सुप्रीम कोर्ट ने विकलांगता पेंशन के लिए आर्म्ड फोर्स के सेवानिवृत्त कर्मियों को अदालत में घसीटने को लेकर गुरुवार (30 जनवरी, 2025) को नारााजगी जताई और केंद्र सरकार से इसे लेकर एक नीति तैयार करने का निर्देश दिया.
न्यूज एजेंसी पीटीआई के अनुसार जस्टिस अभय एस. ओका और जस्टिस उज्ज्वल भुइयां की बेंच ने कहा कि आर्म्ड फोर्सेज ट्रिब्यूनल से डिसएबिलिटी पेंशन पाने वाले सशस्त्र बलों के हर सदस्य को सुप्रीम कोर्ट में घसीटने की जरूरत नहीं थी और केंद्र को अपील दायर करने में कुछ विवेक तो रखना चाहिए.
कोर्ट ने केंद्र से पूछा, 'एक सैन्यकर्मी 15, 20 साल तक काम करता है और मान लीजिए कि वह दिव्यांगता का शिकार हो जाता है और सशस्त्र बल न्यायाधिकरण के आदेश में विकलांगता पेंशन के भुगतान का निर्देश दिया गया है, तो ऐसे लोगों को सुप्रीम कोर्ट में क्यों घसीटा जाना चाहिए?'
पीठ ने कहा, 'हमारा मानना है कि केंद्र सरकार को एक नीति बनानी चाहिए. सशस्त्र बलों के सदस्यों को सुप्रीम कोर्ट में आने के लिए मजबूर करने का निर्णय लेने से पहले कुछ सोचना-समझना चाहिए था.' कोर्ट ने कहा कि केंद्र सरकार की ओर से मनगढ़ंत अपील दायर की जा रही हैं और ऐसी याचिकाएं दायर करके सशस्त्र बलों का मनोबल नहीं गिराया जा सकता.
पीठ ने केंद्र सरकार के वकील को आगाह करते हुए कहा, 'आप बताएं कि क्या आप नीति बनाने के लिए तैयार हैं और यदि आप न कहते हैं तो जब भी हमें लगेगा कि अपील मनगढ़ंत है तब हम भारी जुर्माना लगाना शुरू कर देंगे.' सुप्रीम कोर्ट केंद्र की ओर से दायर अपील पर सुनवाई कर रही थी. अपील में न्यायाधिकरण के उस आदेश को चुनौती दी गई थी, जिसके तहत एक रिटायर्ड रेडियो फिटर को डिसएबिलिटी पेंशन प्रदान की गई थी.
कोर्ट ने सुनवाई स्थगित कर दी और केंद्र से कहा कि पहले वह बताए कि डिसेबिलिटी पेंशन मामलों को लेकर किसी नीति को लेकर कोई निर्णय लिया है या नहीं. कोर्ट ने कहा, 'जैसा कि हम सुनवाई के लिए लंबा समय दे चुके हैं, हम प्रथम अपीलकर्ता से यह खुलासा करने का आह्वान करते हैं कि क्या वह अगली तारीख से पहले ऐसा नीतिगत निर्णय लेने को तैयार हैं.'
कोर्ट ने सुनवाई स्थगित कर दी और केंद्र से कहा कि पहले वह बताए कि डिसएबिलिटी पेंशन मामलों पर किसी नीति को लेकर कोई निर्णय लिया गया है या नहीं. कोर्ट ने कहा, 'जैसा कि हम सुनवाई के लिए लंबा समय दे चुके हैं, हम प्रथम अपीलकर्ता से यह खुलासा करने का आह्वान करते हैं कि क्या वह अगली तारीख से पहले ऐसा नीतिगत निर्णय लेने को तैयार हैं.'
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