Bilkis Bano Case: गुजरात दंगों के दौरान बिलकिस बानो से गैंगरेप और उनके परिवार के सात सदस्यों की हत्या के मामले में 11 दोषियों की समय-पूर्व रिहाई के मामले पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई. इस फैसले को चुनौती देने संबंधी याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए कोर्ट ने गुरुवार (14 सितंबर) को कहा कि कुछ दोषी ऐसे हैं, जिन्हें अधिक विशेषाधिकार प्राप्त हैं.


दोषियों में से एक ने सुप्रीम कोर्ट से कहा कि दोषियों के सुधार और पुनर्वास के लिए सजा में छूट देना अंतरराष्ट्रीय स्तर पर एक तय स्थिति है और बिलकिस बानो और अन्य की यह दलील कि अपराध की जघन्य प्रकृति के कारण उन्हें राहत नहीं दी जा सकती, अब कार्यपालिका के फैसले के बाद मान्य नहीं हो सकती.


हम छूट की अवधारणा को समझते हैं- सुप्रीम कोर्ट
न्यायमूर्ति बी वी नागरत्ना और न्यायमूर्ति उज्जल भुइयां की पीठ ने दोषी रमेश रूपाभाई चंदना की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता सिद्धार्थ लूथरा से कहा, "हम छूट की अवधारणा को समझते हैं. यह सर्वमान्य है, लेकिन यहां वे (पीड़ित और अन्य) वर्तमान मामले में इस पर सवाल उठा रहे हैं."


पीठ ने वकील से सजा में छूट देने को चुनौती देने संबंधी याचिकाओं पर दिए गए फैसले उपलब्ध कराकर सहायता करने के लिए कहा. पीठ ने कहा कि आमतौर पर राज्यों द्वारा इस तरह की छूट से इनकार किए जाने के खिलाफ मामले दायर किए जाते हैं.


दोषियों को छूट प्राप्त करने में अधिक विशेषाधिकार प्राप्त
पीठ ने कहा, "कुछ दोषी ऐसे हैं जिन्हें इस तरह की छूट प्राप्त करने में अधिक विशेषाधिकार प्राप्त हैं." लूथरा ने कहा कि लेकिन कानूनी स्थिति और नीति वही बनी हुई है. उन्होंने कहा, "आजीवन कारावास की सजा के दोषियों का पुनर्वास और सुधार अंतरराष्ट्रीय स्तर पर एक स्थापित स्थिति है."


सजा में छूट को चुनौती देने संबंधी याचिकाओं पर सुनवाई
न्यायालय 20 सितंबर को याचिकाओं पर सुनवाई फिर से शुरू करेगा. इससे पहले, पीठ ने चंदना से उस पर लगाए गए जुर्माने को ऐसे समय जमा करने पर सवाल उठाया था, जब उसकी सजा में छूट को चुनौती देने संबंधी याचिकाओं पर सुनवाई जारी है.


गुजरात सरकार ने रिहाई के फैसले का बचाव किया
सुप्रीम कोर्ट ने 17 अगस्त को गुजरात सरकार से कहा था कि राज्य सरकारों को दोषियों को सजा में छूट देने में चयनात्मक रवैया नहीं अपनाना चाहिए और प्रत्येक कैदी को सुधार और समाज के साथ फिर से जुड़ने का अवसर दिया जाना चाहिए. गुजरात सरकार ने मामले के सभी 11 दोषियों की समय-पूर्व रिहाई के अपने फैसले का बचाव किया था.


मानवता के खिलाफ अपराध
तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) की सांसद महुआ मोइत्रा ने सुप्रीम कोर्ट से कहा था कि बिलकिस बानो के साथ सामूहिक बलात्कार और उनके परिवार के सात सदस्यों की हत्या मानवता के खिलाफ अपराध था. उन्होंने गुजरात सरकार पर आरोप लगाया था कि वह इस मामले में 11 दोषियों को सजा में छूट देकर महिलाओं और बच्चों के अधिकारों की रक्षा के अपने संवैधानिक दायित्व का पालन करने में विफल रही है.


सजा में छूट को चुनौती 
इस मामले में बिलकिस की याचिका के साथ ही मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) की नेता सुभाषिनी अली, स्वतंत्र पत्रकार रेवती लाल और लखनऊ विश्वविद्यालय की पूर्व कुलपति रूपरेखा वर्मा समेत अन्य ने जनहित याचिकाएं दायर कर सजा में छूट को चुनौती दी है. टीएमसी सांसद मोइत्रा ने भी जनहित याचिका दायर की थी.


यह भी पढ़ें- Karnataka High Court: 'परिवार की परिभाषा में बहन शामिल नहीं', कर्नाटक हाई कोर्ट ने क्यों कहा ऐसा, जानें