सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि अभियुक्त की अधिक आयु और अपराध को काफी समय बीत जाना, जमानत पर रिहा व्यक्तियों की दोषसिद्धि के खिलाफ अपील को प्राथमिकता देने का आधार हमेशा बन सकता है.

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हाईकोर्ट में दोषसिद्धि और बरी किए जाने के विरुद्ध आपराधिक अपीलों के बड़ी संख्या में लंबित होने को ध्यान में रखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि दोषसिद्धि के खिलाफ कुछ पुरानी आपराधिक अपीलों पर सुनवाई करके सही संतुलन बनाना होगा, जिनमें आरोपी जमानत पर हैं.

जस्टिस अभय एस ओका, जस्टिस अहसानुद्दीन अमानुल्लाह और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने कहा, 'इसलिए यह वांछनीय है कि दोषसिद्धि के खिलाफ अपील की कुछ श्रेणियों को, जहां आरोपी जमानत पर हैं, प्राथमिकता दी जानी चाहिए.'

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बेंच ने कहा कि बहुत पुरानी आपराधिक अपीलों के लंबित रहने को देखते हुए, आमतौर पर उन अपीलों की सुनवाई को प्राथमिकता दी जाती है, जिनमें आरोपी जेल में हों. पीठ ने कहा कि जहां अभियुक्त जमानत पर हैं, वहां दोषसिद्धि के खिलाफ अपीलें पीछे चली जाती हैं.

सुप्रीम कोर्ट ने कहा, 'अभियुक्त की अधिक आयु और अपराध को हुए काफी समय बीत जाने के कारण, अभियुक्त को जमानत पर रिहा करने के निर्णय के विरुद्ध अपील को प्राथमिकता देने के लिए हमेशा आधार उपलब्ध हो सकता है.'

पीठ ने कहा कि यदि दोषसिद्धि के खिलाफ अपील, जहां आरोपी जमानत पर हैं और विशेष रूप से जहां आजीवन कारावास की सजा दी गई है, उनकी सुनवाई उनके दाखिल होने के एक दशक या उससे अधिक समय बाद की जाती है और खारिज कर दी जाती है, तो लंबी अवधि के बाद आरोपी को वापस जेल भेजने का सवाल उठता है.

पीठ ने 20 मार्च के अपने फैसले में कहा, 'हमारे देश के सभी प्रमुख उच्च न्यायालयों में दोषसिद्धि और बरी किए जाने के खिलाफ आपराधिक अपीलों की बड़ी संख्या लंबित है.' यह फैसला मध्य प्रदेश राज्य द्वारा उच्च न्यायालय के अगस्त 2017 के फैसले को चुनौती देने वाली अपील पर आया है. हाईकोर्ट ने हत्या के मामले में कुछ लोगों की दोषसिद्धि को खारिज कर दिया था और उन्हें भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 304 (गैर-इरादतन हत्या के लिए सजा) के दूसरे भाग के तहत दोषी ठहराया था.

 

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