पटना: महान गणितज्ञ और कंप्यूटर जैसा दिमाग रखनेवाले शख्स वशिष्ठ नारायण सिंह अब हमारे बीच नहीं रहे. 74 साल की आयु में उनका निधन हो गया. वशिष्ठ नारायण लंबे समय से सिजोफ्रेनिया नामक बीमारी से पीड़ित थे. उनके निधन के साथ ही भारत ने गणित के क्षेत्र में नाम कमाने वाले लाल को खो दिया. लेकिन क्या आप जानते हैं, उन्होंने अपने जमाने के प्रसिद्ध वैज्ञानिक अल्बर्ट आइंस्टीन को भी चुनौती थी.


छात्र जीवन में प्रोफेसर को करते थे चैलेंज
बिहार के रहनेवाले वशिष्ठ नारायण सिंह 2 अप्रैल 1946 में पैदा हुए. वशिष्ठ नारायण छात्र जीवन से ही मेधावी थे. 1958 में बिहार के सबसे प्रतिष्ठित नेतरहाट की परीक्षा में सर्वोच्च स्थान हासिल किया. 1963 में हायर सेकेंड्री की परीक्षा में टॉप किया. इनके शैक्षणिक रिकॉर्ड को देखते हुए 1965 में पटना विश्वविद्यालय ने नियम बदल दिया और वशिष्ठ नारायाण को एक साल में ही बीएससी ऑनर्स की डिग्री दे दी.


उनकी प्रतिभा का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि पटना सायंस कॉलेज में गलत पढ़ाने पर गणित के प्रोफेसर को टोक देते थे. जिसके बाद उनकी शोहरत इतनी फैली कि लोग उन्हें 'वैज्ञानिक जी' कहकर पुकारने लगे. पटना सायंस कॉलेज में पढ़ाई के दौरान ही कैलोफोर्निया विश्वविद्यालय के प्रोफेसर जॉन कैली की तरफ से उनको अमेरिका आने का ऑफर मिला. 1965 में वशिष्ठ नारायण अमेरिका चले गये, जहां 1969 में पीएचडी की डिग्री हासिल करने के बाद वाशिंगटन यूनिवर्सिटी में बतौर प्राध्यापक नियुक्त हुए.


कुछ दिनों के लिए कंप्यूटर जैसे दिमागवाले शख्स ने नासा में भी काम किया.  1969 में वशिष्ठ नारायण ने ‘द पीस ऑफ स्पेस थ्योरी’ नाम से एक शोधपत्र प्रस्तुत किया. जिसमें उन्होंने आइंस्टीन की थ्योरी 'सापेक्षता के सिद्धांत' को चैलेंज किया. पीएचडी की डिग्री उन्हें इसी शोध पर मिली.


अमेरिका में नहीं लगा दिल, भारत लौटने पर क्या किया ?
1971 में अमेरिका से वशिष्ठ भारत लौटे तो उनके साथ किताबों के 10 बक्से थे. स्वदेश वापसी पर उन्होंने कई नामी गिरामी संस्थानों में अपनी सेवाएं दीं. IIT कानपुर, IIT बंबई, ISI कलकत्ता से जुड़कर छात्रों का मार्गदर्शन किया. उनके बारे में कहा जाता है कि नासा में अपोलो की लॉन्चिंग से पहले 31 कंप्यूटर कुछ समय के लिए बंद हो गये. जब कंप्यूटर ठीक किए गए तो वशिष्ठ नारायण और कंप्यूटर्स का कैलकुलेशन समान निकला.