Ministry Of Home Affairs: केंद्रीय गृह मंत्रालय ने बुधवार (8 फरवरी) को संसद में राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) के आंकड़ों का हवाला देते हुए बताया कि राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में विचाराधीन कैदियों के 4 लाख से अधिक मामले लंबित पड़े हैं. केंद्रीय गृह राज्य मंत्री अजय कुमार मिश्रा ने कहा, 'कैदियों का प्रशासन और प्रबंधन राज्य सरकारों की जिम्मेदारी है, जो विचाराधीन जेल के कैदियों के कल्याण के लिए उचित कदम उठाने में सक्षम हैं.' 


राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी की फौजिया खान ने यह सवाल उठाया था कि क्या केंद्र सरकार देश में विचाराधीन कैदियों के कल्याण के लिए उपाय करना चाहती है. इस पर गृह राज्य मंत्री ने कहा, 'गृह मंत्रालय (MHA) भी समय-समय पर कई सलाह जारी करके इस संबंध में राज्य सरकारों के प्रयासों को पूरा करता रहा है. भारत सरकार ने दंड प्रक्रिया संहिता (CRPC) में धारा 436ए शामिल की है, जिसमें विचाराधीन कैदी को जमानत पर रिहा करने का प्रावधान है.'


'जेल मैनुअल का उपयोग करें'


केंद्रीय गृह राज्य मंत्री मिश्रा ने यह भी कहा कि सरकार ने कैदियों के कल्याण को समझने के लिए एक गाइड के रूप में सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के बीच आदर्श जेल मैनुअल का प्रसार किया है. इसमें राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों से अनुरोध किया गया है कि जेल मैनुअल का पूरी तरह से उपयोग किया जाए.


'जेलों में बनाए गए कानूनी सेवा क्लीनिक'


मंत्री ने लिखित जवाब में कहा, 'राज्य कानूनी सेवा प्राधिकरणों ने जेलों में कानूनी सेवा क्लीनिक स्थापित किए हैं, ताकि जरूरतमंद व्यक्तियों को मुफ्त कानूनी सहायता प्रदान की जा सके. इन क्लीनिकों का प्रबंधन पैनलबद्ध कानूनी सेवा अधिवक्ता और प्रशिक्षित पैरा-लीगल स्वयंसेवक करते हैं. जेलों में इस तरह के क्लीनिक स्थापित किए गए हैं, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि कोई भी कैदी बिना प्रतिनिधित्व के न रहे और उन्हें कानूनी सहायता और सलाह प्रदान की जाती रहे.'


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