पुणे: देश के कई राज्यों में सीएए, एनपीआर और एनआरसी के विरोध के बीच अहमदनगर जिले का एक गांव इन दिनों चर्चा में है. दो हजार की आबादी वाला इस्लाक गांव देश का पहला ऐसा गांव बन गया है जिसने सीएए, एनपीआर और एनआरसी के खिलाफ प्रस्ताव पास किया है. दिलचस्प बात ये है कि सालक गांव में एक भी मुस्लिम की आबादी नहीं है. मगर इसके बावजूद इस गांव ने प्रस्ताव पास कर देश के प्रदर्शनकारियों का समर्थन किया है. केरल, राजस्थान और पश्चिम बंगाल की विधानसभा से नागरिकता कानून के खिलाफ पहले ही प्रस्ताव पारित हो चुके हैं.

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सीएए, एनपीआर, एनआरसी के खिलाफ गांव ने प्रस्ताव किया पास

26 जनवरी को ग्राम पंचायत की मीटिंग में सीएए, एनपीआर और एनआरसी कानून को लागू करने में असहयोग करने का फैसला लिया गया. प्रस्ताव पर इस्लाक गांव के सरपंच और उप सरपंच के हस्ताक्षर वाला पत्र जिला प्रशासन को आगे रवाना कर दिया गया है. इस्लाक गांव में ज्यादातर निवासी या तो किसान हैं या फिर मिडिल क्लास से उनका संबंध है. सदियों से रहनेवाले लोगों के पास ना तो पहचान पत्र का कोई कागज है और ना ही जमीन का कोई टुकड़ा.

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कानून के खिलाफ प्रस्ताव पास करनेवाला देश का पहला गांव

गांव के 38 वर्षीय सरपंच बाबासाहेब गोरंगे का कहना है कि गांव के निवासी ना सिर्फ भूमिहीन हैं बल्कि उनके पास तो कागजात तक नहीं हैं. ऐसे में सीएए, एनपीआर और एनआरसी से उपजी परेशानियों को देखते हुए मानवीय आधार पर कानून के खिलाफ प्रस्ताव पास किया गया है. साथ ही गांव में कानून के लागू करने में समर्थन नहीं देने की राय भी बनी है. जब उनसे पूछा गया कि गांव में एक भी मुस्लिम आबादी नहीं है फिर भी आपने ऐसा फैसला क्यों लिया ? सरपंच ने जवाब दिया कि ऐसा मानवता की खातिर किया गया है.

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