नई दिल्ली: एमसीडी चुनाव में मोदी लहर में जहां एक तरफ आम आदमी पार्टी बुरी तरह से हार गई, वहीं कांग्रेस के लिए भी यह नतीजे आत्ममंथन का विषय है. लगातार 15 सालों तक दिल्ली में राज करने वाली कांग्रेस एमसीडी चुनाव में तीसरे नंबर पर पहुंच गई. दिल्ली में पार्टी में फूट है और कई पुराने नेता बीजेपी का दामन थाम चुके हैं, ऐसे में यह सवाल लाजमी हैं कि आखिर अब कांग्रेस पार्टी की दशा और दिशा क्या होगी?
सबसे बड़ी बात तो यह है कि इस हार के बाद दिल्ली में कांग्रेस के सामने किन-किन तरह की चुनौतियां हैं और मौजूदा पार्टी नेतृत्व में इसे पार लगाने की क्षमता है?
कांग्रसे के लिए नेताओं को जोड़ कर रखना बड़ी चुनौती
इस चुनाव नतीजों के बाद अब कांग्रेस के सामने पार्टी को बचाने की चुनौती खड़ी होती दिखाई दे रही है. रिजल्ट आने के तुरंत बाद ही दिल्ली प्रदेश के कांग्रसे अध्यक्ष अजय माकन ने पद से इस्तीफा दे दिया. इस्तीफा देने के साथ ही उन्होंने कांग्रेस पार्टी के भीतर की कलह को भी उजागर कर दिया. उन्होंने कहा, ''जब मैं शीला दीक्षित के साथ था, तो उनके बेटे की तरह था.'' यह बात सही भी है कि शीला दीक्षित अजय माकन को बेटे की तरह मानती थीं, लेकिन संदीप दीक्षित के सांसद बनने के बाद से ही दोनों के रिश्ते पहले की तरह नहीं रहे और शीला दीक्षित ने भी अजय माकन पर ध्यान देना बंद कर दिया.
इसके अलावा कई नेता कांग्रेस का दामन छोड़ कर बीजेपी के साथ चले गए. ऐसे में यह बहुत जरूरी है कि पार्टी को बचाए रखने के लिए नेताओं और कार्यकर्ताओं को जोड़ा जाए. अमरिंदर सिंह लवली ने ठीक वोटिंग से पहले कांग्रेस को छोड़ कर बीजेपी ज्वाइन कर ली. टिकट बंटवारे को लेकर भी पार्टी सामंजस्य नहीं बिठा पाई. कांग्रेस ने कहा था कि वह किसी का भी टिकट नहीं काटेगी, लेकिन कई पार्षदों के टिकट काटे गए.
कांग्रेस पार्टी और एमसीडी चुनाव का मुद्दा
कांग्रेस के लिए एमसीडी चुनाव एक अहम मुद्दा था, लेकिन बीजेपी बाजी मार गई. याद हो कि जब केंद्र की बीजेपी सरकार अपने दो साल पूरे होने पर जश्न मना रही थी, तब राहुल गांधी और अजय माकन ने एमसीडी के मुद्दे पर बीजेपी को घेरने के लिए प्रदर्शन किया था. लेकिन जो नतीजे हैं, वह कांग्रेस के लिए चिंता का विषय है.
मुसलमानों से दूर हो गई कांग्रेस?
कांग्रेस सोच रही थी कि अगर वह मुसलमानों की करीबी होने के इमेज, उसके हिंदू वोट बैंक को दूर कर देगा. ऐसे में पार्टी ने मुसलमानों से दूरी बनाकर रखी. कांग्रसे पार्टी के मुस्लिम चेहरे इस बार के एमसीडी चुनाव में नदारद रहे. देखा जाए तो अपने सेक्युलर इमेज के लिए पहचानी जाने वाली पार्टी एक तरह से सॉफ्ट हिंदुत्व की तरफ बढ़ती दिखाई पड़ रही है.
राष्ट्रवाद और राष्ट्रविरोधी की लड़ाई में फिर जीती बीजेपी
देश भर में चल रहे राष्ट्रवाद और राष्ट्रविरोधी के बीच के विवाद ने भी बीजेपी को फायदा पहुंचाया. चुनाव से पहले मनोज तिवारी ने साफ किया था कि राष्ट्रवाद उनके लिए एक अहम मुद्दा है.