Supreme Court On Waqf Amendment Bill 2025: सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार (16 अप्रैल, 2025) को वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई शुरू की. चीफ जस्टिस (सीजेआई) संजीव खन्ना, जस्टिस संजय कुमार और जस्टिस केवी विश्वनाथन की पीठ मामले की सुनवाई कर रही है. अदालत ने कोई अंतरिम आदेश पारित नहीं किया और गुरुवार, 17 अप्रैल को सुनवाई फिर से शुरू करेगी.
पीठ के सामने दस याचिकाएं सूचीबद्ध की गई थीं. धार्मिक संस्थानों, संसद सदस्यों, राजनीतिक दलों, राज्यों की ओर से 2025 अधिनियम को चुनौती देते हुए 15 से ज्यादा याचिकाएं दायर की गई हैं. बीजेपी के नेतृत्व वाले पांच राज्यों: असम, राजस्थान, छत्तीसगढ़, उत्तराखंड, हरियाणा और महाराष्ट्र ने इस कानून का समर्थन करते हुए हस्तक्षेप आवेदन दायर किए हैं. केंद्र ने 8 अप्रैल को सुप्रीम कोर्ट में एक कैविएट दायर कर अनुरोध किया कि उसका पक्ष सुने बिना कोई आदेश पारित न किया जाए.
आज की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट की बड़ी टिप्पणियां
1- बुधवार की बहस के दौरान सीजेआई खन्ना ने इस बात पर चिंता जताई कि कैसे कुछ संपत्तियों को वक्फ के रूप में क्लासीफाइड किया गया है. चीफ जस्टिस संजीव खन्ना ने कहा, "हमें बताया गया है कि दिल्ली हाई कोर्ट की इमारत वक्फ की जमीन पर है, ओबेरॉय होटल वक्फ की जमीन पर है. हम यह नहीं कह रहे हैं कि सभी वक्फ बाय यूजर प्रॉपर्टी गलत तरीके से रजिस्टर्ड हैं, लेकिन चिंता के कुछ वास्तविक क्षेत्र भी हैं."
2- याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश वकील कपिल सिब्बल ने अपनी दलीलें पेश कीं. उन्होंने तर्क दिया कि इस्लामी कानून के तहत, विरासत केवल मौत के बाद ही मिलती है और सरकार अब उससे पहले हस्तक्षेप करने का प्रयास कर रही है. सीजेआई खन्ना ने सिब्बल की टिप्पणी पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा, "लेकिन हिंदुओं में ऐसा होता है. इसलिए संसद ने मुसलमानों के लिए कानून बनाया है. हो सकता है कि यह हिंदुओं के लिए कानून जैसा न हो. अनुच्छेद 26 इस मामले में कानून बनाने पर रोक नहीं लगाएगा. अनुच्छेद 26 सार्वभौमिक है और यह इस मायने में धर्मनिरपेक्ष है कि यह सभी पर लागू होता है."
3- अपनी दलीलों के दौरान सिब्बल ने उस प्रावधान (धारा 3सी) का हवाला दिया जिसके मुताबिक, सरकारी संपत्ति के रूप में पहचानी गई संपत्ति वक्फ संपत्ति नहीं होगी और सरकार का प्राधिकारी विवाद का फैसला करेगा. इसके बाद सिब्बल ने धारा 3डी का जिक्र किया, जो एएसआई की ओर से संरक्षित स्मारकों पर वक्फ के निर्माण को अमान्य करार देती है. इस पर सीजेआई ने बताया कि प्रावधान के अनुसार, अगर वक्फ के निर्माण के समय संपत्ति एक संरक्षित स्मारक थी तो ऐसा वक्फ अमान्य होगा. सीजेआई खन्ना ने पूछा, "ऐसे कितने मामले होंगे?" सिब्बल ने जवाब दिया, "जामा मस्जिद." हालांकि, सीजेआई ने कहा कि जामा मस्जिद को बाद में संरक्षित स्मारक के रूप में अधिसूचित किया गया था.
लाइव लॉ के मुताबिक, सीजेआई ने कहा, "मेरे हिसाब से व्याख्या आपके पक्ष में है. अगर इसे प्राचीन स्मारक घोषित करने से पहले वक्फ घोषित किया जाता है तो इससे कोई फर्क नहीं पड़ेगा. यह वक्फ ही रहेगा, आपको तब तक आपत्ति नहीं करनी चाहिए जब तक कि इसे संरक्षित घोषित करने के बाद वक्फ घोषित नहीं किया जा सकता. ज्यादातर स्मारक, प्राचीन मस्जिदें, इस खंड से प्रभावित नहीं होंगी."
4- सिब्बल ने केंद्रीय वक्फ परिषद और राज्य वक्फ बोर्डों में गैर-मुस्लिमों के नामांकन से संबंधित धारा 9, 14 के बारे में भी बात की. सिब्बल ने कहा कि यह अनुच्छेद 26 का सीधा उल्लंघन है. सिब्बल ने तर्क दिया कि सिख गुरुद्वारों से संबंधित केंद्रीय कानून और हिंदू धार्मिक बंदोबस्ती से संबंधित कई राज्य कानून संबंधित बोर्डों में अन्य धर्मों के लोगों को शामिल करने की अनुमति नहीं देते हैं. सिब्बल ने पंजीकरण अनिवार्य करने वाले प्रावधानों पर भी आपत्ति जताई. सीजेआई ने पूछा, "इसमें क्या गलत है?" सिब्बल ने कहा कि वर्तमान में, बिना पंजीकरण के भी यूजर की ओर से वक्फ बनाया जा सकता है.
सीजेआई ने कहा, "आप वक्फ रजिस्टर करा सकते हैं, जिससे आपको रजिस्टर बनाए रखने में भी मदद मिलेगी." जस्टिस विश्वनाथन ने यह भी कहा, "अगर आपके पास डीड है तो कोई भी फर्जी या झूठा दावा नहीं होगा." सिब्बल ने कहा, "वे हमसे पूछेंगे कि क्या 300 साल पहले कोई वक्फ बनाया गया था और उसका दस्तावेज पेश करने को कहेंगे. इनमें से कई संपत्तियां सैकड़ों साल पहले बनाई गई थीं और उनके कोई दस्तावेज नहीं होंगे."
5- केंद्र की ओर से भारत के सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने इस बात पर जोर दिया कि संयुक्त संसदीय समिति की ओर से एक प्रैक्टिस के बाद कानून बनाया गया था. उन्होंने कहा कि संसद के दोनों सदनों ने लंबी बहस के बाद विधेयक पारित किया. बहस जारी रहने के दौरान सीजेआई ने सरकार के साथ विवादों से संबंधित प्रावधान की ओर इशारा किया और पूछा कि विवाद का निपटारा होने तक संपत्ति को वक्फ क्यों नहीं माना जाना चाहिए.
सीजेआई ने कहा, "यह वक्फ संपत्ति क्यों नहीं रहेगी? सिविल कोर्ट को इसका फैसला करने दीजिए." सीजेआई ने पूछा, "मिस्टर तुषार मेहता, हमें बताएं. अगर वक्फ-बाय-यूजर को 2025 अधिनियम से पहले स्वीकार किया गया था तो क्या अब इसे शून्य या अस्तित्वहीन घोषित कर दिया गया है?"
6- सीजेआई ने शर्तों के बारे में भी स्पष्टता मांगी कि संपत्ति विवादित नहीं होनी चाहिए. सीजेआई ने कहा, "अंग्रेजों के आने से पहले हमारे पास कोई रजिस्ट्रेशन नहीं था. कई मस्जिदें 14वीं या 15वीं सदी में बनी हैं. उनसे रजिस्टर्ड दस्तावेज प्रस्तुत करने की अपेक्षा करना असंभव है. ज्यादातर मामलों में, जैसे कि जामा मस्जिद दिल्ली, वक्फ बाय यूजर वक्फ होगा."
7- चीफ जस्टिस ने मेहता से धारा 2ए में डाले गए प्रावधान के बारे में भी सवाल किया, जिसमें कहा गया है कि कोर्ट के किसी भी फैसले के बावजूद, ट्रस्ट की संपत्ति वक्फ अधिनियम के दायरे में नहीं आएगी. सीजेआई ने कहा, "विधानसभा अदालत के किसी फैसले या आदेश को शून्य घोषित नहीं कर सकती, आप कानून के आधार को हटा सकते हैं लेकिन आप किसी फैसले को बाध्यकारी नहीं घोषित कर सकते."
8- सीजेआई खन्ना ने वक्फ बोर्डों में गैर-मुस्लिम सदस्यों के नामांकन की अनुमति देने वाले प्रावधानों के बारे में भी पूछा. सीजेआई ने पूछा, "जब हम यहां निर्णय लेने के लिए बैठते हैं तो हम अपना धर्म भूल जाते हैं. हम एक बोर्ड के बारे में बात कर रहे हैं जो धार्मिक मामलों का प्रबंधन कर रहा है. मान लीजिए हिंदू मंदिर में, गवर्नर काउंसिल में सभी हिंदू हैं. आप जजों के साथ कैसे तुलना कर रहे हैं?"
9- सीजेआई ने धारा 2ए के प्रावधान पर भी चिंता जताई. सीजेआई खन्ना ने कहा, "जहां सार्वजनिक ट्रस्ट को वक्फ घोषित किया गया है, मान लीजिए 100 या 200 साल पहले, आप पलटकर कहते हैं कि यह वक्फ नहीं है. आप 100 साल पहले के अतीत को फिर से नहीं लिख सकते!"
10- सुनवाई के दौरान तुषार मेहता ने कहा कि मुसलमानों का एक बड़ा वर्ग वक्फ अधिनियम से शासित नहीं होना चाहता है. इस पर सीजेआई ने पूछा कि क्या आप ये कह रहे हैं कि अब मुसलमानों को भी हिंदू बंदोबस्ती बोर्ड में शामिल किया जाएगा? जरा साफ तौर पर कहिए.
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