सुप्रीम कोर्ट ने हिंदू महिलाओं को सलाह दी है कि उन्हें अपनी संपत्ति की वसीयत जरूर करनी चाहिए. कोर्ट ने यह सलाह उन याचिकाओं को सुनते हुए दी जिनमें निःसंतान विधवा कि संपत्ति उसके माता-पिता या भाई-बहनों को देने की मांग की गई थी. जस्टिस बी वी नागरत्ना और आर महादेवन की बेंच ने मामले पर विचार करने से मना कर दिया. जजों ने कहा कि अगर महिलाएं स्पष्ट वसीयत करेंगी तो इससे उनकी मृत्यु के बाद मायके और ससुराल पक्ष के रिश्तेदारों में संपत्ति को लेकर विवाद नहीं होगा.
क्या था मामला? यह विवाद हिन्दू उत्तराधिकार कानून की धारा 15 और 16 से जुड़ा था. इन धाराओं के मुताबिक अगर कोई महिला निःसंतान मरती है और उसने कोई वसीयत नहीं की है, तो उसकी संपत्ति पति को जाएगी. अगर पति जीवित नहीं है तो पति के वारिसों यानी पति के परिवार के लोगों को संपत्ति दी जाएगी. अगर पति का कोई उत्तराधिकारी नहीं है, तब महिला के माता-पिता या भाई-बहन को संपत्ति मिलेगी.
याचिकाकर्ताओं की मांगसुप्रीम कोर्ट में दाखिल सभी याचिकाओं में व्यक्तिगत विवादों को उठाते हुए कानून के प्रावधान को चुनौती दी गई थी. इनमें कहा गया था कि आधुनिक जमाने में इस तरह की व्यवस्था महिला से भेदभाव है. उसकी खुद की अर्जित संपत्ति उसके परिवार को ही मिलनी चाहिए.
कोर्ट ने क्या कहा?25 सितंबर को मामला सुनते हुए जस्टिस बी वी नागरत्ना और जस्टिस आर महादेवन की बेंच ने याचिका में रखी गई मांग को सामाजिक व्यवस्था से जोड़ा था. जस्टिस नागरत्ना ने कहा था, 'महिला जब विवाह करती है तो वह पति के परिवार की हो जाती है. उसका गोत्र बदल कर वही हो जाता है जो पति का है. कानून में भी जब उसे भरण-पोषण मांगना होता है, तब वह पति या उसके परिवार से मांगती है. अपने माता-पिता या भाई-बहन पर मुकदमा नहीं करती.'
'समाजिक ढांचे को नुकसान नहीं पहुंचाएंगे'कोर्ट ने कहा था कि अगर कोई महिला अपने मायके वालों को संपत्ति देना चाहती है तो वसीयत करने पर कोई रोक नहीं है. लेकिन अगर वह बिना वसीयत मरती है, तब कानून में उसके पति के परिवार को प्राथमिकता दी गई है. कोर्ट ने कहा था, 'हम नहीं चाहते कि कोई ऐसा निर्णय दें जो हजारों सालों से चले आ रही हिन्दू सामाजिक व्यवस्था को नुकसान पहुंचाए. हम महिलाओं को अधिकार देने के खिलाफ नहीं हैं, लेकिन समाज की संरचना और अधिकारों में संतुलन होना चाहिए.'
मध्यस्थता के ज़रिए निकालें समाधानबुधवार, 19 नवंबर को दिए आदेश में सुप्रीम कोर्ट ने इस तरह के मामलों में मध्यस्थता पर ज़ोर दिया है. कोर्ट ने कहा है कि अगर कोई निःसंतान विधवा बिना वसीयत के मरती है तो मुकदमे से पहले मध्यस्थता का प्रयास होना चाहिए. महिला के माता-पिता या उनके वारिस मुकदमा दाखिल करने से पहले संपत्ति के दावेदार दूसरे पक्ष से मध्यस्थता के ज़रिए समाधान की कोशिश करें. अगर मध्यस्थता से कोई निष्कर्ष निकलता है तो उसे सिविल कोर्ट की कानूनी डिक्री की तरह देखा जाएगा.