Monkeypox In Europe: दुनिया अभी कोरोना महामारी से उबर भी नहीं पाई कि अब एक नये वायरस ने हाहाकर मचा दिया है. इस वायरस का नाम है मंकीपॉक्स. जानवरों की बीमारी अब इंसानों में फैलने लग गई है. 2 हफ्तों के भीतर ये वायरस 11 देशों में दस्तक दे चुका है. अमेरिका में बुधवार को मंकीपॉक्स का पहला केस मिला तो वहीं यूरोप के कई देशों में इसने पैर पसारना शुरू कर दिया है. यूरोप में अभी तक 100 के आसपास मंकीपॉक्स के मरीज मिल चुके हैं.


दुनिया में मंकीपॉक्स वायरस के तेजी से फैलने पर विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) भी हरकत में आ गया है. इसके लिए उसने एक इमरजेंसी मीटिंग बुलाई है. बैठक में इस बात पर चर्चा हुई कि क्या मंकीपॉक्स को महामारी घोषित कर दिया जाए?


तो आइए 10 प्वाइंट्स में जानते हैं कि मंकीपॉक्स आखिर है क्या, इसके फैलने की वजह क्या है और ये भारत में कितना खतरा पैदा कर सकता है...



  • क्या है मंकीपॉक्स


मंकीपॉक्स एक चिकनपॉक्स की तरह का वायरस है लेकिन इसमें अलग तरह का वायरल संक्रमण होता है. ये सबसे पहले साल 1958 में कैद हुए एक बंदर में पाया गया था. साल 1970 में ये पहली बार ये किसी इंसान में पाया गया. ये वायरस मुख्यरूप से मध्य औऱ पश्चिम अफ्रीका के वर्षावन इलाकों में पाया जाता है.



  • कैसे फैलता है इंफेक्शन


मंकीपॉक्स किसी संक्रमित व्यक्ति या जानवर के पास जाने या किसी तरह से उनके संपर्क में आने से फैल जाता है. ये वायरस मरीज के घाव से निकलते हुए आंख, नाक, कान और मुंह के जरिए शरीर में घुस जाता है. इसके अलावा बंदर, चूहे और गिलहरी जैसे जानवरों के काटने से भी इस वायरस के फैलने का डर बना रहता है. इसके अलावा ये वायरस यौन संपर्क के माध्यम से भी फैल सकता है. विश्व स्वास्थ्य संगठन का कहना है कि वो समलैंगिक लोगों से संबंधित कई मामलों की जांच भी कर रहा है. कहा जाता है कि ये वायरस चेचक की तुलना में कम घाटक होता है.  



  • क्या हैं इस इन्फेक्शन के लक्षण


मंकीपॉक्स में आमतौर पर बुखार, दाने और गांठ के जरिए ये शरीर में दस्तक देता है. इससे कई तरह की मेडिकल प्रॉब्लम्स हो सकती हैं. इस बीमारी से संबंधित लक्षण 2 से 4 सप्ताह तक दिखते हैं. कहते हैं कि ये अपने आप दूर होते चले जाते हैं. कई बार मामला गंभीर हो सकता है. हाल ही के समय में मृत्यु दर का आंकड़ा 3 से 6 फीसदी तक रहा है. ताजा मामलों में ब्रिटेन में ही 20 लोगों की मौत का आंकड़ा सामने आया था.



  • अचानक से इन्फेक्शन फैलने की वजह


इसके पीछे ब्रिटेन के एक प्रोफेसर का कहना है कि कोरोना महामारी की वजह से लगभग सभी देशों में आने जाने पर पाबंदियां लगी हुई थीं. लेकिन महामारी का असर कम होने के बाद आवाजाही पर रोक हटी तो लोग बड़ी संख्या में एक जगह से दूसरी जगह ट्रैवल कर रहे हैं ऐसे में लोगों का अफ्रीकी देशों में भी आना जाना हो रहा है. शायद इसीलिए मंकीपॉक्स के मामले सामने आ रहे हैं.



  • समलैंगिकों पर वायरस का खतरा ज्यादा


जैसा कि हमने पहले भी बताया कि ये वायरस समलैंगिंकों पर ज्यादा असर दिखा रहा है. ब्रिटेन में अब तक मिले मंकीपॉक्स के ज्यादातर मामलों में वो पुरुष शामिल थे जिन्होंने खुद का गे या समलैंगिंक बताया है. ऐसा दावा यूके की हेल्श सिक्योरिटी एजेंसी ने किया है. हालांकि अभी तक इस संक्रमण को यौन संक्रामक बीमारी नहीं माना गया है लेकिन हो सकता है कि समलैंगिकों में ये सेक्स से संबंधित बीमारी फैला रही हो.



  • मंकीपॉक्स कितना खतरनाक


विश्व स्वास्थ्य संगठन की अगर मानें तो मंकीपॉक्स एक दुर्लभ बीमारी है. इसका संक्रमण कुछ मामलों में जटिल हो सकता है. इस वायरस की दो स्ट्रेंस हैं. एक है कांगो और दूसरी है पश्चिमी अफ्रीकी स्ट्रेन. ये दोनों ही स्ट्रेन 5 साल से छोटे बच्चों को अपना शिकार बनाती है. कांगों स्ट्रेन की मुत्यु दर 10 फीसदी औऱ पश्चिमी अफ्रीकी स्ट्रेन की मुत्यु दर 1 फीसदी है. ब्रिटेन में पश्चिमी अफ्रीकी स्ट्रेन की पुष्टि हुई है.



  • मंकीपॉक्स महामारी नहीं बन पाएगी


यूरोप और अफ्रीकन देशों को अपनी चपेट में ले चुके मंकीपॉक्स को महामारी नहीं मान सकते हैं. दरअसल अगर इसकी तुलना कोरोना से की जाए तो ये कोरोना से बहुत ही कम खतरनाक वायरस है. एक्सपर्ट की राय है कि ये बीमारी महामारी नहीं बन पाएगी क्योंकि ये कोरोना की तरह से तेजी से नहीं फैलती है. इससे संक्रमित होना उतना आसान नहीं है जितना कोरोना से संक्रमित होना है. इस बीमारी के मामलों को आसानी से आइसोलेट किया जा सकता है और इन्हें आसानी से एक जगह पर रोका जा सकता है.



  • भारत पर इसका कितना असर


अगर हम भारत की बात करें तो अभी तक देश में एक भी संदिग्ध मरीज नहीं मिला है. इसलिए हमारे देश पर इस वायरस का खतरा कम है. हालांकि सावधानी फिर भी बरतनी जरूरी है क्योंकि मेडिकल विभाग से जुड़े हुए लोगों का कहना है कि ब्रिटेन, अमेरिका और यूरोप में मंकीपॉक्स के मामले तेजी से कैसे बढ़े हैं इसकी जानकारी अभी आ नहीं पाई है. इसके बारे में जानकारी आने के बाद ही तस्वीर साफ हो पाएगी कि भारत में इसका खतरा कितना है.



  • विश्व स्वास्थ्य संगठन क्या कर रहा


मंकीपॉक्स के बढ़ते मामले देख विश्व स्वास्थ्य संगठन भी एक्शन मोड में आ गया है. WHO ने भी अपनी वेबसाइट पर इस बीमारी से जुड़ी सभी जानकारी अपडेट कर दी है. तो वहीं संक्रमण से प्रभावित देशों के साथ मिलकर डब्लूएचओ काम कर रहा है. ब्रिटेन में ये बीमारी समलैंगिकों या गे व्यक्तियों के द्वारा फैली या नहीं और इन लोगों को क्यों इतना असर कर रही है इस बात पर विश्व स्वास्थ्य संगठन काम कर रहा है.



  • मंकीपॉक्स का इलाज


अभी तक जो रिसर्च हुई है वो ये बताती है कि स्मॉलपॉक्स के खिलाफ प्रयोग किए जाने वाले वैक्सीन मंकीपॉक्स के खिलाफ भी कारगर साबित हुए हैं. इन वैक्सीन को 85 फीसदी तक कारगर साबित माना गया है. अमेरिका के फूड एंड ड्रग एसोसिएशन ने साल 2019 में Jynnoes नाम की वैक्सीन की मंजूरी दी थी. ये वैक्सीन चेचक और मंकीपॉक्स दोनों में ही इस्तेमाल की जाती है.


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