नई दिल्ली: सात साल के लंबे इंतज़ार के बाद आखिरकार निर्भया के दोषियों को फांसी देने का वक्त आ गया है. चारों दोषियों को सुबह साढ़ें पांच बजे फांसी के फंदे पर लटकाया जाएगा. लेकिन अपराधियों को अंजाम तक पहुंचाने में पुलिस की इन्वेस्टिगेशन काफी महत्वपूर्ण साबित हुई. इसमें सबसे अहम सुराग वो बस साबित हुई जिसके अंदर खौफनाक वारदात को अंजाम दिया गया था.
इन्वेस्टिगेशन के लिहाज़ से बस कितनी महत्वपूर्ण थी इसका पता इसी बात से चलता है कि बस रिकवर करने के बाद पुलिस ने इसे मीडिया की नज़रों और पब्लिक के आक्रोश से बचाने के लिए त्यागराज स्टेडियम में खड़ा कर दिया था. केस से जुड़े कई अहम सबूत इस बस में ही मौजूद थे.
निर्भया के दोस्त ने पुलिस को बताया था कि उन्होंने मुनिरका बस स्टॉप से एक सफेद रंग की चार्टर्ड बस ली थी जिस पर यादव ट्रैवेल लिखा था. बस की खिड़की पर पर्दे लगे हुए थे. बस के अंदर से एक शख्स द्वारका, पालम की आवाज़ लगा रहा था. कुछ और लोग भी अंदर बैठे थे जिन्हें उन्होंने यात्री समझा और बस में सवार हो गए.
निर्भया के दोस्त के बयान के आधार पर पुलिस ने सीसीटीवी खंगालते हुए इस बस को स्पॉट किया था. 17 दिसंबर 2012 को पुलिस ने बस को बरामद किया था और बस ड्राइवर राम सिंह को गिरफ्तार कर लिया था. अन्य अपराधी मुकेश, पवन, अक्षय, विनय और नाबालिग आरोपी को भी इसके बाद एक-एक करके गिरफ्तार कर लिया.
यादव ट्रैवल लिखी उस बस को आज भी देखकर सिहरन उठती है. बस की खिड़कियों का कांच टूट गया है, पूरी बस में जंग लगा हुआ है, खिड़कियों पर लगे पीले पर्दे फ़टे पुराने हो गए हैं लेकिन अभी भी लगे हुए हैं, लाल रंग के सीट कवर वाली सीटें सड़ने लगी हैं, दीमक लग गए हैं, बस की पिछली सीट जहां निर्भया के साथ गैंगरेप किया गया उसी हालत में है, दीमक लग गए हैं लेकिन एक-एक तस्वीर चीख-चीख कर निर्भया के साथ हुई दरिंदगी की गवाही देती है.
लंबी कानूनी प्रक्रिया के बाद आखिरकार फांसी की तारीख तय कर दी गई. लेकिन बस को देखकर आज भी ज़हन में ये सवाल उठता है कि अगर उस दिन ये बस नियम उल्लंघन करती सड़कों पर न दौड़ती, उसमें पर्दे न लगे होते, ऑटो वाला निर्भया को घर तक छोड़ आता और उसे कभी इस बस में सवार ही ना होना पड़ता तो शायद वो आज भी हमारे बीच होती.