World Heroic Rescue Missions: उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले में सिलक्यारा सुरंग के एक हिस्से के ढहने के बाद उसमें पिछले एक सप्ताह से 41 श्रमिकों की सांस अटकी हुई है. इन सभी को बाहर न‍िकालने की जद्दोजहद की जा रही है. बड़े स्‍तर पर 'रेस्‍क्‍यू ऑपरेशन' जारी है और राज्य सरकार एवं केंद्रीय एजेंसियां म‍िलकर इस अभ‍ियान में जुटी हैं.


इस बचाव अभ‍ियान पर हर क‍िसी की न‍िगाहें अपने टीवी स्‍क्रीन पर ट‍िकी हुई हैं. समाचार एजेंसी पीटीआई के मुताब‍िक, ऐसे में अतीत में गुजरे देश-दुन‍िया के कई साहसी रेस्‍क्‍यू म‍िशनों का ज‍िक्र होना लाजमी है.  


1989 का रानीगंज का कोयला खदान रेस्‍क्‍यू ऑपरेशन: उत्तरकाशी सुरंग हादसे से पहले 13 नवंबर, 1989 में व‍िश्‍व स्‍तर पर बचाव अभ‍ियान की चर्चा उस वक्‍त भी बहुत तेजी से हुई थी जब वेस्‍ट बंगाल के महाबीर कोल‍ियरी, रानीगंज की कोयला खदान जलमग्‍न हो गई थी और 65 मजदूर उसमें फंस गए थे. वैसे तो इस खदान में अचानक पानी आने के कारण आई बाढ़ में कम से कम 232 खननकर्मी फंस गए थे लेक‍िन 161 लोगों को तुरंत बचा लिया गया था. बाकी फंसे रहे लोगों में से 6 मजदूरों की जान भी चली गई थी. 


'मिशन रानीगंज: द ग्रेट भारत रेस्क्यू' नाम से फ‍िल्‍म भी बनी 


इस दौरान एक बड़ा बचाव अभियान शुरू किया गया और फंसे हुए खनन मजदूरों को बचाने के लिए कई टीमें बनाई गईं थीं. इस पूरी घटना का 'मिशन रानीगंज: द ग्रेट भारत रेस्क्यू' नाम से फ‍िल्‍म रूपांतर‍ण भी क‍िया गया ज‍िसमें अभिनेता अक्षय कुमार ने अभिनय किया है. यह कहानी बेहद प्रेरणादायी भी है क‍ि कैसे कोल इंडिया लिमिटेड के खनन इंजीनियर जसवन्त गिल की प्रतिभा और नेतृत्व ने 65 श्रमिकों की जान बचाई, जोक‍ि महाबीर कोलियरी कोयला खदान में फंस गए थे.  


खनन इंजीनियर को म‍िला था सर्वोच्च नागरिक वीरता पुरस्कार


टीमों में से एक का नेतृत्व करते हुए खनन इंजीनियर जसवंत गिल करीब 7 फीट ऊंचे और 22 इंच व्यास वाले स्टील कैप्सूल को बनाने और कैप्सूल को खदान में उतारने और खदान से बाहर निकालने के लिए एक नया बोरहोल बनाने का इनोवेट विचार लेकर आए थे. इस स्टील कैप्सूल के जर‍िए आख‍िरकार दो द‍िनों के ऑपरेशन के बाद एक-एक करके श्रमिकों को बाहर निकाल ल‍िया गया था. वह (ग‍िल) फंसे लोगों को बचाने के ल‍िए खुद कैप्‍सूल में गए थे. ग‍िल को 1991 में तत्कालीन राष्ट्रपति आर वेंकटरमन की तरफ से सर्वोच्च नागरिक वीरता पुरस्कार 'सर्वोत्तम जीवन रक्षा पदक' से सम्मानित किया गया था. 


2018 थाई गुफा बचाव:  इसके बाद 23 जून, 2018 का थाईलैंड गुफा का मामला बेहद चर्च‍ित रहा. घटना उस वक्‍त घट‍ित हुई जब वाइल्ड बोअर्स फुटबॉल टीम के 12 खिलाड़ी और उनके कोच नॉर्थ थाईलैंड की थाम लुआंग नांग नॉन गुफा के काम्‍प्‍लेक्‍स की तलाश कर रहे थे. उस समय मौसम खराब हो गया और भारी बार‍िश होने से सुरंगों में भीषण जलभराव हो गया. इसके बाद बने बाढ़ के हालात में यह सभी ख‍िलाड़ी इस गुफा में फंस गए. बाढ़ग्रस्‍त थाम लुआंग गुफा में फंसे इन सभी ख‍िलाड़‍ियों को सकुशल न‍िकालने के ल‍िए वैश्‍व‍िक स्‍तर पर प्रयास क‍िए गए थे. इस रेस्‍क्‍यू ऑपरेशन को दुन‍िया ने देखा था ज‍िसने सभी को चौंका कर रख द‍िया था.


गुफा में बढ़ते पानी से फंसे ख‍िलाड़‍ियों को खोजना था बेहद मुश्‍क‍िल 


इस पूरे रेस्‍क्‍यू ऑपरेशन में  कथ‍ित तौर पर 10 हजार से ज्‍यादा लोग शाम‍िल हुए थे ज‍िनमें व‍िभ‍िन्‍न देशों के 90 गोताखोर भी थे. यह पूरा ऑपरेशन करीब दो सप्‍ताह तक चला था ज‍िसमें 8 द‍िनों के बाद दो ब्र‍िट‍िश गोताखोरों ने लड़कों ज‍िनकी उम्र 11 से 16 के बीच थी, और उनके कोच को 10 जुलाई को जीवत न‍िकाल ल‍िया था. गुफा के अंदर लगातार बढ़ते पानी के बीच में उनको खोज न‍िकालकर बचा पाना बेहद मुश्‍क‍िल हो जा रहा था.


इन सभी को केटामाइन दवा से बेहोश करके गुफा से एक-एक करके बाहर निकला गया था. हालांक‍ि इस बचाव अभ‍ियान के दौरान  एकमात्र पूर्व थाई नेवी सील समन कुनान की जान चली गई थी. इस घटना को लेकर कई किताबें, डॉक्‍यूमेंट्री, फिल्में - जिनमें द रेस्क्यू, थर्टीन लाइव्स और अगेंस्ट द एलीमेंट्स आदि प्रमुख रूप से शामिल हैं. यह दुन‍िया का सबसे जट‍िल और आश्चर्यजनक बचाव अभियानों में से एक था ज‍िसको इन सब कहान‍ियों के जर‍िये दुन‍िया को बताया गया. 


प्रिंस की 2006 की बोरवेल दुर्घटना: इसी तरह की परेशान और इंजीन‍ियर‍िंग को चुनौती देने वाली एक बोरवेल घटना 2006 में सामने आई थी. हर‍ियाणा के कुरूक्षेत्र ज‍िले के हल्ढेरी गांव के एक 60 फीट गहरने बोरवेल में 5 साल का मासूम प्र‍िंस ग‍िर गया था. उस समय बोरवेल में फंसे प्र‍िंस की सलामती को लेकर हर कोई दुआएं मांग रहा था. इस दौरान जब उसको न‍िकालने की जद्दोजहद हो रही थी तो कुछ घंटों के कठोर प्रयासों के बाद रेस्‍क्‍यू टीम को पास में ही उतनी ही गहराई का एक और खाली बोरवेल नजर आ गया. इसके बाद दोनों बोरवेल को जोड़ने के लिए 3 फीट व्यास वाले लोहे के पाइप का इस्तेमाल किया गया और करीब 50 घंटे की कड़ी मशक्कत के बाद प्रिंस को आखिरकार सुरक्षित बाहर निकाल लिया गया था. 
  
2010 चिली के खनिकों का बचाव अभ‍ियान: साल 2010 का च‍िली खन‍िकों को रेस्‍क्‍यू अभ‍ियान भी दुन‍िया में खूब चर्चा में रहा है. इस अभ‍ियान ने पूरी दुन‍िया को झकझोर कर रख द‍िया था. 5 अगस्त, 2010 को सैन जोस सोने और तांबे की खदान के ढहने से 33 श्रमिक उसमें दब गए थे. सतह से 2000 फीट नीचे फंसे इन लोगों से कम्‍युन‍िकेट करने के लगातार प्रयास क‍िए गए.


आख‍िरी रेस्‍क्‍यू टीम ने 22 अगस्‍त को इसमें सफलता हास‍िल की जब उनको सतह से नीचे एक छेद करने में कामयाबी म‍िली. इसके बाद उनको भोजन, पानी और दवा भेजने का काम क‍िया जा सका. खदान में फंसे लोगों की तरफ से अंग्रेजी में एक नोट रेस्‍क्‍यू टीम को भेजा गया ज‍िसका ह‍िंदी अनुवाद था हम 33 लोगों हैं जो शेल्‍टर में ठीक हैं. वहीं, 13 अक्टूबर को, 69 दिन बाद, विश्व स्तर पर प्रसारित इस बचाव कार्यक्रम में 33 खननकर्म‍ियों को चिली के राष्ट्रीय ध्वज के रंग में रंगे कैप्सूल के जर‍िये एक-एक करके सुरंग से बचाते देखा गया. 


2002 क्यूक्रीक माइनर्स रेस्क्यू: संयुक्त राज्य अमेरिका का 24 जुलाई 2002 का पेंसिल्वेनिया के समरसेट काउंटी में क्यूक्रीक माइनिंग इंक का हादसा भी बेहद भयावह वाला रहा है. इसने अमेर‍िका के साथ-साथ दुन‍िया के ल‍ोगों को हैरान कर द‍िया था. खदान में फंसे 9 खदानकर्म‍ियों को बहुत ही मुश्‍क‍िल और चुनौतीपूर्ण रेस्‍क्‍यू ऑपरेशन को अंजाम देकर 77 घंटे के बाद बहार न‍िकालने में कामयाबी हास‍िल की थी. इन सभी को स‍िर्फ 22 इंच चौड़ी आयरनर‍िंग के जर‍िए बाहर न‍िकाला जा सका था. इस घटना का सामना अमेर‍िका को 9/11 के अलकायदा हमले के ठीक एक साल से कम समय के बाद करना पड़ा था.  


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