SC on Parsi Case: कोविड से मरने वाले लोगों के अंतिम संस्कार में पारसी समुदाय को आ रही समस्या हल हो गई है. अब ऐसे शव सिर्फ सूरज की किरणों से नष्ट होंगे. शवों को पक्षियों का आहार बनाने की परंपरा का पालन बंद कर दिया जाएगा. शवों की अंतिम क्रिया को लेकर केंद्र के दिशानिर्देश इस परंपरा में बाधक बन रहे थे. सुप्रीम कोर्ट के दखल के बाद केंद्र सरकार और पारसी संगठन ने समाधान ढूंढ लिया है.

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क्या है मामला?

सूरत पारसी पंचायत नाम का संगठन गुजरात हाई कोर्ट के एक फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट पहुंचा था. हाई कोर्ट ने केंद्र की तरफ से कोविड मृतकों के शव के अंतिम संस्कार के दिशानिर्देशों में बदलाव से मना कर दिया था. पारसी संस्था का कहना था कि उनके समुदाय में शवों को 'टावर ऑफ साइलेंस' में रखने की धार्मिक परंपरा है. इससे शव प्राकृतिक रूप से नष्ट होता है। पशु-पक्षी भी उसे अपना आहार बना सकते हैं.

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केंद्र का जवाब

केंद्र सरकार ने बताया था कि कोविड से मरने वाले व्यक्ति के शव के लोगों के संपर्क में आने से बीमारी फैलने का खतरा हो सकता है. साथ ही अंतर्राष्ट्रीय स्वास्थ विशेषज्ञों का कहना है कि ऐसे शव को अगर पशु-पक्षी खाते हैं, तो बीमारी के नए-नए स्वरूप विकसित हो सकते हैं. यह पूरे मानव समुदाय के लिए नए खतरे की वजह बन सकता है. इसलिए शवों के निष्पादन की प्रक्रिया में ढील नहीं दी जा सकती.

आखिर निकला समाधान

सुप्रीम कोर्ट ने सूरत पारसी पंचायत के वरिष्ठ वकील फली नरीमन और केंद्र सरकार के लिए पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता को सलाह दी थी कि वह आपस मे चर्चा कर हल निकालने की कोशिश करें. आज नरीमन ने कोर्ट को जानकारी दी कि सॉलिसिटर जनरल के साथ केंद्र के आला अधिकारी भी समुदाय के लोगों से मिले और सब लोग एक समाधान पर सहमत हो गए हैं. इसके तहत टावर ऑफ साइलेंस को लोहे की ग्रिल और पक्षी रोकने वाली जाली से ढंक दिया जाएगा. इससे पक्षी शव को नहीं खा सकेंगे. शव सूर्य की किरणों से नष्ट होगा. जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और सूर्य कांत की बेंच ने इस समाधान के लिए दोनों पक्षों की सराहना की. जजों ने माना कि इस तरह धार्मिक रीति का पालन भी हो जाएगा और कोविड प्रोटोकॉल का भी उल्लंघन नहीं होगा. इस टिप्पणी के साथ कोर्ट ने मामले का निपटारा कर दिया.

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