शुक्रवार यानी 2 जून को ओडिशा के बालासोर में हुए भीषण रेल दुर्घटना ने ट्रेन में सफर कर रहे यात्रियों की सुरक्षा का मुद्दा एक बार फिर चर्चा में ला दिया है. भारत में हर रोज बड़ी संख्या में लोग ट्रेन की यात्रा करते हैं. ऐसे में रेलगाड़ियों के पटरी से उतरने की घटनाएं न सिर्फ डरावनी है बल्कि ऐसी घटनाएं प्रशासन की नाकामी को भी दर्शाती है. 


आंकड़ों के मुताबिक साल 2014 से लेकर अब तक यानी साल 2023 तक रेलवे में 8 ट्रेन हादसे हुए हैं जिसमें कुल 586 लोगों की मौत हुई तो वहीं 1200 से ज्यादा लोग घायल भी हुए हैं.


हाल ही में रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव ने बताया था भारत के ज्यादातर रेलवे ट्रैकों को अपग्रेड किया जा रहा है, ताकि उन ट्रैकों पर 100 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार वाली ट्रेनें दौड़ाई जा सके. यहां तक की भारत की रेलवे लाइनों के एक महत्वपूर्ण हिस्से को 160 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से चलने वाली गाड़ियों के लायक बनाने का काम भी जारी है. रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव ने साल 2022 के मई महीने में एक बयान में ट्रेनों में सुरक्षा कवच लगाने की घोषणा भी की थी.


ऐसे में सवाल उठता है कि रेल विभाग ट्रेन की रफ्तार बढ़ाने के अलावा यात्रियों की सुरक्षा पर कितना खर्च कर रहा है, ट्रेन से सफर करना पिछले पांच सालों में कितना सुरक्षित हुआ है और रेल कवच यानी ऑटोमेटिक ब्रेकिंग सिस्टम क्या है?




करोड़ों के बजट के बाद भी कितने सुरक्षित हैं यात्री 


एक सरकारी रिपोर्ट के अनुसार साल 2019-20 में हुए रेलवे दुर्घटना में 70 फीसदी दुर्घटनाओं का कारण ट्रेन का पटरी से उतरना रहा. उससे पिछले साल यानी 2019-20 में ये आंकड़ा 68 फीसदी था. पटरी से उतरने के अलावा 14 फीसदी मामले में ट्रेन में आग लगी थी और 8 फीसदी हादसा टक्कर के कारण हुआ.  


क्यों पटरी से उतरती है ट्रेन


बीबीसी की एक रिपोर्ट में बताया गया कि पटरी से उतरने वाले 40 रेल दुर्घटनाओं की पड़ताल की गई थी, जिनमें 33 पैसेंजर ट्रेनें थीं और सात मालगाड़ियां. इनमें 17 ट्रेन ट्रैक की खराबी के कारण पटरी से उतरी थी. इनमें पटरी में टूट-फूट या धंस जाने जैसी गड़बड़ियां हो सकती थीं. जबकि 9 हादसे रेलगाड़ी की इंजन, कोच या वैगन में खराबी के कारण हुए थे.




ट्रेन में सफर कर रहे यात्रियों की सुरक्षा पर कितना खर्च कर रही है सरकार


भारतीय रेलवे ने साल 2017-18 और 2021-22 के बीच सुरक्षा उपायों पर एक लाख करोड़ रुपये से ज्यादा खर्च किए हैं. फरवरी 2022 में, सरकार ने 2022-23 से आरआरएसके की वैधता को और पांच साल के लिए बढ़ा दिया.आधिकारिक दस्तावेज से इस बात की जानकारी मिली है कि इस अवधि के दौरान पटरी की मरम्मत पर खर्च में लगातार बढ़ोतरी देखी गई है. 


सरकारी सूत्रों की मानें तो रेलवे जल्द ही भारत के नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (CAG) की रिपोर्ट का जवाब देगा. कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने इस रिपोर्ट का हवाला ओडिशा के बालासोर में शुक्रवार को हुए ट्रेन हादसे के मद्देनजर केंद्र पर हमला करने के लिए दिया, जिसमें 275 लोगों की मौत हो गई थी और 1,000 से अधिक लोग घायल हो गए थे.




क्या कहती है CAG की रिपोर्ट 


सीएजी यानी कंट्रोलर एंड ऑडिटर जनरल ऑफ इंडिया ने साल 2022 में भारतीय ट्रेनों के पटरी से उतरने की घटनाओं को लेकर चिंता जताते हुए यह पता लगाने को कहा था कि रेल मंत्रालय द्वारा ट्रेनों के पटरी से उतरने और ट्रेनों के टकराने जैसी घटनाओं को रोकने के लिए कोई स्पष्ट उठाया है या नहीं. 




पटरियों की जांच में आई भारी कमी


साल 2017 के अप्रैल से लेकर मार्च 2021 के बीच रेलगाड़ियों के पटरी से उतरने के हादसों की जांच के बाद, केंद्र सरकार के ऑडिटर्स ने जो रिपोर्ट तैयार की थी, उसमें भी कुछ चिंताजनक बातें सामने आईं.


रिपोर्ट में कहा गया कि रेलवे ट्रैक की हालत और उसमें आई विकृति की ट्रैक रिकॉर्डिंग कार से जांच में 30 से 100 प्रतिशत तक की कमी आई है. 


ट्रेनों का पटरी से उतरना और दुर्घटना होने के पीछे रेलवे लाइनों का रखरखाव एक बड़ा कारण था. इसका दूसरा कारण ये भी है कि रेल की पटरी ज़रूरी सीमा से ज्यादा टेढ़ी की जाती है. 


ट्रेन की पटरी से उतरने के 180 से ज्यादा मामले यांत्रिक कारणों से हुए जबकि एक तिहाई से ज्यादा दुर्घटनाएं, मालगाड़ियों के डिब्बों या ट्रेनों के डिब्बों में खराबी के कारण हुई थी. पटरी से उतरने के अन्य प्रमुख कारणों में 'ख़राब ड्राइविंग और तय सीमा से अधिक रफ़्तार से ट्रेन चलाना' भी शामिल थे.


यूपीए सरकार की तुलना में एनडीए सरकार कितना कर रही खर्च


यूपीए सरकार के 10 साल के सुरक्षा पर खर्च किए गए बजट की तुलना एनडीए सरकार के 9 साल की सुरक्षा पर खर्च किए गए बजट से करें तो इन 9 सालों में ट्रैक नवीनीकरण पर 47 हजार 39 करोड़ से बढ़कर 1 लाख 9 हजार 23 करोड़ हो गया है. 


इसके अलावा ट्रैक नवीनीकरण, पुलों, लेवल क्रॉसिंग, सिग्नलिंग सहित सुरक्षा उपायों पर कुल खर्च 70 हजार 274 करोड़ रुपये से बढ़कर 1 लाख 78 हजार 12 करोड़ रुपये हो गया है.




अब जानते हैं आखिर ये रेल कवच क्या है 


रेल कवच एक तरह का डिवाइस है जिसे ‘ट्रेन कोलिजन अवॉइडेंस सिस्टम’ यानी टीसीएएस भी कहा जाता है. यह भारत में साल 2012 में बनकर तैयार किया गया था. इस डिवाइस की मदद से इंजन और पटरियों में लगे ओवर स्पीडिंग को नियंत्रित किया जाता है. यह एक ऐसा तकनीक है जिसमें सफर के दौरान किसी खतरे का अंदेशा होने पर ट्रेन में अपने आप ब्रेक लग जाता है. 


इस तकनीक को बनाने का मकसद ट्रेनों की रफ्तार चाहे जितनी भी हो लेकिन कवच के कारण ट्रेनों को टकराने बचाना है. इस कवच को रिसर्च डिजाइन एंड स्टैंडर्ड ऑर्गेनाइजेशन यानी आरडीएसओ ने बनाया है.


ओडिशा में कैसे हुई दुर्घटना, 5 प्वाइंट्स में समझिए 



  • कोरोमंडल एक्सप्रेस दक्षिण की तरफ चेन्नई जा रही थी. जबकि हावड़ा सुपरफास्ट एक्सप्रेस ट्रेन उत्तर की तरफ जा रही थी. 

  • कोरोमंडल एक्सप्रेस न जाने कैसे लूप लाइन पर आ गई और मालगाड़ी से टक्कर हो गई. 

  • टक्कर के बाद पटरी से जो डिब्बे उतरे थे उसकी हावड़ा सुपरफास्ट एक्सप्रेस ट्रेन से टक्कर हो गई.

  • ट्रेन के डिब्बे से टकराने के कारण हावड़ा सुपरफास्ट एक्सप्रेस ट्रेन के भी कुछ डिब्बे पटरी से उतर गए.