Uttarakhand High Court Order on Sukhatal: उत्तराखंड हाईकोर्ट ने मंगलवार को नैनीताल स्थित सूखाताल झील के सौंदर्यीकरण और पुन​र्जीवीकरण से संबंधित निर्माण कार्यों पर रोक लगा दी. बारिश से भरने वाली सूखाताल झील, नैनीझील को भी रिचार्ज करती है. हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश विपिन सांघी और न्यायमूर्ति आरसी खुल्बे की खंडपीठ ने एक पत्र को जनहित याचिका मानते हुए मामले में सुनवाई के लिए अगली तारीख 20 दिसंबर तय की है.


सूखाताल झील नैनी झील को 40-50% तक करती है रिचार्ज


झील के चारों तरफ सूखे क्षेत्र में सभी निर्माण गतिविधियों पर रोक लगाते हुए अदालत ने राज्य पर्यावरण प्रभाव मूल्यांकन प्राधिकरण और राज्य आद्रभूमि प्रबंधन प्राधिकरण को भी पक्षकार बनाते हुए नोटिस जारी किए हैं. सुनवाई के दौरान, एमिकस क्यूरी (न्याय मित्र) कार्तिकेय हरिगुप्ता ने अदालत को बताया कि जलवैज्ञानिक अध्ययनों से पता चला है कि सूखाताल झील नैनी झील को 40 से 50 प्रतिशत तक रिचार्ज (पानी की पूर्ति) करती है. उन्होंने कहा कि झील के आधार पर कंक्रीट बिछाया जा रहा है जो दोनों झीलों के लिए खतरनाक है.


आईआईटी रुड़की के सुझाव पर भरोसा नहीं


न्याय मित्र ने कहा कि राज्य सरकार ने क्षेत्र का सौंदर्यीकरण करने से पहले कोई पर्यावरणीय सर्वेंक्षण नहीं किया. उन्होंने कहा कि इस संबंध में आईआईटी रुड़की ने एक अध्ययन किया था लेकिन पर्यावरणीय प्रभावों पर उनकी विशेषज्ञता नहीं होने के कारण उनकी रिपोर्ट पर भरोसा नहीं किया जा सकता. आईआईटी रुड़की ने अपनी रिपोर्ट में झील के सौंदर्यीकरण के लिए कई सुझाव दिए हैं. अपनी रिपोर्ट में संस्थान ने झील के किनारों पर एक चारदीवारी बनाने को कहा है ताकि झील में कोई अतिक्रमण न हो. बाद में जिला विकास प्राधिकरण ने झील की सतह पर कंक्रीट बिछाकर उसे एक बारहमासी झील में बदलने का फैसला लिया. न्याय मित्र ने अदालत को बताया कि अगर सूखाताल को बारहमासी बना दिया गया तो इसका नैनीझील पर बुरा प्रभाव पड़ने के साथ ही पर्यावरण को भी नुकसान होगा और आपदा आने की आशंका भी बनी रहेगी.


सूखाताल पर कंस्ट्रक्शन से प्राकृतिक जलस्रोत हो जाएगा बंद


नैनीताल निवासी डॉ. जीपी शाह और कई अन्य लोगों ने हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश को एक पत्र लिखकर कहा था कि सूखाताल के सौंदर्यीकरण कार्य से झील का प्राकृतिक जलस्रोत बंद हो जाएगा. सूखाताल नैनीझील को रिचार्ज करती है और वहां निर्माण कार्य अवैज्ञानिक तरीके से किए जा रहे हैं. पत्र में यह भी कहा गया था कि झील में लोगों ने भी अतिक्रमण कर लिया है जिससे उसकी सतह का क्षेत्रफल कम हो गया है. इसी पत्र को उच्च न्यायालय ने जनहित याचिका के रूप में स्वीकार किया है.


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