अनिल अंबानी के नेतृत्व वाले औद्योगिक समूह पर बैंकिंग और कॉर्पोरेट धोखाधड़ी का आरोप लगाने वाली याचिका पर विचार को सुप्रीम कोर्ट तैयार हो गया है. कोर्ट ने मामले में केंद्र सरकार, सीबीआई, ईडी अनिल धीरूभाई अंबानी ग्रुप (ADAG) और अनिल अंबानी को नोटिस जारी किया है.
पूर्व आईएएस ई ए एस शर्मा की याचिका में इसे हजारों करोड़ रुपए के सार्वजनिक धन की हेराफेरी का मामला बताया गया है. याचिकाकर्ता ने कोर्ट की निगरानी में निष्पक्ष जांच की मांग की है. याचिका में दावा किया गया है कि यह हेराफेरी 2007 से चल रही है, लेकिन इस पर अब जाकर एफआईआर दर्ज हुई है. अभी भी जांच सही तरीके से नहीं चल रही है.
याचिकाकर्ता ने कहा है कि 2013 से 2017 के बीच ADAG की सहायक कंपनियों रिलायंस इंफ्राटेल और रिलायंस टेलीकॉम ने स्टेट बैंक के नेतृत्व वाले बैंकों के समूह से 31,580 करोड़ रुपये बतौर लोन लिए, लेकिन इन पैसों का व्यापक दुरुपयोग हुआ. हजारों करोड़ रुपयों का गबन कर लिया गया.
एसबीआई की तरफ से कराए गए एक फोरेंसिक ऑडिट की रिपोर्ट अक्टूबर 2020 में सामने आई. इसमें शेल कंपनियों को पैसे ट्रांसफर करने, फर्जी संपत्ति खरीद, झूठे लोन भुगतान जैसी कई गड़बड़ियों का पता चला. बैंक और नियामक संस्थाओं के अधिकारियों की मिलीभगत के बिना यह संभव नहीं है. फोरेंसिक रिपोर्ट के 5 साल बाद अगस्त 2025 में स्टेट बैंक ने एफआईआर दर्ज करवाई.
चीफ जस्टिस भूषण रामकृष्ण गवई और जस्टिस के विनोद चंद्रन की बेंच के सामने याचिका की पैरवी के लिए वकील प्रशांत भूषण पेश हुए. भूषण ने इसे भारत के इतिहास का सबसे बड़ा कॉरपोरेट घोटाला कहा. उन्होंने कहा कि ईडी और सीबीआई इसकी जांच कर रहे हैं, लेकिन ऐसा नहीं लगता कि वह बैंक अधिकारियों और नियामक संस्थाओं की भूमिका की जांच कर रहे हैं. सुप्रीम कोर्ट उनसे स्टेटस रिपोर्ट मांगे.
थोड़ी देर की जिरह के बाद बेंच ने याचिका को सुनवाई के लिए स्वीकार कर लिया. जजों ने नोटिस जारी करने पर सहमति दे दी. इस पर भूषण ने कहा कि कोर्ट फिलहाल जारी जांच को रोक दे, लेकिन कोर्ट ने इससे मना कर दिया. चीफ जस्टिस ने कहा, 'पहले सभी पक्षों का जवाब दाखिल होने दीजिए. उसके बाद कोई निर्णय लिया जाएगा.'