सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार (13 अगस्त, 2025) को तेलंगाना सरकार को कांचा गाचीबोवली वन स्थल के समग्र पुनरुद्धार के लिए एक अच्छा प्रस्ताव पेश करने के लिए छह हफ्ते का समय दिया और कहा कि राज्य सरकार को काटे गए पेड़ों को फिर से लगाना होगा. मुख्य न्यायाधीश भूषण रामकृष्ण गवई और जस्टिस के. विनोद चंद्रन की बेंच ने कहा कि वन क्षेत्र को बहाल किया जाना चाहिए.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वह विकास के खिलाफ नहीं है, लेकिन पर्यावरण की रक्षा की जानी चाहिए. बेंच ने मामले की सुनवाई छह हफ्ते बाद के लिए स्थगित करते हुए कहा, 'समय-समय पर न्यायालय कहता रहा है कि हम विकास के खिलाफ नहीं हैं, लेकिन यह सतत विकास होना चाहिए. विकास संबंधी गतिविधियां करते समय, पर्यावरण और वन्य जीवन के हितों का ध्यान रखा जाना चाहिए और क्षतिपूर्ति के उपाय सुनिश्चित किए जाने चाहिए. यदि सरकार ऐसा कोई प्रस्ताव लेकर आती है तो हम उसका स्वागत करेंगे.'
तेलंगाना सरकार की ओर से सीनियर एडवोकेट अभिषेक सिंघवी ने कहा कि राज्य सरकार पूरे प्रस्ताव पर समग्र रूप से विचार कर रही है, जिसमें पर्यावरण और वन्यजीवों के हितों को विकास कार्यों के साथ संतुलित करने का प्रयास किया जा रहा है. सुप्रीम कोर्ट ने 15 मई को कहा था कि हैदराबाद विश्वविद्यालय के निकट पेड़ों की कटाई प्रथम दृष्टया 'पूर्व नियोजित' प्रतीत होती है. अदालत ने तेलंगाना सरकार से कहा था कि वह इसे बहाल करे अन्यथा उसके अधिकारियों को जेल हो सकती है.
मुख्य न्यायाधीश ने कहा था कि यह सरकार पर निर्भर है कि वह जंगल को बहाल करे या अपने अधिकारियों को जेल भेजे. कांचा गाचीबोवली वनक्षेत्र में वनों की कटाई की गतिविधियों पर स्वतः संज्ञान लेते हुए, उच्चतम न्यायालय ने तीन अप्रैल को अगले आदेश तक यथास्थिति बनाए रखने का आदेश दिया था.
सुप्रीम कोर्ट ने पेड़ों की कटाई के लिए जल्दबाजी में की गई कार्रवाई के लिए 16 अप्रैल को तेलंगाना सरकार को फटकार लगाई थी और निर्देश दिया था कि यदि वह चाहती है कि उसके मुख्य सचिव को 'किसी भी गंभीर कार्रवाई से बचाया जाए, तो उसे 100 एकड़ वन-रहित भूमि को बहाल करने के लिए एक विशिष्ट योजना प्रस्तुत करनी होगी.'