नई दिल्ली: पूर्व उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी ने भारत के चुनावी लोकतंत्र को आज एक सफल कहानी बताया. लेकिन उन्होंने यह भी आशंका जताई कि यह हिंदुत्व कहे जाने वाले सामाजिक - राजनीतिक दर्शन के सिद्धांतों पर आधारित एक ‘रूढ़िवादी लोकतंत्र’ में तब्दील हो सकता है.

अपनी पुस्तक ‘डेयर आई क्वेशचन ? रिफलेक्शन ऑन कंटेम्पररी चैलेंजेज’ के विमोचन के अवसर पर अंसारी ने कहा कि सुधार जरूरी है और यह नागरिकों और सिविल सोसाइटी का कर्तव्य है कि वे सवाल करें. पूर्व प्रधान न्यायाधीश टीएस ठाकुर ने यहां पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह, माकपा महासचिव सीताराम येचुरी और कई अन्य नेताओं की मौजूदगी में पुस्तक का विमोचन किया.

अंसारी ने कहा कि वह देश में तीन चीजों पर समकालीन चर्चा को लेकर एक नागरिक होने के नाते चिंतित हैं. इनमें भारत की वैचारिक बुनियाद के सिद्धांत, संविधान द्वारा रखे गए संस्थागत ढांचे की स्थिति और भारतीय लोकतंत्र के लिए इनके प्रभाव शामिल हैं.  उन्होंने पुस्तक के बारे में कहा, ‘‘हमारा चुनावी लोकतंत्र एक सफल कहानी है, लेकिन इसने खुद को एक वास्तविक, समावेशी और सहभागिता वाले लोकतंत्र में तब्दील नहीं किया है.’’

पूर्व उपराष्ट्रपति ने आशंका जताई कि यह खुद को हिंदुत्व कहे जाने वाले सामाजिक - राजनीतिक दर्शन के सिद्धांतों के आधार पर अनुदार, जातीय लोकतंत्र में खुद को तब्दील कर सकता है. उन्होंने कहा कि भारतीय संदर्भ में धर्मनिरपेक्षता का अर्थ विभिन्न धार्मिक समुदायों से एक जैसा राजनीतिक बर्ताव, अल्पसंख्यकों के अधिकारों की हिफाजत और धर्मांधता की रोकथाम है.

उन्होंने कहा कि जैसा कि भीम राव आंबेडकर ने काफी समय पहले कहा था कि राजनीतिक लोकतंत्र अवश्य ही सामाजिक लोकतंत्र पर आधारित होना चाहिए. एक खुले समाज में असहमति काफी मायने रखती है. उन्होंने कहा कि कानून का शासन के नियम के अनुपालन में और विधायिका, कार्यपालिका एवं न्यायपालिका जैसी संस्थाओं की क्षमता में स्पष्ट रूप से कमी आई है. यह चिंता का विषय है.

यह पुस्तक उनके द्वारा पिछले साल और हाल के महीनों में दिए अहम भाषणों और आलेखों का संग्रह है. ठाकुर ने किताब की प्रशंसा की और इसे उत्कृष्ट रचना करार दिया.