Pegasus Spyware Case: सुप्रीम कोर्ट बुधवार को पेगासस मामले की जांच पर आदेश देगा. सरकार ने मामले में निष्पक्ष विशेषज्ञ कमिटी बनाने का प्रस्ताव दिया था. इसका याचिकाकर्ताओं ने विरोध किया था. कोर्ट यह संकेत दे चुका है कि वह अपनी तरफ से कमेटी का गठन कर सकता है. 23 सितंबर को एक मामले की सुनवाई के दौरान चीफ जस्टिस एन वी रमना ने कहा था कि वह एक कमिटी के गठन करना चाहते हैं. कुछ विशेषज्ञों ने निजी कारणों से कमिटी में शामिल होने में असमर्थता जताई है. इस कारण आदेश जारी करने में विलंब हो रहा है.


15 याचिकाएं हैं लंबित


सुप्रीम कोर्ट में पेगासस मामले की निष्पक्ष जांच के लिए 15 याचिकाएं लंबित हैं. ये याचिकाएं वरिष्ठ पत्रकार एन राम, राज्यसभा सांसद जॉन ब्रिटास, पूर्व केंद्रीय मंत्री यशवंत सिन्हा समेत कई जाने-माने लोगों की है. उन्होंने राजनेताओं, पत्रकारों, पूर्व जजों और सामान्य नागरिकों की स्पाईवेयर के ज़रिए जासूसी का आरोप लगाया है. मामले की जांच की मांग पर सुप्रीम कोर्ट ने 13 सितंबर को आदेश सुरक्षित रखा था. सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार ने प्रस्ताव दिया था कि वह एक विशेषज्ञ कमेटी बनाएगी, जिसमें सरकार का कोई आदमी नहीं होगा. यह कमेटी कोर्ट की निगरानी में काम करेगी और कोर्ट को रिपोर्ट देगी. याचिकाकर्ताओं ने इसका विरोध करते हुए मांग की थी कि कमेटी का गठन कोर्ट करे.
 
सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता ने क्या कहा था?


मामले की सुनवाई के दौरान केंद्र ने विस्तृत हलफनामा दाखिल करने से मना किया था. सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता ने कहा था, "याचिकाकर्ता चाहते हैं कि सरकार बताए कि वह पेगासस का इस्तेमाल करती है या नहीं. हम हां कहें या न, देश के दुश्मनों के लिए यह जानकारी अहम होगी. वह उसी हिसाब से अपनी तैयारी करेंगे. यह विषय सार्वजनिक चर्चा का नहीं है. हमें कमिटी बनाने दीजिए. कमेटी कोर्ट को रिपोर्ट सौंपेगी."


याचिकाकर्ता पक्ष की तरफ से वरिष्ठ वकीलों कपिल सिब्बल, श्याम दीवान, दिनेश द्विवेदी, राकेश द्विवेदी, मीनाक्षी अरोड़ा और कोलिन गोंजाल्विस ने सरकार के रवैये का विरोध किया था. सिब्बल ने कहा था, "हमारा आरोप है कि सरकार जानकारी छिपाना चाहती है. फिर उसे कमेटी क्यों बनाने दिया जाए?" इसके जवाब में सॉलिसीटर जनरल ने कहा था कि सरकार कोर्ट से कुछ नहीं छुपाना चाहती. सिर्फ राष्ट्रीय सुरक्षा के चलते सॉफ्टवेयर इस्तेमाल पर सार्वजनिक चर्चा नहीं चाहती. तुषार मेहता ने यह भी कहा था कि जिन्हें जासूसी का संदेह है, वह अपना फोन जांच के लिए कमेटी को दे सकते हैं. इन दलीलों के बाद बेंच ने अंतरिम आदेश सुरक्षित रख लिया था.


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