पाकिस्तान समर्थक होने के आरोपी प्रोफेसर को मिली जमानत, ऑपरेशन सिंदूर के दौरान पड़ोसी देश के पक्ष में किया था सोशल मीडिया पोस्ट
पहले हाई कोर्ट ने कहा था कि याचिकाकर्ता अपने देश के साथ नहीं है. वह शत्रु देश का समर्थन करता है. उसने ऐसा तब किया जब दोनों देशों की सीमा पर भारी तनाव था. उसका मामला इस लायक नहीं कि उसे जमानत दी जाए.

सुप्रीम कोर्ट ने असम के गोसाईगांव कॉलेज के निलंबित असिस्टेंट प्रोफेसर मोहम्मद जोयनल आबेदीन को जमानत दे दी है. 16 मई को पाकिस्तान के समर्थन में सोशल मीडिया पोस्ट करने वाले आबेदीन पर महिलाओं पर अभद्र टिप्पणी करने का भी आरोप है. सुप्रीम कोर्ट ने 6 महीने से हिरासत में होने को आधार बताते हुए उसे जमानत दी है.
कोकराझार जिले के गोसाईगांव कॉलेज में अंग्रेजी विभाग के असिस्टेंट प्रोफेसर रहे जोयनल आबेदीन ने इस साल मई में भारत-पाकिस्तान में तनाव के बीच एक सोशल मीडिया पोस्ट किया था. इसमें उसने लिखा था, 'हम अपने पाकिस्तानी भाइयों के साथ हैे और आगे भी रहेंगे.' इस पोस्ट के आधार पर उसे गिरफ्तार किया गया. उसके खिलाफ एक केस सोशल मीडिया पर महिलाओं को परेशान करने और अश्लील टिप्पणी करने के लिए भी दर्ज हुआ है.
जुलाई में गुवाहाटी हाई कोर्ट ने आबेदीन की जमानत याचिका खारिज कर दी थी. हाई कोर्ट ने उसके खिलाफ उपलब्ध तथ्यों को गंभीर प्रकृति का माना था. अपने आदेश में हाई कोर्ट ने कहा था कि याचिकाकर्ता अपने देश के साथ नहीं है. वह शत्रु देश का समर्थन करता है. उसने ऐसा तब किया जब दोनों देशों की सीमा पर भारी तनाव था. उसका मामला इस लायक नहीं कि उसे जमानत दी जाए.
हाई कोर्ट से राहत न मिलने के बाद वह सुप्रीम कोर्ट पहुंचा. पिछले महीने हुई सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने उसे कड़ी फटकार लगाई. कोर्ट ने उसके सोशल मीडिया पोस्ट्स को बेहद आपत्तिजनक बताया. अदालत ने उसे एक विकृत मानसिकता वाला व्यक्ति कहा. साथ ही उसे कम उम्र की लड़कियों के लिए खतरा भी बताया. कोर्ट ने यह भी कहा कि उस जैसे व्यक्ति का प्रोफेसर कहलाना शर्मनाक है.
सुप्रीम कोर्ट में आबेदीन की दलील थी कि उसने अपनी गलती का एहसास होते ही पाकिस्तान के पक्ष में लगने वाले सोशल मीडिया पोस्ट को हटा दिया था. वह छह महीनों से न्यायिक हिरासत में है. गोसाईगांव की कोर्ट में लंबे अरसे से कोई न्यायिक अधिकारी नहीं है. ऐसे में मुकदमा खत्म होने में काफी समय लगेगा. चीफ जस्टिस सूर्य कांत और जस्टिस जोयमाल्या बागची की बेंच ने इस तथ्य पर विचार करते हुए उसे ज़मानत दे दी. हालांकि, कोर्ट ने साफ किया कि इसका मतलब यह नहीं है कि वह नौकरी दोबारा पाने का दावा करे. फिलहाल नौकरी से उसका निलंबन बना रहेगा.
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