सुप्रीम कोर्ट ने मल्टीप्लेक्स में सिनेमा टिकट और खाने-पीने की चीजों की अधिक कीमत पर चिंता जताई है. कोर्ट ने कहा है कि अगर सिनेमा हॉल पानी की बोतल के लिए 100 और कॉफी के लिए 700 वसूलते रहे तो वह खाली हो जाएंगे. हालांकि, कोर्ट ने इस कठोर टिप्पणी के बाद कर्नाटक के मल्टीप्लेक्स मालिकों को राहत दे दी है. फिलहाल उन्हें टिकट खरीदने वाले हर व्यक्ति का ब्यौरा नोट नहीं करना होगा.

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मल्टीप्लेक्स एसोसिएशन हाई कोर्ट के एक आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट पहुंचा था. हाई कोर्ट ने मल्टीप्लेक्स को सिनेमा टिकट खरीदने वाले सभी लोगों की पहचान नोट करने के लिए कहा था. सुप्रीम कोर्ट ने इस आदेश पर रोक लगा दी है.

कर्नाटक सरकार के फैसले से शुरू हुआ विवाद

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इस विवाद की शुरुआत तब हुई जब कर्नाटक सरकार ने मल्टीप्लेक्स में टिकट की अधिकतम कीमत 100 रुपए तय कर दी. इसके खिलाफ मल्टीप्लेक्स मालिक हाई कोर्ट पहुंचे. उन्होंने कहा कि ऐसा करना राज्य सरकार के अधिकार में नहीं आता. हाई कोर्ट ने राज्य सरकार के आदेश पर रोक तो लगा दी, लेकिन शर्त रखी कि सिनेमा हॉल सभी दर्शकों का विवरण नोट करें. हाई कोर्ट ने कहा कि अगर भविष्य में उसका फैसला सरकार के पक्ष में जाएगा तो लोगों को टिकट के पैसे लौटाए जाएंगे.

मल्टीप्लेक्स मालिक हाई कोर्ट के आदेश को अव्यवहारिक बताते हुए सुप्रीम कोर्ट पहुंचे थे. उनकी तरफ से पेश वरिष्ठ वकील मुकुल रोहतगी ने कहा कि अधितकर लोग ऑनलाइन सर्विस प्रोवाइडर से टिकट खरीदते हैं. अगर कोई हॉल के काउंटर से टिकट लेता भी है तो वह पहचान पत्र लेकर नहीं आता. मल्टीप्लेक्स के लिए दर्शकों की पहचान दर्ज करना असंभव है. 

मल्टीप्लेक्स टिकट रेट पर नियंत्रण की जरूरत

जस्टिस विक्रम नाथ और संदीप मेहता की बेंच ने सुनवाई के दौरान कहा कि मल्टीप्लेक्स में वाकई टिकट से लेकर खाने-पीने की वस्तुओं तक की बहुत कीमत होती है, इस पर नियंत्रण की जरूरत है. जवाब में रोहतगी ने कहा कि मल्टीप्लेक्स किसी को बाध्य नहीं करते. लोग अपनी पसंद से सिनेमा देखने आते हैं और वहां खाने-पीने की चीजें खरीदते हैं.

रोहतगी ने यह भी कहा कि अगर कोई चाहे तो सामान्य सिनेमाघर (सिंगल स्क्रीन थिएटर) में भी जा सकता है. इस पर जजों ने कहा कि अब सामान्य सिनेमाघर बचे ही कहां हैं. कोर्ट ने यह भी कहा कि वह कर्नाटक हाई कोर्ट की डिवीजन बेंच के इस विचार से प्रथमदृष्टया सहमत है कि टिकट की कीमत 200 रुपए तक होनी चाहिए.

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