Vohra Committee Reports:  संगठित अपराधियों, माफियाओं, जैसे दाऊद, अंडरवर्ल्ड और राजनेताओं के बीच संबंधों की जांच करने वाली वोहरा समिति की रिपोर्ट रिकॉर्ड में ही नहीं है. केंद्रीय गृह मंत्रालय का कहना है कि भारतीय राजनीतिज्ञों, नेताओं या शरद पवार के उल्लेख की कोई जानकारी रिकॉर्ड में नहीं हैं. सूचना के अधिकार के तहत दायर आवेदन के जवाब में गृह मंत्रालय ने ये बात कही है. 

अगर सूचना उपलब्ध कराना संभव नहीं है तो आवेदन का उत्तर देते समय कारण बता दिया जाता है, लेकिन गृह मंत्रालय का यह कहना कि सूचना रिकॉर्ड में उपलब्ध ही नहीं है, जो की हैरानी पैदा करने वाली बात है. इस बारे में जब तत्कालीन गृह सचिव एन.एन.वोहरा से संपर्क किया गया तो उन्होंने जवाब दिया कि वर्तमान गृह विभाग की कार्यप्रणाली पर टिप्पणी करने का उन्हें कोई अधिकार नहीं है.

कब बनी वोहरा समिति?

9 जुलाई 1993 को केंद्रीय गृह मंत्रालय की ओर से राजनीति के अपराधीकरण के मुद्दे की जांच के लिए एक समिति गठित की गई थी. तत्कालीन केंद्रीय गृह सचिव एन. एन. वोहरा इस समिति की अध्यक्षता वोहरा ने की थी, इसलिए इस समिति को वोहरा समिति के नाम से जाना जाता है. 5 अक्टूबर 1993 के आसपास एन.एन.वोहरा ने समिति की रिपोर्ट की केवल 3 प्रतियां छापी थी. बताया जाता है कि इसकी एक प्रति केंद्रीय गृह मंत्रालय, एक राज्य मंत्री और एक प्रति स्वयं के लिए रख ली गई थी.

कभी पब्लिक नहीं की गई वोहरा समिति की रिपोर्ट

वोहरा समिति की रिपोर्ट कभी सार्वजनिक नहीं की गई. वोहरा समिति के संबंध में सूत्रों के हवाले से अब तक कई समाचार रिपोर्टें प्रकाशित हुई हैं, जिनमें राजनेताओं का उल्लेख किया गया है. राजनेता और अपराधी आपस में मिले हुए हैं और यह संबंध मुंबई विस्फोट मामले में भी मौजूद है. कहा जाता है कि वोहरा समिति इस निष्कर्ष पर पहुंची थी कि अपराधी राजनेताओं के धन का प्रयोग करते हैं और चुनाव अपराध से प्राप्त धन का प्रयोग करके लड़े जाते हैं. 1997 में वोहरा समिति की रिपोर्ट की जांच के लिए एक उच्च स्तरीय समिति गठित करने का आदेश दिया गया.

समिति में कौन था?

  • केंद्रीय गृह सचिव (एनएन वोहरा)
  • सचिव (रॉ)
  • सीबीआई निदेशक
  • निदेशक, खुफिया ब्यूरो
  • संयुक्त सचिव

वोहरा समिति की रिपोर्ट में क्या था?

रिपोर्ट में बताया गया कि माफिया नेटवर्क समानांतर सरकार चलाते हैं. इकबाल मिर्ची की तरक्की इसलिए हुई, क्योंकि सिस्टम ने उसके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की. दाऊद इब्राहिम, इकबाल मिर्ची, मेमन बंधुओं के नामों का उल्लेख भी इसमें किया गया था. देशभर में कई जगहों पर गुंडों के गिरोह, प्रशासन, राजनेता और पुलिस की मिलीभगत है. अंडरवर्ल्ड, प्रशासन और राजनेताओं के साथ संबंध स्थापित करने के लिए धन का उपयोग करता है. धनबल से बाहुबल पैदा होता है, जिसका इस्तेमाल चुनावों में होता है. माफियाओं की ओर से संचालित समानांतर सरकारी व्यवस्था वास्तविक व्यवस्था को अप्रासंगिक बना देती है.

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