धारचूला: नेपाल-चीन की सीमा पर बसे धारचूला तहसील का खेला गांव की कहानी रोचक है. इस गांव की सबसे बड़ी पहचान है कि साढ़े 3 हज़ार की आबादी में 200 से ज्यादा लोग सेना और अर्धसैनिक बल के जवान हैं. इतना ही नहीं करीब 200 से ज्यादा ही रिटायर भी हो चुके हैं. यही नहीं दुर्गम पहाड़ों में बसे इस गांव के लोगों ने 1962 में भारत चीन युद्ध में अपने कंधों पर सेना के हथियार और रसद ढोये थे.

धारचूला से करीब 20 किलोमीटर दूर खेला गांव बसा है. इस गांव में जाने के लिए करीब 3 किलोमीटर पैदल चलना पड़ता है. एबीपी न्यूज़ की टीम इस गांव में पहुंची. इसके लिए दो घंटे का सफर करना पड़ा.

जब गांव के लोगों से बात की उन्होंने वो पूरी कहानी सुनाई जब भारत और चीन के बीच युद्ध हो रहा था. लोगों न बताया कि कैसे गांव वालों ने कोई साधन न होने के बावजूद भारतीय सेना की मदद की और कैसे सेना का गोला बारूद और खाने का सामान अपनी पीढ़ पर लाद कर लास्ट बॉर्डर तक पहुंचाया.

गोरखा राइफल की 16वीं बटालियन से रिटायर मोहन सिंह ने बताया कि उनके बुजुर्गों ने साल 1962 की जो कहानियां बताई है वो बड़ी ही दिलचस्प हैं. उस समय के भारत में और अब के भारत में जमीन आसमान का अंतर है. अभी की सेना के पास आधुनिक हथियार और उपकरण हैं. अगर अभी चीन से युद्ध होता है तो चीन को लोहे के चने चबाने होंगे.

मोहन सिंह बताते है कि हमारे बुजुर्गों ने सेना का खाने पीने का सामान तो बॉर्डर तक पहुंचाया ही साथ ही साथ सेना के आर्म्स भी बॉर्डर तक पहुंचाने में पूरी मदद की. खेला गांव के ही रहे वाले इस बुजुर्ग टीचर के मुताबिक उस समय स्तिथि बेहद कमजोर थी. बॉर्डर के आस पास रहने वाले लोग डरे हुए थे. क्योंकि किसी ने आज तक लड़ाई नहीं देखी थी. डर होने के बावजूद लोगों ने सेना का पूरा साथ दिया. इनका कहना है कि उस समय हमें बोला था कि घर में जो भी राशन है उसे घर के बाहर थैले में तांग कर रख लो. क्योंकि अगर इस तरफ हमला होता है तो उस सामान को लेकर भाग जाना.

जितेंद्र सिंह धामी के मुताबिक उस समय स्तिथि काफी खराब थी. रास्ता नहीं था. लेकिन गांव वालों ने फौज का बहुत साथ दिया. देश के लिए इस गांव के लोगों ने बहुत बलिदान दिया है. अभी भारत काफी प्रोग्रेस कर रहा है. इस समय के भारत में और तब के भारत में बहुत अंतर है.

यहां के युवाओं की माने तो चीन चालबाज़ है. इसलिए ऐसी हरकते बार बार कर रहा है. गांव के ही 55 साल के एक शख्स ने कहा कि अभी भी अगर देश को हमारी जरूरत है तो वे अभी भी तैयार हैं. अभी भी 15 किलों सामान लेकर सेना के साथ चल सकता हैं.

एबीपी न्यूज़ के कैमरे पर गांव की महिलाओं ने कहा की उनका खून खौलता है जब नेपाल के लोग हमारे देश और हमारे प्रधानमंत्री को भला-बुरा कहते हैं. इनका कहना है कि इन्हें बहुत गुस्सा आता है. इस पूरे इलाके में ऐसे तमाम गांव है जिन्होंने सन 62 के समय सेना के लिए अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है.

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