की डोंग फेंग 12 (CSS-X-15) और रूसी इस्कंदर मिसाइल से की जा सकती है. जिसका इस्तेमाल यूक्रेन के साथ चल रहे युद्ध में किया गया है.
चीन और पाकिस्तान सीमा पर क्यों भारत को पड़ी प्रलय मिसाइल की जरूरतचीन और पाकिस्तान की सीमाओं पर भारतीय जवानों की मुठभेड़ होती रहती है. ऐसे में चीन और पाकिस्तान दोनों ने पहले ही LAC और LoC पर बैलिस्टिक मिसाइल तैनात कर दी है.
जिसके चलते सुरक्षा की दृष्टि से भारत को ये फैसला लेना जरूरी था. प्रलय, ब्रह्मोस सुपरसोनिक क्रूज मिसाइल के साथ, अब भारत की योजनाबद्ध रॉकेट फोर्स का आधार बनेगी.
प्रलय को इंटरसेप्टर मिसाइलों को विफल करने के लिए डिज़ाइन किया गया है. इसमें एक निश्चित दूरी तय करने के बाद उड़ान के बीच में अपने रास्ते को बदलने की क्षमता है. नौसेना के पास अब 68 युद्धपोत ऑर्डर पर हैं, जिनकी कुल कीमत अनुमानित 2 लाख करोड़ रुपये है.
यह अपने विशाल भू-रणनीतिक हितों की रक्षा के साथ-साथ हिंद महासागर क्षेत्र में चीन के लगातार बढ़ते कदमों का मुकाबला करने के लिए एक मजबूत ब्लू-वाटर फोर्स बनाने की भारत की निरंतर कोशिशों में शामिल है.
ये फैसला उस वक्त लिया गया है जब भारत 2035 तक नौसेना में कम से कम 175 युद्धपोत रखने की योजना बना रहा है.
चीन आईओआर और बड़े इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में अपनी मौजूदा लॉजिस्टिक चुनौती से निपटने के लिए अफ्रीका में जिबूती, पाकिस्तान में कराची और ग्वादर और अब संभवतः कंबोडिया में रीम के बाद आक्रामक रूप से विदेशी ठिकानों की तलाश कर रहा है.
इसके अलावा चीन पहले से ही 355 युद्धपोतों और पनडुब्बियों के साथ दुनिया की सबसे बड़ी नौसेना होने के बाद भी लगातार युद्धपोतों का निर्माण कर रहा है.
इन सभी चीजों को देखते हुए भारत सरकार लगातार सुरक्षा की दृष्टि से आगे बढ़ रही है और अपनी सेना में नए उपकरणों को शामिल करने की योजना बना रही है.