श्रीनगरः क्या इस साल भी आस्था पर कोरोना महामारी भारी पड़ेगी? यह सवाल लाखों कश्मीरी पंडितो के ज़ेहन में इस समय गूंज रहा है, जो मां भवानी के वार्षिक महोत्सव में लगातार दुसरे साल भी शामिल नहीं हो सकेंगे. 1990 में कश्मीर में बिगड़े हालात के दौर में भी मेले को रोका नहीं गया और कश्मीरी पंडितो के लिए कश्मीर से उनके जुड़े होने का सबसे बड़ा कारण भी रहा. 


इस साल माता रंगया देवी जिन को माता खीर भवानी के नाम से भी जाना जाता है. जिनका मेला 18 जून को मनाया जाना है. श्रीनगर से 35 Km दूर गांदरबल जिले के तुलमुल्ला गांव में स्थित मां भवानी के मंदिर परिसर में मेला के लिए तैयारियां शुरू कर दी गयी है और कुछ भक्त पहले से ही मंदिर परिसर में पहुंच भी गए है.


जम्मू से मेले में शामिल होने की उम्मीद से पहुंचने गिने चुने भक्तों में से एक रविंदर कौल के अनुसार मेले पर कोई भी फैसला सरकार जब भी करे, लेकिन वही यहां पहुंच सकेगा जिनको माता का बुलावा होगा.   


मेले का आयोजन जम्मू-कश्मीर का पर्यटन विभाग करता है और इस बार भी आयोजन के सारे प्रबंध विभाग की ही देखरेख में चल रहे हैं. डायरेक्टर टूरिज्म गुलाम नबी ईतू के अनुसार कोविड प्रोटोकॉल और SOP के साथ जिस तरह भी प्रशासन वार्षिक महोत्सव के आयोजन की अनुमति देगा. उसी के अनुसार भक्तों के लिए मंदिर आने का मौका दिया जाएगा.


अभी फिलहाल जम्मू-कश्मीर में जारी कोरोना प्रोटोकॉल में धार्मिक स्थलों में कोई भी बड़े आयोजन पर रोक लगी हुई है. लेकिन सामाजिक दूरी के साथ लोगो को मंदिर आने की अनुमति मिली हुई है.


मंदिर परिसर में बने गेस्ट हाउस और सराए में सेनेटाइजेशन का काम चल रहा है और मंदिर के आस पास बने झील कुंड और नदी की सफाई का काम भी हो रहा है. गांदरबल म्युनिसिपल कॉरपोरेशन के चेयरमैन अल्ताफ अहमद के अनुसार उनके कर्मचारी और सफाईकर्मी मंदिर को तैयार करने में लगे हुए हैं.


कश्मीरी पंडितो में मां भवानी को कुल देवी माना जाता है और इस मंदिर में माँ भवानी के जल स्वरूप की पूजा होती है. मन्नत है कि कि यहां पर हनुमान जी माता को जल स्वरूप में, अपने कमंडल में लाये थे और इस जल का रंग बदलता रहता है. 


मंदिर को लेकर कश्मीरी पंडितों की आपार आस्था है और मंदिर में बने झल-कुंड में पानी के रंग से उनको आने वाले साल के हालात पता चलता है. मन्नत है कि जल का रंग अगर काला या लाल हो तो प्रलय या खूनखराबा हो सकता है और अगर हरा, सफ़ेद या नीला हो तो अच्छा समय होगा. 


इस बार जल कुंड का रंग हरा है लेकिन मंदिर में आये कुछ भक्तों के अनुसार इस बार भी पंचांग के अनुसार हालात विपरीत ही रहेंगे और कोई मेला नहीं होगा. पंचांग बनाने वाले ओमकारनाथ शास्त्री के अनुसार उन्होंने पिछले साल भी महाचंडी  यज्ञ रखा था लेकिन कोरोना के चलते नहीं हो पाया था. अभी इसी साल जुलाई में ग्रहों की शांति के लिए पूजा होगी. 


लेकिन शास्त्री इस बात से खफा है कि देश में शराब की दुकान खोल दी गयी हैं लेकिन मंदिर और मस्जिद बंद है और जब तक धर्मस्थल नहीं खोले जाएंगे, कोरोना नहीं जाएगा. 2019 में करीब दो लाख भक्तों ने इस मंदिर में आकर भगवान के दर्शन और पूजा की थी. लेकिन इस बार कोरोना की महामारी के चलते यहां सन्नाटा छाया हुआ है.



आस्था के साथ-साथ खीर भवानी के मंदिर के खास बात हिंदू-मुस्लिम एकता है. यहां पर पूजा के लिए सारी सामग्री मुसलमान बेचते हैं. यहां तक कि चढ़ावे का दूध भी मुसलमान के हाथो से धोया होना ज़रूरी है. 


शायद यही वजह है कि कश्मीरी मुसलमान भी उतनी ही आस्था के साथ इस मंदिर में आते है जितनी आस्था हिन्दू में है. लेकिन लगता है की आज कोरोना की वजह से वह लोग अपनों से नहीं मिल सकेंगे जो खीर भवानी के मेले के बहाने ही एक दुसरे से मिलते थे.


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