नई दिल्ली: 2014 में इराक के मोसुल शहर से लापता हुए 39 भारतीयों की क्रूर अबू बकर अल बगदादी के संगठन इस्लामिक स्टेट (ISIS) ने हत्या कर दी है. विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने आज राज्यसभा में कहा कि डीएनए जांच के बाद मौत की पुष्टि की. 39 भारतीयों में 31 पंजाब, 4 हिमाचल प्रदेश और बिहार-पश्चिम बंगाल के 2-2 नागरिक शामिल हैं. सुषमा स्वराज ने कहा कि जल्द ही सभी भारतीयों के शवों को भारत वापस लाया जाएगा. विदेश मंत्री के बयान के बाद कांग्रेस ने साढ़े तीन सालों तक गुमराह करने का आरोप लगाया है.
सुषमा स्वराज ने राज्यसभा में 39 भारतीयों के मारे जाने की जानकारी देते हुए कहा कि हरजीत मसीह की कहानी सच्ची नहीं थी कि उनके सामने सभी भारतीय मार दिये गये. मेरे पास सबूत हैं. मैंने वीके सिंह (विदेश राज्य मंत्री) से कहा था कि वह मोसुल में कंपनी (जहां सभी काम करते थे) से बात करें. वीके सिंह ने मोसुल से यात्रा शुरू की. कंपनी और वीके सिंह की बात हुई. कंपनी ने बताया कि हमारे यहां 40 भारतीय काम करते थे. जिनमें बांग्लादेशी भी थे. जब आईएस ने मोसुल पर कब्जा करना शुरू किया तो कंपनी ने सभी से जाने के लिये कहा. उसके बाद इराक और अन्य देशों के नागरिक कंपनी छोड़कर चले गये. लेकिन भारतीय और बांग्लादेश के मजदूरों ने कंपनी नहीं छोड़ी.
बांग्लादेशियों से भारतीयों को किया गया अलग
वीके सिंह से होटल कर्मचारी (केटरर) ने बताया कि एक दिन जब बांग्लादेशी और हिंदुस्तानी नागरिक हमारे यहां खाना खाने आ रहे थे तो आईएस के लोगों ने देखा और पूछा तुम कौन हो? तो आईएस ने कहा कि यहां अब ये नहीं रहेंगे सभी को टेक्सटाइल फैक्ट्री लेकर जाओ. सभी को वहां ले जाया गया. वहां बांग्लादेशियों और भारतीयों को अलग-अलग रखने के लिए कहा गया. फिर उन्होंने एक दिन कहा कि बांग्लादेशियों को इरबिल भेज दो. केटरर को यह जिम्मेदारी दी गई. और वह ले गया. केटरर ने दावा किया कि मैंने हरजीत मसीह को बांग्लादेशियों के साथ मुस्लिम नाम देकर इरबिल छोड़ा. जब हमसे (सुषमा स्वराज) हरदीप की इरबिल से बात हुई तो उसने नहीं बताया कि वह कैसे वहां पहुंचा. वह इतना कहता रहा कि मुझे यहां से निकाल दो.
इराक पहुंच कर एबीपी न्यूज़ ने सबसे पहले दिखाई थी ISIS की क्रूरता
हरजीत मसीह ने मनगढ़ंत कहानी बनाई
बाद में हरजीत मसीह ने कहानी गढ़ी कि सभी भारतीयों को उनके साथ ही जंगल ले जाया गया, सभी को गोली मारकर हत्या कर दी गई और मेरे पैर में गोली मारी गई. यह मनगढ़ंत कहानी थी. मसीह, अली बनकर इरबिल निकल गया था. आतंकी हर दिन सभी मजदूरों की गिनती करते थे. हरदीप के जाने के बाद 40 में से 39 बचे. आईएस ने सभी 39 भारतीयों को अलग शिफ्ट कर दिया. कंपनी के मालिक ने बताया कि उन्हें बदुश ले जाया गया. उसके बाद कंपनी को जानकारी नहीं मिली कि सभी भारतीय कहां हैं.
मसीह इराक से किसी तरह भाग कर भारत लौट आया था. उसने बताया था कि किस तरह आईएस के आतंकी 50 बांग्लादेशियों और 40 भारतीयों को उनकी कंपनी से बसों में भरकर किसी पहाड़ी पर ले गए थे और गोलियां बरसाई थीं.
पहाड़ पर हत्या के बाद दफन कर दिया गया था सभी का शव
कंपनी से बातचीत के बाद इराक के अधिकारी के साथ हमारे अधिकारी बदुश गये. वहां कई दिनों सभी भारतीयों को तक ढूंढते रहे. वहां एक शख्स मिला. उसने बताया कि एक पहाड़ है जहां बहुत लोगों को दफनाया गया है. रडार से सर्च किया गया. तो पता चला कि शव हैं. तो उसके बाद पहाड़ी को खुदवाया गया. जिसमें दो शवों की पहचान करवाई गई. लंबे बाल, कड़ा, जूते (जो इराकी नहीं थे) मिले. उसके बाद अन्य शवों को भी निकाला गया. सारे शवों को बगदाद भेजा गया. वहां शवों की जांच शुरू की गई. एक संगठन से संपर्क किया गया. उसने डीएनए की मांग की. हमने पंजाब, हिमाचल, बिहार और पश्चिम बंगाल सरकार से डीएनए सेंपल मंगवाया और बगदाद भेजा.
पढ़ें, हिंसा से लबरेज बगदादी के आतंकी संगठन की जन्म से अबतक की कहानी
लाशों के ढेर से भारतीयों को खोजना था मुश्किल
संदीप नाम के शख्स का पहले डीएनए मैच किया. उसके बाद सभी डीएनए मैच करता गया. कल (सोमवार) 38 शवों के डीएनए मैच करा लिये गये. 39वें का डीएनए 70 प्रतिशत मैच कर गया. डीएनए मैचिंग से बड़ा सबूत नहीं हो सकता है. मोसुल मुक्त हुआ तो लाशों के ढेर थे उसमें से शवों का पहचान करना सबसे मुश्किल काम था. मैं जनरल वीके सिंह (विदेश राज्य मंत्री) को धन्यवाद करूंगी कि उन्होंने काफी मेहनत की. जिस दिन वीके सिंह बदुश गये वहां जमीन पर चार लोग सोये. उन्होंने सबूत खोजे. इराक सरकार को भी धन्यवाद. तीन वर्ष तक जांच जारी रही. मैंने शवों को वापस भारत वापस लाये जाने के लिए राजदूत से कहा है. वीके सिंह विशेष विमान से इराक जाएंगे. और शवों को जल्द वापस लाया जाएगा.
कांग्रेस ने पूछा- देर क्यों लगाई गई?
सुषमा के बयान के बाद राज्यसभा में सभी मृतकों की याद में 2 मिनट का मौन रखकर श्रद्धांजलि दी गई. कांग्रेस के वरिष्ठ नेता शशि थरूर ने मोसुल में मारे गए भारतीय को लेकर सरकार पर सवाल उठाए हैं. उन्होंने कहा ''प्रत्येक भारतीय नागरिक के लिए यह दुखद है बाकि मैं यह पूछना चाहूंगा कि सरकार ने इस जानकारी में इतनी देर क्यों लगाई, उन्हें बताना चाहिए था कि यह कैसे हुआ उनकी मौत कब हुई. साथ ही उन्होंने इनके परिजनों की उम्मीदों को जगाए रखा जो सही नहीं था.''
39 भारतीयों की हत्या पर हर अपडेट्स के लिए यहां क्लिक करें
39 भारतीयों में से एक मजिंदर सिंह की बहन गुरपिंदर कौर ने कहा कि उन्हें पहले सूचना नहीं दी गई. उन्होंने कहा, ''चार साल पहले विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने कहा था कि वह जिंदा है. आप दूसरी खबरों पर विश्वास नहीं करें. हम बातचीत के इंतजार में थे. हमें सूचना नहीं दी गई. संसद में बयान के बाद हमें पता चला. हमें मौत के सबूत दिये जाएं.''
साल 2014 में जब आतंकी संगठन आईएस ने इराक के दूसरे सबसे बड़े शहर मोसुल को अपने कब्जे में लिया था तब इन भारतीयों को बंधक बना लिया था. सभी मजदूरी का काम करते थे. इन्हें मोसुल में इराक की कंपनी ने नियुक्त किया था.