सुप्रीम कोर्ट ने कहा- सत्ता के करीब बने रहने के लिए अधिकारी करते हैं पद का दुरुपयोग
सुप्रीम कोर्ट ने निलंबित आईपीएस की गिरफ्तारी पर अंतरिम रोक लगा दी. कोर्ट ने उनसे जांच में सहयोग करने के लिए कहा है. इस दौरान चीफ जस्टिस ने अहम टिप्पणी की.
नई दिल्ली: अवैध संपत्ति और राजद्रोह जैसी धाराओं में आरोप झेल रहे छत्तीसगढ़ के निलंबित आईपीएस गुरजिंदर पाल सिंह को आज सुप्रीम कोर्ट से राहत मिली. सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें गिरफ्तारी से राहत दी. साथ ही, जांच में सहयोग के लिए कहा. पिछली सरकार में एंटी करप्शन ब्यूरो के मुखिया रह चुके आईपीएस को राहत देते समय चीफ जस्टिस ने कहा कि जब कोई सत्ताधारी पार्टी के लिए काम करता है, तो सत्ता बदलने पर उसे ऐसे आरोप झेलने पड़ते हैं.
गुरजिंदर पाल सिंह पर राज्य में सत्ता परिवर्तन के बाद कई मामले दर्ज किए गए
बीजेपी की रमन सिंह सरकार के चहेते पुलिस अधिकारियों में गिने जाने वाले गुरजिंदर पाल सिंह पर राज्य में सत्ता परिवर्तन के बाद कई मामले दर्ज किए गए हैं. आर्थिक अपराध शाखा और भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो ने छापे मारते हुए 10 करोड़ रुपए से अधिक की आय से अधिक संपत्ति का पता लगाने का दावा किया है. उनके ठिकानों में मारे गए छापे के दौरान कंप्यूटर से मिली सामग्री के आधार पर उन पर सरकार के खिलाफ साज़िश करने का भी आरोप लगा है. इस सिलसिले में उन पर आईपीसी की धारा 124A के तहत राजद्रोह का भी मुकदमा दर्ज किया गया है.
राज्य सरकार ने 5 जुलाई को गुरजिंदर पाल सिंह को निलंबित कर दिया था. तब से एडीजी रैंक के वरिष्ठ आईपीएस भूमिगत हैं. अपनी गिरफ्तारी का अंदेशा जताते हुए उन्होंने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था. उनकी तरफ से वरिष्ठ वकील फली नरीमन ने पूरी कार्रवाई को दुर्भावनापूर्ण बताया. चीफ जस्टिस एन वी रमना की अध्यक्षता वाली बेंच के सामने राज्य सरकार की तरफ से पूर्व एटॉर्नी जनरल मुकुल रोहतगी पेश हुए. उन्होंने बताया कि सभी मुकदमे ठोस प्राथमिक सबूतों के आधार पर दर्ज किए गए हैं.
चीफ जस्टिस ने की अहम टिप्पणी
आखिरकार, कोर्ट ने निलंबित आईपीएस की गिरफ्तारी पर अंतरिम रोक लगा दी. कोर्ट ने उनसे जांच में सहयोग करने के लिए कहा है. इस दौरान चीफ जस्टिस ने अहम टिप्पणी की. उन्होंने कहा, "यह देखा जा रहा है कि कुछ पुलिस अधिकारी सत्ताधारी दल के लिए काम करते हैं. उन्हें खुश करने के लिए शक्ति का दुरुपयोग करते हैं. विपक्षी नेताओं को परेशान करते हैं. फिर जब सत्ता परिवर्तन होता है, तो नई सरकार ऐसे अधिकारी को निशाने पर लेती है."
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