सुप्रीम कोर्ट ने जबरन एसिड पिलाए जाने के मामलों पर सख्त टिप्पणी की है. चीफ जस्टिस सूर्य कांत की अध्यक्षता वाली बेंच ने कहा है कि ऐसे मामलों को हत्या के प्रयास की तरह देखते हुए मुकदमा चलाना चाहिए. आरोपी को आसानी से ज़मानत नहीं मिलनी चाहिए. कोर्ट ने कहा कि ऐसे लोग समाज में आज़ाद घूमने के हकदार नहीं हैं.

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एसिड अटैक पीड़िता शाहीन मलिक की याचिका को सुनते हुए कोर्ट ने यह टिप्पणी की है. इससे पहले 4 दिसंबर को कोर्ट ने केंद्र सरकार से पूछा था कि जिन लोगों को एसिड पिला दिया जाता है, उन्हें दिव्यांग का दर्जा क्यों नहीं दिया जा रहा है? साथ ही, कोर्ट ने सभी हाई कोर्ट से एसिड अटैक मुकदमों का ब्यौरा मांगा था. कोर्ट ने कहा था कि कि इन मामलों को लगातार सुन कर तेजी से निपटाया जाना चाहिए.

एसिड अटैक सर्वाइवर को मिलता है दिव्यांग का दर्जा, लेकिन...

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याचिका में कोर्ट को बताया गया है कि जिन लोगों के चेहरे या शरीर पर एसिड डाला जाता है, उन्हें पर्सन्स विद डिसेबिलिटी एक्ट, 2016 के तहत दिव्यांग का दर्जा मिलता है, लेकिन जिन्हें एसिड पिला दिया गया है, उन्हें ऐसा कोई दर्जा नहीं दिया जाता है. इस तरह के पीड़ितों की आहार नली समेत अंदरूनी अंग जल जाते हैं. वह बहुत कष्ट में जीवन बिताते हैं.

सॉलिसिटर जनरल ने अदालत में क्या बताया?

गुरुवार, 11 दिसंबर को मामला दोबारा सुनवाई पर आया. कोर्ट में मौजूद सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने माना कि कानून में विसंगति है. इसमें सिर्फ एसिड हमले से बाहरी शारीरिक नुकसान झेलने वालों का ज़िक्र है. इसे सुधारा जाना चाहिए. एसिड पिलाए जाने से अंदरूनी क्षति उठाने वाले लोगों को भी दिव्यांग का दर्जा देकर सभी जरूरी सुविधाएं दी जानी चाहिए. इसके लिए कानून में उचित बदलाव किया जाएगा.

कोर्ट ने सरकार को इसके लिए समय देते हुए 6 सप्ताह बाद आगे सुनवाई की बात कही. एसिड पिलाए जाने की घटनाओं पर चिंता जताते हुए कोर्ट ने आरोपियों से सख्ती की भी ज़रूरत बताई. कोर्ट ने कहा, 'इस पर किसी दूसरी राय की कोई गुंजाइश नहीं कि ऐसे मामलों में धारा 307 के तहत मुकदमा चलना चाहिए. कानून में ऐसे जघन्य और अमानवीय मामलों के लिए विशेष प्रावधान जोड़ा जाने की ज़रूरत है. ऐसे लोगों को समाज में घूमने का कोई अधिकार नहीं है. वह कानून के शासन के लिए खतरा हैं.'

कौन हैं याचिकाकर्ता?

याचिकाकर्ता शाहीन मलिक खुद एसिड अटैक पीड़िता हैं. उन पर 2009 में एसिड डाला गया था. घटना हरियाणा के पानीपत में हुई थी. उनकी याचिका पर 2014 में केस दिल्ली की रोहिणी कोर्ट में ट्रांसफर किया गया, लेकिन अब तक मुकदमा पूरा नहीं हुआ है. इस बीच उन्होंने अपने जैसे दूसरे लोगों के अधिकार के लिए लड़ना शुरू कर दिया. अब वह ऐसे लोगों का मामला लेकर सुप्रीम कोर्ट पहुंची हैं जिन्हें एसिड पिला दिया जाता है.