सुप्रीम कोर्ट ने आपराधिक मुकदमों की प्रक्रिया को सुव्यवस्थित करने के उद्देश्य से सोमवार (15 दिसंबर, 2025) को निचली अदालतों के लिए कई दिशा-निर्देश जारी किए, ताकि आपराधिक मामलों में दिए जाने वाले फैसलों का सटीक और स्पष्ट विवरण उपलब्ध हो.

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जस्टिस विक्रमनाथ और जस्टिस संदीप मेहता की बेंच ने कहा कि आपराधिक मामलों की सुनवाई करने वाली सभी निचली अदालतें फैसले के समापन पर गवाहों, प्रदर्शित दस्तावेजों और प्रदर्शित की गई भौतिक वस्तुओं के विवरण को संक्षेप में प्रस्तुत करने वाली तालिका शामिल करेंगी. अदालत ने कहा कि ये विवरण फैसले के परिशिष्ट या अंतिम खंड के रूप में होंगे और इन्हें स्पष्ट, सुगम, आसानी से समझ में आने वाले प्रारूप में तैयार किया जाएगा.

बेंच ने कहा, 'हमारा यह दृढ़ मत है कि आपराधिक निर्णयों की स्पष्टता बढ़ाने के लिए अधिक सरल और एकसमान प्रक्रिया अपनाई जानी चाहिए. इस वजह से साक्ष्यों की व्यवस्थित प्रस्तुति सुनिश्चित करने के लिए, जिससे रिकॉर्ड का प्रभावी मूल्यांकन संभव हो सके, हम देश भर की सभी निचली अदालतों को निर्देश जारी करते हैं.'

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सुप्रीम कोर्ट ने कहा, 'इन निर्देशों का उद्देश्य गवाहों, दस्तावेजी साक्ष्यों और भौतिक वस्तुओं को सूचीबद्ध करने के लिए एक मानकीकृत प्रारूप को संस्थागत रूप देना है. इससे अपीलीय अदालतों सहित सभी हितधारकों को बेहतर समझ और तत्काल संदर्भ प्राप्त करने में सुविधा होगी.'

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि प्रत्येक आपराधिक फैसले में गवाहों की सूची होनी चाहिए जिसमें क्रम संख्या, गवाहों के नाम, सूचना देने वाले का संक्षिप्त विवरण, प्रत्यक्षदर्शी, डॉक्टर समेत अन्य शामिल हों. कोर्ट ने कहा, 'ब्योरा संक्षिप्त होना चाहिए, लेकिन गवाह के साक्ष्य स्वरूप को दर्शाने के लिए पर्याप्त होना चाहिए. यह सुव्यवस्थित प्रस्तुति गवाही की प्रकृति को शीघ्रता से समझने में सहायक होगी, रिकॉर्ड में गवाह का पता लगाने में मदद करेगी और अस्पष्टता को कम करेगी.'

चार साल की बच्ची के यौन उत्पीड़न के मामले में एक व्यक्ति की सजा रद्द करते हुए ये निर्देश दिए गए. अदालत ने कहा कि घटना की पूरी जानकारी दिए जाने के बावजूद दर्ज कराई गई प्राथमिकी में आरोपियों और कथित गवाहों के नाम जैसे बुनियादी विवरण तक दर्ज नहीं हैं.