Supreme Court on Community Kitchens: सुप्रीम कोर्ट ने देश भर में जरूरतमंद लोगों को खाना खिलाने के लिए सामुदायिक रसोई चलाने का आदेश देने से इनकार कर दिया है. गुरुवार (22 फरवरी, 2024) को टॉप कोर्ट ने दो टूक कहा कि राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा कानून और दूसरी योजनाओं के तहत पहले से ही लोगों को अनाज उपलब्ध कराया जा रहा है. ऐसे में अलग से कोई आदेश देने की ज़रूरत नहीं है. केंद्र और राज्य सरकारों को जरूरी लगे तो वे सामुदायिक रसोई चलाने पर भी विचार कर सकती हैं.


न्यायालय ने सुनवाई के दौरान कहा कि उसने इस बात की जांच नहीं की है कि सामुदायिक रसोई की अवधारणा राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम के उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए एक बेहतर विकल्प है या नहीं. न्यायालय ने मामले को राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के निर्णय पर छोड़ दिया.


किसी भी तरह के दिशा-निर्देश देने से किया इंकार


न्यायमूर्ति बेला एम त्रिवेदी और न्यायमूर्ति पंकज मिथल की पीठ ने इस मामले में फैसला देते हुए कहा, “जब खाद्य और पोषण सुरक्षा प्रदान करने का अधिकार-आधारित दृष्टिकोण देने वाला राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम लागू है और उससेअन्य कल्याणकारी योजनाएं भी पर्याप्त मात्रा में चलाई जा रही हैं तो  फिर हम इस संबंध में कोई और दिशा-निर्देश देने का प्रस्ताव नहीं करते हैं. हमने इस बात की जांच नहीं की है कि एनएफएसए के उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए सामुदायिक रसोई की अवधारणा राज्यों के लिए एक बेहतर विकल्प है या नहीं, हम इसे राज्यों और केंद्र सरकार के लिए खुला छोड़ना चाहते हैं ताकि वे ऐसी वैकल्पिक योजनाओं का पता लगा सकें. अनुन धवन की ओर से दायर इस जनहित याचिका पर इनके वकील आशिमा मंडला ने बहस की.


इससे पहले 16 जनवरी को हुई थी सुनवाई


बेंच ने इससे पहले 16 जनवरी को याचिका पर सुनवाई की थी और अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था. गौरतलब है कि यह वही मामला है जिसमें पूर्व में भारत के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश एनवी रमना ने भूख से होने वाली मौतों को रोकने के लिए एक राष्ट्रीय नीति की आवश्यकता पर जोर दिया था. इसके अलावा पूर्व मुख्य न्यायाधीश ने यह भी स्पष्ट रूप से कहा कि भूख की समस्या को दूर करना होगा और अटॉर्नी जनरल से मानवीय दृष्टिकोण अपनाने के लिए कहा.


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