नई दिल्ली: कारगिल का युद्ध महज एक युद्ध नहीं बल्कि भारतीय सेना की शौर्य की वह कहानी है जो आज तक न भुलाई जा सकी है और न भुलाई जा सकती है. वैसे तो इस युद्ध में मां भारती के लिए शहादत पाने वाले या लड़ते हुए दुश्मनों के दांत खट्टे करने वाले कई जांबाज हुए लेकिन एक नाम जो हर किसी की जुंबा पर आज भी है वो हैं सेना के जांबाज विक्रम बत्रा का नाम.
विक्रम बत्रा वो नाम है जिन्होंने 7 जुलाई 1999 कारगिल युद्ध की सबसे मुश्किल चुनौतियों में शुमार प्वाइंट 4875 पर मोर्चा संभालने और दुश्मन को लोहे के चने चबाने जैसा काम किया था.
विक्रम बत्रा के लिए यह मिशन इसलिए भी मुश्किल था क्योंकि रास्ता बिल्कुल विपरित था. ऊपर चढ़ने की संकरी जगह और ठीक सामने दुश्मन का ऐसी पोजीशन पर होना जहां से आसानी से वो आपको अपना निशाना बना सकता है. विक्रम बत्रा के पास कुछ था तो दिलेरी और भारत मां की रक्षा करने का जुनून.
यही जुनून था कि विक्रम बत्रा तेजी से दुश्मन की तरफ बढ़े और प्वाइंट ब्लैक रेंज से दुश्मन के पांच सैनिक ढेर कर दिए. इस दौरान गहरे जख्म होने पर भी बत्रा नहीं रुके. वो क्रॉलिंग करते हुए दुश्मन के करीब तक पहुंचे और ग्रेनेड फेंकते हुए पोजीशन को क्लियर कर दिया. हालांकि भारत मां का यह वीर सपूत दुश्मन की गोली से शहीद हो गया.
विक्रम की टीम ने प्वाइंट 4875 को वापस कब्जाने का लक्ष्य हासिल कर लिया. उनको सम्मानित करते हुए उनके साहस और वीरता के लिए उनको परमवीर चक्र का सम्मान दिया गया.