Supreme Court Slammed UP Police: आपराधिक मामलों में आरोपियों की हिरासत के दौरान पुलिस इंटेरोगेशन में लिए गए बयान को चार्जशीट में शामिल करने पर सुप्रीम कोर्ट ने बड़ी टिप्पणी की है. उत्तर प्रदेश पुलिस की ऐसी कार्यशैली पर फटकार लगाते हुए कोर्ट ने कहा है कि ये तो असंवैधानिक है.


बार एंड बेंच की रिपोर्ट के मुताबिक, सनुज बंसल बनाम उत्तर प्रदेश राज्य और अन्य के मामले की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट में यह टिप्पणी की. इसके अलावा कोर्ट ने इस मामले में UP पुलिस के DGP को व्यक्तिगत तौर पर रिपोर्ट पेश करने को कहा है.


क्या कहना है सुप्रीम कोर्ट का?


उत्तर प्रदेश पुलिस की ओर से दाखिल की गई एक चार्ज शीट में इंटेरोगेशन के दौरान आरोपियों के बयान को रिकॉर्ड कर शामिल किया गया था. इसका उल्लेख करते हुए जस्टिस अभय एस ओका और उज्ज्वल भुयान की बेंच ने कहा, "हमें लगता है कि पूछताछ के दौरान कथित तौर पर दर्ज किए गए आरोपियों के तथाकथित बयान चार्जशीट का हिस्सा बन रहे हैं. उनमें से कुछ कथित इकबालिया बयानों (जुर्म कबूल करने वाले बयान) की प्रकृति के हैं. प्रथम दृष्टया, यह अवैध है." 


यूपी पुलिस के डीजीपी को देनी होगी रिपोर्ट


सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश के पुलिस महानिदेशक (डीजीपी) को भी जांच करने और उसके बाद चार्जशीट में ऐसे बयानों को जोड़ने की कार्य शैली के बारे में एक व्यक्तिगत हलफनामा प्रस्तुत करने का निर्देश दिया है. साक्ष्य अधिनियम, 1872 की धारा 25 और 26 के अनुसार, पुलिस की हिरासत में अभियुक्त द्वारा किए गए कबूलनामे न्यायालय में साक्ष्य के रूप में स्वीकार्य नहीं हैं. इसे जबरदस्ती भी स्वीकार करवाए जाने की श्रेणी में रखा जाता है. अब इस मामले की अगली सुनवाई की तारीख 12 जुलाई, 2024 मुकर्रर की गई है. उसके पहले यूपी पुलिस को हलफनामा देना है. उसे देखने के बाद कोर्ट इस मामले में फैसला सुनाएगा.


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