UP Madrasas Survey: उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) के गैर मान्यता प्राप्त मदरसों (Unrecognised Madrasas) के सर्वेक्षण (UP Madrasas Survey) का काम 5 अक्टूबर को पूरा हो गया था. 15 अक्टूबर तक सभी जिलों के जिलाधिकारी शासन को सर्वे की रिपोर्ट भेज देंगे. सर्वे की रिपोर्ट के आधार पर सरकार आगे की कार्रवाई को लेकर फैसला लेगी. 

इस बीच रिपोर्ट्स में यह बात सामने आ रही है कि सर्वे में शामिल किया गया प्रश्न नंबर 9 (Question No. 9 of Madrasas Survey) को लेकर कुछ मदरसों (Madrasas) के बीच तनाव है. इन मदरसों को आशंका है कि कहीं योगी आदित्यनाथ सरकार (Yogi Adityanath Govt) का बुलडोजर (Bulldozer Action) न चल जाए. यह सवाल भी उठ रहा है कि सर्वे में प्रासंगिक प्रश्न नहीं पूछे गए. 

शिक्षकों के वेतन का उठ रहा सवाल

द प्रिंट की रिपोर्ट के मुताबिक, उत्तर प्रदेश के हापुड़ स्थित एक मदरसा के अध्यापक महताब आलम सर्वे के 12 प्रश्नों के साथ चक्कर लगा रहे हैं. आलम का कहना है कि 12 में कोई भी प्रश्न मदरसों की आज की समस्या पर बात नहीं करता है. 

रिपोर्ट में कहा गया है कि पंजीकृत और तथाकथित आधुनिक मदरसों में करीब 5000 शिक्षकों को चार साल से वेतन नहीं मिला है. ये वो मदरसे हैं जो इस्लामिक शिक्षा के साथ विज्ञान और गणित भी पढ़ाते हैं. सर्वे की सूची में सबसे चर्चित प्रश्न गैर-मान्यता प्राप्त मदरसों के लिए धन के स्रोत के बारे में हैं. सर्वे के प्रश्न नंबर 9 में गैर-मान्यता प्राप्त मदरसों के धन का स्रोत पूछा गया है. आलम का कहना है कि सरकार मदरसों की जांच या सर्वे करती रहती है लेकिन आधुनिक मदरसों में वेतन क्यों नहीं दिया जा रहा है?

इसलिए योगी सरकार ने शुरू कराया था सर्वे

राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (एनसीपीसीआर) ने यूपी के मदरसों में यौन शोषण समेत बाल अधिकारों के उल्लंघन के मामले सामने आने के बाद राज्य सरकार से सर्वेक्षण कराने का आग्रह किया था. इसके बाद अगस्त में सर्वे शुरू किया गया था. सरकार की कवायद पर राजनीति भी गरमाई. समाजवादी पार्टी ने सर्वे पर आपत्ति दर्ज कराई तो एआईएमआईएम प्रमुख असदुद्दीन अवैसी ने सर्वे को 'मिनी एनआरसी एक्सरसाइज' तक बताया. उन्होंने सरकार पर मुस्लिम समुदाय को परेशान करने का आरोप भी लगाया है. 

ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने पूछ चुका है कि योगी सरकार गुरुकुलों की भी जांच क्यों नहीं करती है? वहीं, जमीयत उलेमा-ए-हिंद और दारुल उलूम देवबंद सरकार के सर्वेक्षण का स्वागत कर चुके हैं. 

मदरसों में कम हो रहे छात्र- मदरसा बोर्ड

रिपोर्ट में मदरसों में शिक्षकों का वेतन और छात्रों की गिरती संख्या सबसे बड़ी चुनौती बताए जा रहे हैं. रिपोर्ट के मुताबिक, उत्तर प्रदेश मदरसा बोर्ड के अनुसार, 2016 में पंजीकृत मदरसों में 3,17,046 छात्र परीक्षाओं में शामिल हुए थे जबकि 2021 में यह आंकड़ा 1,22,132 छात्रों का रहा. इसका मतलब है कि पांच वर्षों में मदरसों में पढ़ने वाले छात्रों की संख्या 61 फीसदी कम हुई है. 

इस्लामिक मदरसा मॉडर्नाइजेशन टीचर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष एजाज अहमद ने कहा है कि सरकार सैकड़ों दफा सर्वे कराना चाहती है तो करा ले लेकिन पहले आधुनिक मदरसों के शिक्षकों का वेतन दिया जाए. 

प्रश्न नं. 9 को लेकर योगी के मंत्री का क्या कहना है?

यूपी के अल्पसंख्यक मामलों के राज्य मंत्री दानिश आजाद अंसारी ने एबीपी न्यूज से कहा था कि सर्वे का उद्देश्य और फंड का प्रश्न मदरसा व्यवस्था में दखल देना नहीं, बल्कि छात्रों को बेहतर सुविधाएं मुहैया कराना है. उन्होंने कहा था कि सर्वे के भय से कुछ लोग इसमें हिस्सा लेने से कतरा रहे हैं, इसके पीछे भ्रष्टाचार भी एक वजह है.

सर्वे में शामिल एक अधिकारी ने कहा कि लोगों को प्रश्न नंबर 9 से समस्या इसलिए है क्योंकि वे उनका चिट्ठा साफ सुथरा नहीं है और वे धन के स्रोत का खुलासा नहीं करना चाहते हैं. अधिकारी ने यह भी कहा कि गैर-मान्यता प्राप्त मदरसे ज्यादातर इस्लामी शिक्षा को विशेष रूप से पढ़ाने में लगे हुए हैं.

प्रश्न नं. 9 का उत्तर देने वाले लोगों का क्या कहना है?

जिन लोगों ने सर्वे के प्रश्न नंबर 9 का उत्तर दिया है, उनका कहना है कि वे जकात के रूप में धन प्राप्त कर रहे हैं. इस्लामी दान को जकात कहा जाता है. कई मदरसों के प्रबंधन अधिकारियों का कहना है कि जकात के बिना छात्रों को शिक्षित नहीं किया जा सकता है.

देवबंद के जमीयत तुश मदरसा के मैनेजर मौलाना मुजम्मिल अली ने कहा, ''हम मदरसा के बच्चों की शिक्षा और स्वास्थ्य के लिए जकात का इस्तेमाल करते हैं. हमने पहले ही इंटेलिजेंस ब्यूरो और सरकार को बच्चों और फंड के बारे में जानकारी दी है. चार्टर्ड अकाउंटेंट की ओर से हमारे पूरे फंड की देखभाल की जाती है. सबकुछ स्पष्ट है.''

जकात पर क्या कहती है ओआरएफ की रिपोर्ट?

ओआरएफ की 2021 की एक रिपोर्ट में कहा गया कि भारत के गैर-मान्यता प्राप्त मदरसों को मिलने वाले और खर्च किए गए धन को लेकर पर्याप्त पारदर्शिता और जवाबदेही नहीं है. जकात का इस्तेमाल करने को लिए एक औपचारिक माध्यम का भी अभाव है.  

शिक्षक आलम का कहना है कि जकात को चुराया नहीं जाता है लेकिन वह कहते हैं कि विश्वसनीयता भी जरूरी है. आलम के मुताबिक, मदरसों की प्रश्न संख्या 9 से समस्या हो सकती है क्योंकि कुछ लोगों ने कागज पर बड़ा खर्च दिखाया है. उन्होंने कहा कि अक्सर ऐसा होता है कि मदरसे जकात तो लेते हैं लेकिन छात्रों पर खर्च नहीं करते हैं. यूपी मदरसा बोर्ड के अध्यक्ष इफ्तिखार जावेद ने कहा है कि पहले की एक जांच से पता चलता है कुछ मदरसे सिर्फ कागजों पर मौजूद हैं. लोगों की आमदनी बढ़ी है लेकिन मदरसों की छवि जस की तस बनी हुई है.

यूपी में कितने मदरसे हैं?

पूरे यूपी में 16,500 मान्यता प्राप्त मदरसे हैं जबकि गैर-मान्यता प्राप्त मदरसों का सटीक आंकड़ा सरकार के पास नहीं है. 7,000 से ज्यादा मदरसे आधुनिक शिक्षा प्रदान करते हैं. इन मदरसों को चलाने के लिए 100 रुपये लेकर 400 रुपये तक फीस ली जाता है और इसके अलावे ये जकात पर निर्भर हैं. इन मदरसों के फंड से सरकार का कुछ भी लेना देना नहीं है. वहीं, 558 मदरसे राज्य सरकार की और से वित्त पोषित हैं और सरकार उन्हें नियंत्रित करती है. इनमें से कई मदरसों में स्नातक और स्नातकोत्तर तक के पाठ्यक्रम चलते हैं. उत्तर प्रदेश मदरसा बोर्ड का अनुमान है कि राज्य भर में लगभग 40,000 से 50,000 तक गैर-मान्यता प्राप्त मदरसे हो सकते हैं.

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