वंदे मातरम् के 150 साल पूरे होने पर आज भारत की संसद के दोनों सदनों में गीत पर चर्चा चल रही है. इसी सिलसिले में रक्षामंत्री राजनाथ सिंह ने भी सदन के सामने अपनी बात रखी. उन्होंने कांग्रेस नेता प्रियंका गांधी के उस सवाल का जवाब दिया, जिसमें उन्होंने पूछा था कि वंदे मातरम् पर बहस क्यों जरूरी है?

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रक्षामंत्री राजनाथ सिंह ने कहा कि बंगाल विभाजन के दौरान ये गीत धरती से आकाश तक गूंज उठा. इससे तब की ब्रिटिश सरकार डर गई थी और सर्कुलर जारी कर दिया गया था, लेकिन लोगों को रोक नहीं पाई थी. आज जब हम उत्सव मना रहे हैं तो ये सच स्वीकार करना होगा कि जो न्याय होना चाहिए था वो नहीं हुआ. आज आजाद भारत में राष्ट्रगान - राष्ट्रगीत को बराबर का दर्जा मिलान चाहिए था, एक को मुख्यधारा में स्थान पा गया लेकिन दूसरे गीत को खंडित हाशिए पर कर दिया गया. 

'कांग्रेस ने गीत को खंडित करने का फैसला'

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राजनाथ ने कहा कि 1937 में कांग्रेस ने गीत को खंडित करने का फैसला लिया था, वंदे मातरम् के साथ राजनीतिक छल और अन्याय के बारे में सभी पीढ़ियों को जानना चाहिए. वंदे मातरम् का गौरव लौटाना समय की मांग है, और नैतिकता का तकाजा भी. इस अन्याय के वावजूद वंदे मातरम् का महत्व कम नहीं हो पाया. ये जीवन स्वरूप बन गया. वंदे मातरम् स्वयं में पूर्ण है, लेकिन इसे अपूर्ण बनाने की कोशिश की गई. 

रक्षामंत्री ने कहा कि राष्ट्रीय भावना का अमरगीत बना है, और ये सदैव बना रहेगा, कोई ताकत इसे कम नहीं कर सकती है. वंदे मातरम् के साथ हुआ अन्याय एक  नहीं था, ये तुष्टीकरण की राजनीति थी, जिसे कांग्रेस ने अपनाया. और राजनीति ने देश का विभाजन कराया और आजादी के बाद सांप्रदायिक सौहार्द पर एकता को कमजोर किया.

उन्होंने कहा कि आज हम वंदे मातरम् की गरिमा को पु्र्नस्थापित कर रहे हैं लेकिन कुछ लोग ये नैरेटिव बनाने की कोशिश कर सकरते हैं कि वंदे मातरम् और जन गण के बीच एक दीवार खड़ी की जा रही है, ऐसा प्रयास विभाजनकारी मानसिकता का परिचय देता है. वंदे मातरम् और जन गण मां भारती के दो सपूतों की किलकारियां हैं, दो आंखे हैं.. वंदे मातरम् और जन गण दोनों ही राष्ट्रीय गौरव है. जो लोग ना सभ्यता के मूल को समझते हैं, जो लोग ना संस्कृति के महत्व को स्वीकारते हैं, जिन्होंने परंपराओं को दरकिनार, वो लोग ना पहले समझ सके थे, ना अब समझ पा रहे हैं.

'वर्षगांठ का ये उत्सव दिखावा नहीं'

उन्होंने कहा कि वर्षगांठ का ये उत्सव दिखावा नहीं, ये प्रण है वंदे मातरम् को उचित सम्मान दिलाने का. आज हमें इस गलती को सुधारना होगा. राजनीतिक पूर्वाग्रह से मुक्ति दिलानी होगी. कुछ लोगों को आनंदमठ सांप्रदायिक लगा. वंदे मातरम् और आनंदमठ कभी भी इस्लाम के खिलाफ नहीं था. वंदे मातरम् की ये पंक्तियां सांप्रदायिक और राजनीतिक लगे, क्योंकि वो जिन्ना के चश्मे से देख रहे थे. वंदेमातरण की ये पंक्तियां भारत की आत्मा का प्रतीक है. कांग्रेस के एक बड़े तपके ने अपनी तुष्टीकरण की राजनीति का खेल बंद नहीं किया. धर्म को धर्म समझना, और मातृ पूजा को मूर्ति पूजा के रूप में देखना अंग्रेजों और मुस्लिम लीग की योजना हो सकती थी क्योंकि उनका राजनीतिक स्वार्थ छिपा हुआ था. 

'वंदे मातरम् को खंडित किया'

उन्होंने कहा कि वंदे मातरम् को खंडित किया गया, तुष्टीकरण का शिकार बनाया गया. ये ना सिर्फ विभाजन को रोकने में विफल रही, ये विभाजन का कारण बनी. अपने आपको सेक्युलर दिखाने की बेचैनी इतनी बढ़ चुकी थी कि भारत की परंपरा से जुड़ी कोई भी बात उनको सांप्रदायिक दिखाई देती थी. नेहरू जी से पूछा कि कल को कम्युनिस्ट सत्ता में आजाएं तो क्या होगा तो नेहरू जी ने कहा था कि भारत के लिए खतरा सांप्रदायिक नहीं है, भारत के लिए खतरा हिंदू दक्षिणपंथी सांप्रदायिकता है. उसी राइटविंग ने संविधान के मूल्यों पर काम किया है. संविधान के मूल्यों की अवहेलना कभी नहीं किया.

'कम्युनिस्ट उग्रवाद से कितनी पीढ़ियां बर्बाद हो गईं'

उन्होंने कहा कि कम्युनिस्ट विचारधारा से जन्में लेफ्ट विंग उग्रवाद के कारण ना जाने कितनी पीढियां बर्बाद हो गई. पहले की सरकार के नक्सलवाद की समस्या का समाधान नहीं ढूंढ पाई, अगर किसी ने ढूंढा तो वो है हमारे पीएम मोदी, उनके नेतृत्व में लेफ्ट विंग उग्रवाद पूर्णतः समाप्ति की ओर है. तुष्टीकरण के कारण पड़ोसी देश से आए शर्णार्थियों को दशकों तक अधिकारों से वंचित रखा गया, मुस्लिम महिलाओं से समान अधिकार से छीना गया. 

उन्होंने कहा कि भारत का विभाजन हुआ, आज बंगाल से लोगों को पलायन करना पड़ रहा है. ये विडंबना है कि जहां से राष्ट्रीय एकता का बिगुल बजा था, वहां से एकता और अखंडता को चुनौती देने वाले नक्सलवादी उसी धरती से पैदा हुआ. जहां से महिलाओं के अधाकारों की बात पहल हुई वही भूमि महिलाओं के लिए असुरक्षित हो गई है. जहां से पहला ICS आया, वहां आज बेरोजगारी के कारण युवा हताश हो रहे हैं. जहां स्वामी विवेकानंद भगवा वस्त्र पहन कर निकले, आज उस भूमि पर भगवा का मजाक उड़ाया जा रहा है. बंगाल का ये पतन हुआ है, वामपंथ के कारण, तृणमूल के कारण, तुष्टीकरण के कारण, घुसपैठियों को शरण देने के कारण. बंकिमचंद्र ने कहा था कि बंगाल हिन्दु और मुसलमान दोनों का है, क्या वो सांप्रदायिक गीत लिख सकते थे.