कांग्रेस के राज्यसभा सांसद इमरान प्रतापगढ़ी के ऊपर गुजरात में दर्ज केस रद्द करने पर सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रख लिया है. कोर्ट ने प्रतापगढ़ी को राहत का संकेत देते हुए कहा कि जिस कविता के लिए यह केस दर्ज हुआ है, उसका सही अर्थ समझने का प्रयास होना चाहिए. यह कविता किसी धर्म के विरोध में नहीं कही गई है. इसका मकसद अहिंसा की बात करना था.
जामनगर में एक सामूहिक विवाह कार्यक्रम में शामिल होने के बाद इमरान प्रतापगढ़ी ने 2 जनवरी को सोशल मीडिया पर एक पोस्ट किया था. इस पोस्ट में उन्होंने बैकग्राउंड ऑडियो के तौर पर एक कविता लगाई थी. 'ऐ खून के प्यासे लोगों सुनो..' जैसे शब्दों वाली कविता को सांप्रदायिक सौहार्द बिगाड़ने वाला बताते हुए जामनगर के रहने वाले किशनभाई नंदा ने एफआईआर दर्ज करवाई. उस एफआईआर में बीएनएस की धाराएं 196 और 197 जोड़ी गई हैं. इन धाराओं में 5 साल तक की सज़ा हो सकती है.
इस केस को निरस्त करवाने के लिए इमरान ने गुजरात हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया. उन्होंने दलील दी कि उनका मकसद शांति और प्रेम को बढ़ावा देना था, लेकिन हाई कोर्ट के जस्टिस संदीप भट्ट की बेंच ने इससे मना कर दिया. हाई कोर्ट ने कहा कि जांच अभी शुरुआती दौर में है. इमरान प्रतापगढ़ी एक सांसद हैं. उन्हें जिम्मेदारी से काम लेते हुए कानूनी प्रक्रिया का पालन करना चाहिए.
प्रतापगढ़ी की अपील को सुनते हुए 21 जनवरी को सुप्रीम कोर्ट ने जामनगर में दर्ज एफआईआर में किसी कार्रवाई पर रोक लगा दी थी. सोमवार, 3 मार्च को मामला एक बार फिर जस्टिस अभय एस ओका की अध्यक्षता वाली 2 जजों की बेंच के सामने लगा. जस्टिस ओका ने कहा, 'संविधान लागू हुए 7 दशक से अधिक समय हो चुका है. पुलिस को अभिव्यक्ति के मामलों में संवेदनशीलता बरतनी चाहिए.'
गुजरात सरकार के लिए पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा, 'शब्दों का अर्थ लोग अलग तरीके से भी लगा सकते हैं. यह एफआईआर का कारण है.' प्रतापगढ़ी की याचिका में इस कविता को विख्यात शायर फैज का बताया गया था. इस पर टिप्पणी करते हुए एसजी तुषार मेहता ने कहा, 'इस तरह की 'सड़कछाप' पंक्तियों को इतने बड़े शायर से नहीं जोड़ना चाहिए.'
इमरान के लिए पेश वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने कहा कि यह पोस्ट याचिकाकर्ता की सोशल मीडिया टीम ने बिना उनकी जानकारी के कर दिया था. इस पर जजों ने कहा कि यह ऐसा मामला नहीं था, जिसके सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचने की जरूरत थी. इसका निपटारा हाई कोर्ट के स्तर पर ही हो जाना चाहिए था. कपिल सिब्बल ने जजों से अनुरोध किया कि वह अपने फैसले में पुलिस और हाई कोर्ट के रवैये पर भी कुछ कहें.