नई दिल्ली: निर्भया के दोषियों को मिलने वाली फांसी की सजा में हो रही देरी से उनकी मौत की सजा उम्रकैद में भी बदल सकती है. तिहाड़ जेल के इतिहास में ऐसे दो मामले हैं जिनमें फांसी की सजा में देरी होने से सजा बदल दी गई थी. इस मामले में फांसी की सजा के मामले में जैसी गोपनीयता बरती जाती है वैसा नहीं किया जा रहा है जिससे निर्भया के दोषियों को सीधा फायदा पहुंच सकता है. सूत्रों के मुताबिक गृह मंत्रालय इस मामले में एक दोषी की फाइल राष्ट्रपति को भेज चुका है.

दिल्ली का निर्भया कांड हुए आठ साल पूरे होने जा रहे हैं लेकिन उसके दोषियों को अभी तक सजा नहीं मिल पाई है. आलम यह है कि इस मामले में सुप्रीम कोर्ट की समय सीमा बीतने के एक साल तक किसी सरकार ने ध्यान ही नहीं दिया कि निर्भया के गुनहगार अभी जिंदा हैं. जानकारों का मानना है कि जिस मर्सी पिटीशन की बात की जा रही है वो दोषी से जुड़ा कोई भी शख्स लगा सकता है.

पूर्व कानूनी सलाहकार तिहाड़ जेल सुनील गुप्ता के मुताबिक, ''मर्सी पिटीशन दोषी, उसके परिवार वाले, उसका दोस्त कोई भी दे सकता है. मर्सी पिटीशन देने के बाद जेल अधीक्षक का काम होता है कि वह मर्सी पिटीशन के साथ पूरी फाइल तैयार करें. जिसमें इसका जेल में कंडक्ट कैसा है, उसने कितनी सजा काटी, निचली कोर्ट से लेकर सुप्रीम कोर्ट ने क्या-क्या आदेश किए. जेल अधीक्षक जो भी आदेश होते हैं उन सब की कंप्लीट फाइल लगा कर भेजता है. जेल मैनुअल के हिसाब से कंप्लीट फाइल होम डिपार्टमेंट में जाती है. होम डिपार्टमेंट अपना डाटा भी लेकर फाइल को केंद्र सरकार के पास भेजता है.''

एक दोषी विनय शर्मा ने दया याचिका लगाई है

इस मामले में केवल एक दोषी विनय शर्मा ने दया याचिका लगाई है. सूत्रों का कहना है कि उसकी फाइल केन्द्रीय गृह मंत्रालय ने राष्ट्रपति को भेज दी है. जिसमें दया याचिका खारिज करने के दिल्ली सरकार के फैसले को बरकरार रखा जायेगा. लेकिन इससे भी निर्भया के दोषियों को सजा मिलने का रास्ता नहीं खुलता.

जेल और कानून के जानकारों का मानना है कि निर्भया मामले में जिस तरह की देरी की जा रही है मसलन, सुप्रीम कोर्ट के अंतिम फैसले के डेढ़ साल बाद भी दया याचिका दाखिल नहीं हुई. केवल एक दोषी ने दया याचिका दाखिल की. तीन दोषी केवल मामले को लटकाने का इंतजार कर रहे हैं. इसके अलावा प्रशासनिक और सरकार के स्तर पर भी लापरवाही हुई. ऐसे में इस बात की पूरी संभावना है कि कहीं इस मामले में हो रही देरी का फायदा दोषी उठा ना लें जैसा कि अब तक दो मामलों में हो चुका है.

सुनील गुप्ता ने बताया कि ''ऐसे दो मामले मेरे सामने भी आए हैं जिनमें एक मामला देवेंद्र पाल सिंह भुल्लर का है जो एमएस बिट्टा के मामले में दोषी था और जिस पर आतंकवादी गतिविधि का आरोप था. इस मामले में देरी हुई थी लिहाजा दिल्ली गवर्नमेंट ने खुद ही कह दिया था कि उसकी फांसी की सजा को उम्र कैद की सजा में तब्दील कर दिया जाए. दूसरा मामला साल 1984 का है. खेमचंद नाम के आदमी ने अपने परिवार वालों को जहर देकर मारा था. उसके केस में भी मर्सी पिटीशन के डिस्पोजल में देरी हो गई थी. लिहाजा उस मामले को जब कोर्ट में चैलेंज किया गया तो कोर्ट ने फांसी की सजा को उम्रकैद में बदल दिया था.''

यही नहीं निर्भया मामले में सजा दिलाने को सरकारों ने इसे अपने नंबर बनाने का साधन बना लिया है. यही कारण है कि फांसी की सजा को लेकर जो सरकारी नोट गोपनीय रहने चाहिए उन्हें भी सार्वजनिक किया जा रहा है. इसका सीधा फायदा दोषी भी उठा सकते हैं.